Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Dev Deepawali 2022 : वाराणसी में चंद्रहार-सी सुशोभित गंगा के साढ़े सात किलोमीटर लंबे तट की स्‍वर्णिम आभा

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Mon, 07 Nov 2022 08:18 PM (IST)

    वाराणसी में घाटों पर जगमग तो लहरों पर भी ऐसा बहुरंगी नजारा जिसे देख इंद्रधनुष भी शरमाए। नगर के अनूठे जल ज्योति पर्व देवदीपावली पर गंगा किनारे सजी ऐसी चमत्कारी दृश्यावली विह्वïल प्रकाश पुकार जिसके सम्मोहनपाश में बंधे बनारस और पूर्वांचल ही नहीं देश भर से लोग खींचे चले आए।

    Hero Image
    वाराणसी में देव दीपावली के मौके पर गंगा घाटों पर की गई दीपों की सजावट।

    वाराणसी, जागरण संवाददाता : सोमवार की शाम सूरज ढलने के तुरंत बाद काशी के गले में चंद्रहार-सी सुशोभित गंगा के साढ़े सात किलोमीटर लंबे तट का अद्भुत दृश्य उभर कर आया। शंखनाद के स्वरों और घंटे-घड़ियालों की घनघनाहट के बीच सिर्फ पांच मिनट के अंतराल पर गंगा के 84 घाटों पर 15 लाख से भी अधिक दीपक जगमगा उठे और गंगा के समानांतर बह निकलेगी इन दीप वर्तिकाओं के प्रकाश की ज्योति गंगा। गंगा घाट के अलावा, वरुण नदी और सभी धार्मिक कुंड, तालाब और मंदिरों में दीपों से सजावट की गई।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    देव दीपावली पर्व पर 10 लाख से अधिक लोगों ने किसी न किसी रूप में अपनी भागीदारी दर्ज किया। काशी के पथरीले घाटों पर गोधूलि वेला में जब लाखों लाख दीपक महज पांच मिनटों के अंतराल में एक साथ झिलमिलाए तो इहलोक में देवलोक-सा दृश्य आंखों के सामने हुआ। हजारों देसी-विदेशी पर्यटक और उनके कैमरे विश्व का भव्यतम दीपोत्सव के मनोरम दृश्य का साक्षी बनेंगे और अमिट स्मृतियों के साथ यहां से जाएंगे।

    गंगा घाट और रेत पर दीप मालाओं का आकर्षण

    देव दीपावली पर अबकी प्रशासन की ओर से गंगा के 84 घाटों पर दस लाख व गंगा उस पार पांच लाख दीपक जलाया गया। वहीं लगभग छह लाख दीपक समितियों व भक्तों की ओर से जलाने की बात है। प्रशासन की ओर से गंगा घाटों की सुरक्षा व दीया- बाती-तेल वितरण के लिए बीस सेक्टर में बांटा गया।

    दीपों और झालरों की जगमग, सुरों की खनक

    कार्तिक मास की पूर्णिमा पर काशी की अदभुत अलौकिक और दिव्‍य दीपावली चौरासी गंगा घाटों पर अपनी स्‍वर्णिम आभा बिखेर रही है। शाम को दीपों की दपदप, विद्युत झालरों की जगमग, सुरों की खनक, कहीं गीत-संगीत की सरिता बह रही है। फूलों की सुवास तो कहीं चटकीले रंगों का वास। सच कहें तो गंगा की लहरों पर सतरंगी इंद्रधनुष आकाश से उतर आया। देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में शुक्रवार शाम गंगधार स्वर्ण रश्मियों की फुहार से नहाई।

    आरती की लौ, धूप-दीप, लोबान की सुवास 

    उत्तरवाहिनी गंगा का विस्तृत पाट टिमटिमाते दीपों की जगमग में डूब गया। इसने गंगा के समानांतर ज्योति गंगा के हिलोर लेने का आभास दिया। आरती की लौ, धूप-दीप, लोबान की सुवास के बीच धार्मिक-सांस्कृतिक अनुष्ठान किया। मां गंगा की महाआरती करते बटुक तो चंवर डोलाती कन्याएं।

    घंटा-घडिय़ाल, डमरू और वाद्य यंत्रों की टनकार से गंगा के तट पर श्रद्धा और आस्था की भीड़ का महासागर आकार लेता रहा। पहली बार आए मेहमानों के लिए ऐसा दृश्य जो न कभी देखा, न सुना और न किसी ने सुनाया। विभोर इतने हर होंठ ने पुराने जमाने का गीत 'ऐ चांद जरा छिप जा, ऐ वक्त जरा रुक जा... गुनगुनाया।