Dev Uthani Ekadashi 2025 : विश्राम पर जाएंगे श्रीहरि, चार माह 11 दिन बाद मिलेंगे विवाह के लड्डू
आषाढ़ शुक्ल एकादशी पर भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाएंगे जिससे चातुर्मास्य आरंभ होगा और मांगलिक कार्य रुक जाएंगे। देवोत्थान एकादशी पर भगवान के जागने के बाद भी शुद्ध काल के अभाव में विवाह 21 दिन बाद शुरू होंगे। गुरु अस्त होने से विवाह के शुभ मुहूर्त कम हैं और खरमास भी जल्दी लगने से विवाह के लिए केवल आठ दिन ही मिलेंगे।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। आषाढ़ शुक्ल एकादशी को तीनों लोकों के पालक श्रीविष्णु हरि चार माह के लिए योगनिद्रा में विश्राम पर चले जाएंगे। उनकी अनुपस्थिति में श्री हर महादेव सृष्टि के संचालन का दायित्व निभाएंगे। श्रीहरि के योगनिद्रा में जाने की तिथि को सनातन धर्मावलंबी हरिशयनी एकादशी के रूप में मनाते हैं। उस दिन व्रत-उपासना के साथ श्रीहरि विष्णु का विशेष पूजन-अर्चन अत्यंत फलदायी माना गया है।
जगत्पालक के योगनिद्रा में जाने के साथ ही चातुर्मास्य आरंभ हो जाएगा और लोग संकल्पित होकर धर्म-कर्म में रत हो जाएंगे। चार माह की इस अवधि में सभी मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाएगा और ये फिर तभी आरंभ होंगे जब चार माह बाद भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देवोत्थान एकादशी को योगनिद्रा से बाहर आएंगे।
लेकिन इस बार भगवान के जाग जाने के बाद भी मांगलिक कार्यों के आरंभ होने में 21 दिनों का पेच है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय बताते हैं कि एक नवंबर को कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान तो जाग जाएंगे लेकिन शुद्ध काल के अभाव में प्रभु के जागरण के 20 दिन पश्चात ही विवाह के लड़्डू खाने को मिलेंगे।
इस वर्ष की लग्न में विवाह के इच्छुक युवाओं को शुभ मुुहूर्तों के टोटा का सामना करना पड़ा है। वैसे तो प्राय: वैवाहिक लग्न प्रभु के शयन के पश्चात विराम लेते थे लेकिन इस बार गुरु ने पहले ही विराम ले लिया। भगवान के शयन के 26 दिन पूर्व ही गुरु अस्त हो गए और वैवाहिक लग्न आठ जून को ही खत्म हो गई थी।
अब जब एक माह बाद सात जुलाई को गुरु का उदय होगा तो उसके पूर्व शनिवार पांच जुलाई की शाम 6:29 बजे ही एकादशी आरंभ होने पर प्रभु योगनिद्रा में जा चुके होंगे। एकादशी अगले दिन रविवार छह जुलाई को रात 8:29 बजे तक रहेगी।
ठीक इसी तरह देवोत्थान एकादशी एक नवंबर को जब प्रभु का जागरण तो होगा लेकिन कालशुद्धि न मिलने के कारण वैवाहिक लग्न 21 दिन बाद 22 नवंबर से आरंभ होंगे। हालांकि जीर्णादि गृहारंभ आदि कार्य तीन नवंबर से आरंभ हो जाएंगे। गृह प्रवेश वधू प्रवेश, द्विरागमन आदि के मुहूर्त भी मिलने लगेंगे।
बस आठ दिन ही मिलेगी लग्न, पहले ही आ जाएगा खरमास
वैसे तो विगत लगभग एक दशक से खरमास दिसंबर माह के दूसरे सप्ताह के अंत में लगता आ रहा है लेकिन इस बार खरमास पांच दिसंबर को ही लग जाएगा। इससे 22 नवंबर से पांच दिसंबर के बीच कुल आठ दिन ही विवाह के लड़्डू मिल सकेंगे।
इन्हीं तिथियों में मिलेंगे विवाह के लग्न
- नवंबर में - 22, 23, 24, 25, 29, 30
- दिसंबर में - चार व पांच दिसंबर
(इन तिथियों में भी कुछ दिन के तो कुछ रात के लग्न हैं।)
मुंडन, यज्ञोपवीत, मंदिरों की प्राण-प्रतिष्ठा अब अगले वर्ष
प्रो. पांडेय ने बताया कि देवशयन के पश्चात मुंडन, यज्ञोपवीत, मंदिरों की प्राण-प्रतिष्ठा, वधू प्रवेश, द्विरागमन आदि सभी मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं। नवंबर माह में देवोत्थान एकादशी के पश्चात वधू प्रवेश, द्विरागमन आदि तो आरंभ हो जाएंगे लेकिन मुंडन, यज्ञोपवीत, मंदिरों की प्राण-प्रतिष्ठा अब अगले वर्ष यानी वर्ष 2026 में ही हो सकेगा क्योंकि ये मांगलिक संस्कार सूर्य के उत्तरायण होने पर ही कराए जाते हैं। जब देवोत्थान एकादशी आएगी तब सूर्य दक्षिणायण में होंगे। सूर्य उत्तरायण में अब अगले वर्ष मकर संक्रांति से होंगे।
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