वाराणसी में मणिकर्णिका चक्र पुष्करणी कुंड में आस्था की लगाई डुबकी, अष्टधातु प्रतिमा का किया दर्शन पूजन
वाराणसी में अक्षय तृतीया के दूसरे दिन बुधवार दोपहर में हजारों श्रद्धालुओं ने परम्परानुसार प्राचीन मणिकर्णिका चक्र पुष्करणी कुंड में खड़ी दोपहर में आस्था की डुबकी लगाईं। और मणिकर्णिका मां की अष्टधातु प्रतिमा का दर्शन पूजन किया। कोरोना के चलते पूरे दो साल बाद श्रद्धालुओं ने कुंड में डुबकी लगाई।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। अक्षय तृतीया के दूसरे दिन बुधवार दोपहर में हजारों श्रद्धालुओं ने परम्परानुसार प्राचीन मणिकर्णिका चक्र पुष्करणी कुंड में खड़ी दोपहर में आस्था की डुबकी लगाईं। और मणिकर्णिका मां की अष्टधातु प्रतिमा का दर्शन पूजन किया।
कोरोना के चलते पूरे दो साल बाद श्रद्धालुओं ने कुंड में डुबकी लगाई। मान्यता है कि भगवान शंकर ने काशी बसाने के बाद महादेव ने देवी पार्वती के स्नान के लिए इस कुंड को अपने सुदर्शन चक्र से स्थापित किया था। स्नान के दौरान मां पार्वती का कर्ण कुंडल कुंड में गिरने से नाम मणिकर्णिका पड़ा। मणिकर्णी माई की अष्टधातु की प्रतिमा प्राचीन समय में इसी कुंड से निकली थी।
जीवन मुक्ति का पुंज, मणिकर्णिका चक्र पुष्करणीय कुंड, मछलियां होतीं सैलानियों के आकर्षण का केंद्र
बाबा विश्वनाथ व उत्तरवाहिनी गंगा के लिए ख्यात काशी नगरी में इससे इतर भी कई पौराणिक स्थल हैं, जो बड़े स्थलों के आगे छिपे हुए से हैं। इनमें एक है मणिकर्णिका घाट पर स्थित मणिकर्णिका चक्र पुष्करणीय कुंड। जहां स्नान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। काशी खंड के अनुसार गंगा अवतरण से पहले इसका अस्तित्व है। भगवान विष्णु ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए यहां हजारों वर्ष तपस्या की थी। भोलेनाथ और देवी पार्वती के स्नान के लिए उन्होंने कुंड को अपने सुदर्शन चक्र से स्थापित किया। स्नान के दौरान मां पार्वती का कर्ण कुंडल कुंड में गिरने से नाम मणिकर्णिका पड़ा। अक्षय तृतीय पर स्नान का अधिक महत्व है।
के दिन चारों धाम का पुण्य मिलने की मान्यता : मान्यता है कि कुंड में स्नान से अक्षय फल, चारों धाम के पुण्य का लाभ मिलता है। अक्षय तृतीया मणिकर्णिका घाट स्थित चक्र पुष्करणीय कुंड में स्नान-दान के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। शास्त्रों के अनुसार शिव-पार्वती कुंड में नित्य स्नान करते हैं। मां मणिकर्णिका की अनुमति से शिवजी मृतकों को तारक मंत्र देकर मुक्ति दिलाते हैं। इसके जल का स्रोत गोमुख से जुड़ा होने की मान्यता है।
ऐसे पड़ा था मणिकर्णिका नाम : जानकारों व स्थानीय पुरोहितों के अनुसार पौराणिक मान्यता है कि शिव-पार्वती स्नान कर प्रसन्न मुद्रा में झूम उठे। इतने में पार्वती के कर्ण कुंडल की मणि कुंड में गिर गई। तब से इसका नाम मणिकर्णिका पड़ गया। मान्यता है कि गंगा के अवतरण से पहले ही काशी में इस कुंड का अस्तित्व है।
आकर्षण का केंद्र कुंड की मछलियां : मणिकर्णिका चक्र पुष्करणीय कुंड में बड़ी संख्या में मछलियां भी हैं। कुंड में ऊपर आकर जलक्रीड़ा करती मछलियों को देखने और उन्हें चारा खिलाने के लिए हर दिन बड़ी संख्या में सैलानी और आमजन जुटते हैं। खासकर महाश्मशान आए लोग व विदेशी सैलानी इसमें सर्वाधिक होते हैं।
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