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    धान की सीधी बोआई से वैज्ञानिकों ने वाराणसी में बताया जल संरक्षण और मुनाफे का तरीका

    Updated: Mon, 06 Oct 2025 11:51 AM (IST)

    वाराणसी में अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान में डीएसआर कॉन्क्लेव-2025 का आयोजन हुआ। वैज्ञानिकों ने धान की सीधी बोआई (डीएसआर) को पानी की बचत श्रम की कम आवश्यकता और पर्यावरण के लिए बेहतर बताया। डीएसआर से पानी की खपत 20-40% और श्रम शक्ति 25-30% तक कम हो सकती है साथ ही मीथेन उत्सर्जन में भी कमी आएगी।

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    'धान की सीधी बोआइ से पानी, श्रम, लागत संग मीथेन का उत्सर्जन भी कम होगा।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। धान की रोपाई महंगी साबित होती है। इसमें पानी के साथ श्रम शक्ति का भी अधिक उपयोग होता है। यही नहीं धान की रोपाई वाली खेती से मीथेन गैस का भी अधिक उत्सर्जन होता है, जो पर्यावरण के लिए बहुत घातक है।

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    इन समस्याओं को लेकर अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान (इरी) के वाराणसी स्थित दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (सार्क) में रविवार को डीएसआर कान्क्लेव -2025 का शुभारंभ हुआ।

    इसमें देश-विदेश से आए विज्ञानियों ने एक स्वर में कहा कि इन तीनों समस्याओं का एकमात्र हल धान की सीधी बोआइ (डीएसआर) है। विज्ञानियों ने कहा कि डीएसआर से पानी की खपत में 20-40 प्रतिशत बचत होगी तो श्रम शक्ति में 25-30 की बचत होगी। यही नहीं मीथेन उत्सर्जन को भी लगभग 35-40 प्रतिशत कम किया जा सकेगा।

    कान्क्लेव में धान की सीधी बोआइ से जल-बचत, श्रम-कम उपयोग और लाभकारी उत्पादन जैसे फायदों पर चर्चा हुई। विज्ञानियों ने कहा कि फसल की पैदावार स्थिर रहती है और मुनाफा बढ़ता है। भारत, कंबोडिया, वियतनाम, श्रीलंका और अन्य एशियाई देशों के अनुभव से यह स्पष्ट हुआ कि मशीनीकरण, प्रिसिजन एग्रीनामी, डीएसआर फिट किस्में, पानी का सही प्रबंधन और स्टुअर्डशिप फ्रेमवर्क जैसे समेकित उपाय अपनाने से डीएसआ को बड़े पैमाने पर अपनाने में मदद मिल सकती है।

    कार्यक्रम में इरी के पायलट पर भी चर्चा की गई।

    बताया गया कि उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पंजाब और हरियाणा में किसान 20,000 हेक्टेयर से अधिक में डीएसआर विधि से खेती कर रहे हैं। इससे किसानों की आय और संसाधनों का कुशल उपयोग हुआ है। अब चुनौती पायलट से सतत पैमाने पर विस्तार की है, जिसमें विज्ञान, नीति, साझेदारी और निवेश को जोड़कर नवाचारों को किसानों तक पहुंचाना आवश्यक है।

    कान्क्लेव के पहले दिन इरी की महानिदेशक डा. इवोन पिंटो, श्रीलंका के कृषि पशुपालन, भूमि व सिंचाई मंत्रालय के सचिव डीपी विक्रमसिंघे, इरी के अनुसंधान निदेशक डा. विरेंद्र कुमार, उपनिदेशक जनरल डा. एके नायक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के डा. पीएस बिर्थल, डा. रिका जाय फ्लोर, डा. पन्नीरसेल्वम, कंबोडिया के जीडीए डा. कोंग किया, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय भारत के संयुक्त सचिव (बीज) अजीत कुमार साहू, उत्तर प्रदेश के प्रधान सचिव रवींद्र, ओडिशा के डा. अरबिंद कुमार पाधी, डा. संजय सिंह, डा. संगीता मेंदिरत्ता आदि ने विचार रखे। संचालन डा. रीति चटर्जी व धन्यवाद ज्ञापन इरी सार्क के निदेशक डा. सुधांशु सिंह ने किया।