Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Don Subhash Thakur : वाराणसी से काम की तलाश में गया मुंबई और रंगदारी के धंधे से पहुंचा दाउद इब्राहिम तक

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Wed, 20 Jul 2022 01:30 PM (IST)

    Don Subhash Thakur वाराणसी से मुंबई गए सुभाष ठाकुर ने रंगदारी को धंधा बनाया और बिल्डरों को निशाने पर लिया। एक वक्त आया जब सुभाष नामी गैंगस्टर बना और ...और पढ़ें

    Hero Image
    जुर्म की दुनिया में दोस्ती ज्यादा दिन नहीं टिकती, ऐसे में सुभाष ठाकुर और दाउद भी दुश्मन हो गए।

    वाराणसी, जागरण संवाददाता। डान सुभाष ठाकुर इन दिनों फतेहगढ़ जेल में बंद है लेकिन काफी दिनों से बीएचयू सर सुंदरलाल चिकित्‍सालय में इलाज के नाम पर रूका हुआ है। सुभाषा ठाकुर का नाम मुंबई में सनसनीखेज हत्या में आया है। बात उन दिनों की है जब सुभाष ठाकुर काम की तलाश में 90 के दशक में वाराणसी से मुंबई जाता है। जल्द ही अपराध की दुनिया में पहुंच गया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    छोटे गुटों में शामिल होने के बाद सुभाष ठाकुर ने रंगदारी को अपना मुख्य धंधा बनाया और बड़े बिल्डरों को निशाने पर लिया। एक वक्त आया जब सुभाष ठाकुर नामी गैंगस्टर बन गया, वहीं दूसरी तरफ दाउद इब्राहिम भी पनप चुका था। माना जाता है कि सुभाष के गैंग में शामिल होने के बाद ही दाउद ने अपराध के सारे दांव सीखे थे। इसके बाद ही वह मुंबई का डान बना था।

    दाउद के देश छोड़ने से पहले सुभाष ठाकुर ने दाउद और छोटा राजन के साथ काम शुरू किया था। तस्करी, रंगदारी, फिरौती के कामों को अंजाम देने में माहिर संतोष ठाकुर खौफ का दूसरा नाम बन गया था। दाउद के इशारे पर बड़े कारोबारियों व बिल्डरों से प्रोटेक्शन मनी लेना हो या फिर जमीन पर कब्जा करना सुभाष ठाकुर के बाएं हाथ का खेल हो चुका था।

    जब सुभाष ठाकुर, दाउद के साथ काम करता था तो उनका बस एक ही दुश्मन था अरुण गवली। यह दुश्मनी तब और बढ़ गई जब अरुण गवली के गुर्गों ने दाउद के बहनोई इस्माइल इब्राहिम पारकर को 26 जुलाई 1992 को मौत के घाट उतार दिया। इस हत्या के बदले में मुंबई के जेजे हॉस्पिटल में 12 सितंबर को भयानक शूटआउट हुआ, जिसमें गवली गैंग के शैलेश की हत्या कर दी गई थी। जिस बेखौफ अंदाज में इस हत्याकांड को अंजाम दिया था उससे सभी लोग हैरान थे।

    जुर्म की दुनिया में दोस्ती ज्यादा दिन नहीं टिकती

    कहते हैं जुर्म की दुनिया में दोस्ती ज्यादा दिन नहीं टिकती, ऐसे में सुभाष ठाकुर और दाउद भी दुश्मन हो गए। इस दुश्मनी का कारण साल 1993 में हुए मुंबई सीरियल बम धमाके थे, जिसे दाउद इब्राहिम ने कई आतंकियों के साथ मिलकर अंजाम दिया था। इसके बाद सुभाष ठाकुर ने अपना रास्ता बदल लिया। वहीं जेजे हॉस्पिटल शूटआउट मामले में साल 2000 में सुभाष ठाकुर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

    जेजे शूटआउट से चर्चा में आया सुभाष ठाकुर

    मुंबई के जेजे शूटआउट कांड के बाद सुभाष ठाकुर का नाम जरायम जगत में चमका। 26 जुलाई 1992 को हुई दाऊद के बहनोई इस्माइल इब्राहीम पारकर की हत्या का बदला शूटरों ने 12 सितंबर 1992 को ले लिया। मुंबई के जेजे अस्पताल में हाई सिक्योरिटी में रखे गए अरुण गवली के शूटर शैलेश हल्दनकर को दाऊद के शूटरों ने गोलियों से छलनी कर दिया था। शूटआउट में दो कांस्टेबल भी मारे गए थे। दाऊद ने सुभाष सिंह ठाकुर और बाबा ग्रैबियाल को शैलेश की हत्या का जिम्मा सौंपा था।