Dhanteras 2025 : महालक्ष्मी कृपा संग इस बार संतति समृद्धि का भी शुभ संयोग धनतेरस पर
इस वर्ष धनतेरस श्रद्धालुओं के लिए विशेष फलदायी है। इस दिन गणेश, लक्ष्मी और कुबेर की पूजा के साथ भगवान धन्वंतरि की आराधना का भी महत्व है। इस बार शनि प्रदोष का भी संयोग बन रहा है, जिससे भगवान शिव की उपासना से संतान संबंधी चिंताओं से मुक्ति मिलेगी। यह पर्व सुख-सौभाग्य और स्वास्थ्य के साथ संतति कल्याण कारक भी है। कुंडली में शनि दोष होने पर शनि प्रदोष का व्रत करना विशेष फलदायी होता है।

इस बार धनतेरस व भगवान धन्वंतरि जयंती के साथ श्रद्धालुओं को शनि प्रदोष का भी संयोग प्राप्त हो रहा है।
शैलेश अस्थाना, जागरण वाराणसी। इस वर्ष धनतेरस श्रद्धालुओं के लिए दोहरा शुभ-लाभ लेकर आ रहा है। यह पर्व इस बार केवल गणेश सहित मां लक्ष्मी के आगमन का मार्ग ही नहीं अपितु श्रद्धालुओं के लिए संतति कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त करेगा क्योंकि इस बार धनतेरस व भगवान धन्वंतरि जयंती के साथ श्रद्धालुओं को शनि प्रदोष का भी संयोग प्राप्त हो रहा है।
धनतेरस पर विघ्न विनायक भगवान गणेश सहित मां लक्ष्मी व कुबेर का पूजन-अर्चन जहां धन-संपदा, ऐश्वर्य व सांसारिक सुखों की प्राप्ति कराता है, वहीं आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि की पूजा मनुष्य को आरोग्य लाभ प्रदान करती है लेकिन इस बार शनि प्रदोष पर भगवान शिव की उपासना का भी सुअवसर प्राप्त हो रहा है।
शनि प्रदोष के दिन व्रत रहकर प्रदोष काल में भगवान शिव का पूजन-अर्चन प्रत्येक मनुष्य को अपनी संतति कल्याण रूपी समस्त चिंताओं से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है। इस प्रकार इस वर्ष यह पर्व सुख-सौभाग्य, स्वास्थ्य के साथ संतति कल्याण कारक भी बनकर आ रहा है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष व श्रीकाशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री प्रो. विनय कुमार पांडेय बताते हैं कि इस वर्ष धनतेरस व भगवान धन्वंतरि जयंती कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी 18 अक्टूबर शनिवार को है, उस दिन प्रदोष काल में त्रयोदशी प्राप्त होने से धनतेरस पर शनि प्रदोष का शुभ संयोग भी बन रहा है।
सनातन धर्म में प्रत्येक माह की प्रदोष व्यापिनी दोनों त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रहकर प्रदोष काल में भगवान शिव के पूजन का विधान है। यदि त्रयोदशी की तिथि शनिवार के दिन पड़ती है तो उसे शनि प्रदोष कहा जाता है।
शास्त्रीय मान्यता है कि शनि प्रदोष के दिन भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना से नि:संतान को भी संतति की प्राप्ति होती है तथा संतानवानों की संततियों के कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त होता है। इस दिन श्रद्धालु को विधि-विधानपूर्वक भगवान गणेश सहित मां लक्ष्मी, भगवान कुबेर व भगवान धन्वंतरि के साथ, भगवान शिव व संकटमोचक हनुमानजी की भी उपासना करनी चाहिए।
बजरंग बली को जलाएं घी की नौ बत्तियों वाला दीपक, शिव का करें आराधना
प्रो. पांडेय बताते हैं कि सूर्यास्त के पश्चात दो घंटा 24 मिनट का काल प्रदोष काल कहा जाता है। इस काल में ही मां लक्ष्मी, भगवान कुबेर, भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है तथा उनके आगमन के लिए दीप जलाए जाते हैं। बहुत से सनातनी श्रद्धालु चूंकि पारंपरिक रूप से प्रदोष व्रत रखकर भगवान शिव की श्रद्धापूर्वक पंचोपचार आराधना करते हैं। अतएव वे भगवान शिव के साथ बजरंग बली की उपासना कर उन्हें नौ बातियों वाला घी का दीपक जलाएं और भगवान शिव की आराधना करें।
कुंडली में हो शनि दोष या संतान प्राप्ति में बाधा-विलंब का योग हो तो जरूर करें शनि प्रदोष
प्रो. विनय पांडेय बताते हैं कि यदि किसी की कुंडली में शनि दोष हो या संतान प्राप्ति में बाधा या विलंब का योग हो तो उसे शनि प्रदोष का व्रत अवश्य करें। इससे भगवान शिव व बजरंग बली की कृपा प्राप्त होती है और शनि दोष सहित अनपत्य दोष का प्रभाव कम होता है।
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