काशी के ज्योतिषाचार्यों ने बताया - 'दीपावली में स्थिर वृष लग्न में करें मां लक्ष्मी व गणेश का पूजन, अर्धरात्रि को सिंह लग्न में निशीथ पूजा'
काशी के ज्योतिषाचार्यों ने दीपावली पर लक्ष्मी और गणेश पूजन के लिए शुभ मुहूर्त बताए हैं। उनके अनुसार, स्थिर वृष लग्न में पूजन करना चाहिए। अर्धरात्रि में सिंह लग्न में निशीथ पूजा का विशेष महत्व है। इस दौरान पूजन करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और धन-बुद्धि का लाभ होता है।

इस बार पूजन के लिए कार्तिक अमावस्या 20 अक्टूबर को प्रदोष काल सायं सूर्यास्त के बाद 2:24 मिनट तक हाेगा।
जागरण संवाददाता, वाराणसी : दीप ज्योति पर्व शृंखला का मुख्य आयोजन कार्तिक अमावस्या पर दीपावली के रूप में मनाया जाएगा। दीपमालिकाएं सजा कर श्री एवं समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी का भगवान गणेश, इंद्र एवं कुबेरादि देवों का पूजन किए जाने का विधान है। पर्व के दिन ही भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन का लोक प्रसंग होने का हर्ष आतिशबाजियों के रूप मेें प्रकट होता है।
दीपावली की सायं प्रदोष काल में श्री एवं समृद्धि के लिए मां लक्ष्मी व भगवान गणेश का विधि-विधान से षोडशोपाचार या पंचोपचार पूजन कर दीपमालिकाएं सजाई जाएंगी। इस बार पूजन के लिए कार्तिक अमावस्या 20 अक्टूबर को प्रदोष काल सायं सूर्यास्त के बाद 2:24 मिनट तक हाेगा।
इसी बीच सायं 7:10 से रात्रि 9:06 बजे स्थिर वृष लग्न का काल मिलेगा, जो पूजनादि धार्मिक कृत्यों के लिए अत्यंत फलदायी है। निशीथ पूजन अर्धरात्रि में तांत्रिक सिद्धियों के लिए किया जाता है। इसके लिए स्थिर लग्न के रूप में सिंह लग्न में रात 2:34 बजे से भोर के 4:05 बजे तक मां काली का तंत्र शास्त्र की पद्धति से पूजन होगा।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर आचार्य सुभाष पांडेय बताते हैं कि कार्तिक अमावस्या को मनाया जाने वाला दीपावली पर्व इस बार 20 अक्टूबर सोमवार को है। कार्तिक अमावस्या के दिन मना प्रात:काल का शुभारंभ श्रीहनुमान जी के दर्शन-पूजन से आरंभ होगा। अमावस्या 20 अक्टूबर सोमवार को अपराह्न 2:56 बजे से अगले दिन 21 अक्तूबर मंगलवार अपराह्न 4:26 बजे तक है। प्रदोषकालीन व निशीथव्यापिनी अमावस्या 20 अक्टूबर को होने से पर्व इसी दिन मनाया जाएगा।
ख्यात ज्योतिषाचार्य प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय ने बताया कि स्थिर लग्न में पूजन का विधान करने से उसके शुभ फल भी स्थिर व दीर्घकालिक होते हैं। प्रदोष काल में पूजन आरंभ कर इसे स्थिर वृष लग्न में पूर्ण किया जा सकता है। प्रो. उपाध्याय ने बताया कि अमावस्या को एक स्थिर लग्न सोमवार को दोपहर में भी मिलेगा जो दोपहर बाद 2:34 से आरंभ होकर अपराह्न 4:05 बजे तक रहेगा। अत्यावश्यक परिस्थितियों में वाणिज्यादिक संस्थानों में मां लक्ष्मी व गणेश पूजन के लिए इस लग्न का भी प्रयोग किया जा सकता है।
करें सहस्त्रविष्णुनाम, श्रीसूक्त या कनकधारा का पाठ
प्रो. सुभाष पांडेय ने बताया कि दीपावली के दिन मां लक्ष्मी का पूजन करते समय श्रीविष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए क्योंकि भगवान विष्णु के पाठ से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। पूजन के समय श्रीसूक्त अथवा कनकधारा स्तोत्र का भी पाठ कर सकते हैं। यदि साधक को इन मंत्राें या पाठों को न कर सकें तो ‘ॐ महालक्ष्म्यै नम:’ मंत्र के साथ भी पूजन किया जा सकता है।
पंच कर्म का विधान, नक्त व्रत व पितृ उल्कामुख दर्शन भी करेंं
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय बताते हैं कि शास्त्रों के अनुसार कार्तिक अमावस्या को दीपावली पर्व पर पांच विधान करने आवश्यक माने गए हैं। प्रथमतया प्रात:काल साभ्यंग स्नान यानी शरीर में तिल का तेल लगाकर स्नान, द्वितीय मेष लग्न व्यापी प्रात:काल में हनुमान जयंती की सुबह हनुमानजी का दर्शन-पूजन, तृतीय - नक्त व्रत का संधान।
यानी वह व्रत जिसमें सायंकाल भोजन कर लेते हैं। दीपावली को पूरे दिन नक्त व्रत रहते हुए सायं प्रदोष काल में दीपमालाएं सजाकर, भगवान गणेश सहित मां लक्ष्मी एवं भंडार के देवता कुबेर की पूजा-उपासना करना, चतुर्थ- दोनों हाथों में दीपक लेकर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर पितरों को दीप दर्शन या उल्कामुख दर्शन कराना चाहिए, ताकि पितृपक्ष में आए पितृगण अपने-अपने स्वलोक को गमन करें और उनका मार्ग आलोकित हो।
मार्ग आलोकन से प्रसन्न हो पितृगण वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इसके पश्चात मंदिरों में दीपदान करना चाहिए, नक्त व्रत का पारण करते हुए भोजन करना चाहिए। अनेक क्षेत्रों में अर्धरात्रि उपरांत दरिद्र निस्सारण की परंपरा है। बंगीय समाज काली पूजनोत्सव मनाता है।
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