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    पुण्‍यतिथि : वाराणसी के डा. भगवान दास ने छोड़ा था अंग्रेजों का डिप्टी कलेक्टर पद, 1955 में मिला भारत रत्न

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Sat, 17 Sep 2022 08:12 PM (IST)

    काशी ने देश को कई रत्न दिए। उन्हीं में से एक रत्न डा. भगवान दास (जन्म 12 जनवरी वर्ष 1869 और 18 सितंबर 1958 को निधन)। काशी के इस महान दार्शनिक को देश का दूसरा भारत रत्न होने का गौरव प्राप्त है।

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    काशी ने देश को कई रत्न दिए। उन्हीं में से एक रत्न डा. भगवान दास।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी : काशी ने देश को कई रत्न दिए। उन्हीं में से एक रत्न डा. भगवान दास (जन्म 12 जनवरी वर्ष 1869 और 18 सितंबर 1958 को निधन)। काशी के इस महान दार्शनिक को देश का दूसरा भारत रत्न होने का गौरव प्राप्त है। वर्ष 1955 भारत रत्न की उपाधि देने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने प्रोटोकाल तोड़ते हुए उनका पैर छूकर आशीर्वाद लिया। जब उन्हें प्रोटोकाल का याद दिलाया गया तो उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति होने के कारण डा. भगवान दास को भारत रत्न दिया और सामान्य नागरिक होने के नाते पैर छूकर आशीर्वाद लिया। ऐसे भारत रत्न थे डा. भगवान दास, जिनके आगे राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री भी सिर झुकाते थे।

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    देश के लिए छोड़ा डिप्टी कलेक्टर रूतबा

    उन्होंने देश की आजादी के लिए डिप्टी कलेक्टर पद को भी छोड़ दिया और असहयोग आंदोलन में सक्रिय हो गए। जबकि उस समय डिप्टी कलेक्टर रूतबा होता था। वह वर्ष 1880 से 1898 तक वह आगरा, मैनपुरी व मथुरा जिलों में डिप्टी कलेक्टर रहे।

    अध्यात्म व दर्शन में रही रूचि

    उनकी रुचि राजनीत में कम अध्यात्म व दर्शन में अधिक रहती थी। उनके बौद्धिक प्रतिभा के योग से महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की स्थापना हुई। यही नहीं वह विद्यापीठ के प्रथम आचार्य यानी और कुलपति बने। दृढ़ निश्चय, अथक प्रयास, अनेक झंझावत व विरोधों का सामना करते हुए विद्यापीठ को प्रगति पथ पर आगे बढ़ाया। महामना पं. मदन मोहन मालवीय भी समय-समय पर डा. भगवान दास से परामर्श लेते रहते थे। बीएचयू का मोनो भी डा. भगवानदास की कल्पना का देन है।

    जन्म संग कर्मस्थली भी रही काशी

    विद्वान व दार्शनिक डा. भगवान दास का जन्म 12 जनवरी वर्ष 1869 को काशी के प्रतिष्ठित माधवदास और किशोरी देवी के परिवार में हुआ था। वह 1923 से 24 तक बनारस नगर पालिका के भी चेयरमैन रहे। वहीं वर्ष 1926 से 36 तक मीरजापुर के चुनार में गंगा किनारे एकांतवास करते हुए ऋषियों की भांति भी जीवन जीया। महान-व्यक्तित्व का 89 वर्ष की आयु में 18 सितंबर 1958 को निधन हुआ।

    वर्ष 1955 में मिला भारत रत्न

    उनके प्रपौत्र बीएचयू के डा. पुष्कर रंजन ने बताया डा. भगवान दास के पांडित्य को देखते हुए वर्ष 1929 में बीएचयू तथा 1937 में इलाहाबाद विवि ने उन्हेंं डीलिट की उपाधि से सम्मानित किया था। डा. भगवान दास की अपूर्व समाजसेवा, निष्पक्ष व निर्भीक विचार, त्याग देखते हुए प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने वर्ष 1955 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया।

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