Chhatrapati shivaji maharaj : तब काशी के पं. गंग भट ने कराया था छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक
मुगलों की परवाह न करते हुए उन्होंने न केवल छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया बल्कि देश-दुनिया को काशी की पांडित्य परंपरा का दर्शन कराया।
वाराणसी, जेएनएन। भारतीय इतिहास में ऐसे ढेरों राजाओं के किस्से मिलते हैं जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्योछावर कर दिए। इन्हीं में एक थे छत्रपति शिवाजी महाराज, जिनकी उम्मीदों को पुरातन नगरी काशी ने जिंदा रखा। कुल को लेकर संशय होने पर राजगढ़ व अन्य राज्यों के ब्राह्मणों ने उनका राज्याभिषेक करने से मना कर दिया तो यहीं के पंडित गंग भट आगे आए। मुगलों की परवाह न करते हुए उन्होंने न केवल राज्याभिषेक किया, बल्कि देश-दुनिया को काशी की पांडित्य परंपरा का दर्शन कराया।
छात्रपति शिवाजी महाराज ने कई वर्षों तक मुगल बादशाह औरंगजेब से संघर्ष किया। मुगल सेना को धूल चटाते हुए सन 1674 में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार जाति से कुर्मी होने के नाते उनका राज्याभिषेक करने को कोई ब्राह्मण तैयार न हुआ। इसके बाद शिवाजी ने काशी संदेश भेजवाया।
इतिहास विभाग, बीएचयू की असिस्टेंट प्रोफेसर डा. अनुराधा सिंह के मुताबिक उस दौर में भी काशी के विद्वानों का बड़ा मान था। भारतीय समाज वर्ण व्यवस्था आधारित थी। इसलिए जो राज्य रक्षा की जिम्मेदारी उठाता था उसका राज्याभिषेक क्षत्रिय आधार पर होता था। उदाहरण के तौर पर गुप्त शासक वैश्य थे तो वहीं शुंग ब्राह्मण थे। काशी के ब्राह्मणों ने समय-समय पर वर्जनाएं तोड़ी। इसी क्रम में शिवाजी के आमंत्रण पर पंडित गंग भट रायगढ़ पहुंचे व छह जून 1674 को उनका राज्याभिषेक कर उदाहरण प्रस्तुत किया।
तीन अप्रैल को हुई थी मृत्यु
शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। 1680 में कुछ समय बीमार रहने के बाद पहाड़ी दुर्ग राजगढ़ में तीन अप्रैल को उनकी मृत्यु हो गई। हालांकि, उनके निधन को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। कुछ का मानना है कि उनकी मृत्यु स्वाभाविक थी, लेकिन कई किताबों में इतिहासकारों ने लिखा कि उन्हें साजिश के तहत जहर दिया गया था।
काशी में मिली थी शरण
मुगलों से लोहा लेने के दौरान छत्रपति शिवाजी ने एक बार बनारस में भी शरण ली थी। उस दौरान उन्होंने न सिर्फ पंचकोसी परिक्रमा की, बल्कि इसी मार्ग पर भोजूबीर में अपनी कुलदेवी मां दक्षिणेश्वर काली की मूर्ति स्थापित की। सड़क किनारे सामान्य भवन की तरह दिखने वाला काली मंदिर गुंबदविहीन है। इसकी दीवारें दो फीट तक मोटी हैैं। इतने वर्षों बाद भी इसका क्षरण नहीं हुआ है। जो उस दौर की विशिष्ट निर्माण तकनीक का भान कराता है। देवालय के गर्भगृह में मां काली के साथ ही भगवती दुर्गा, भगवान गणेश, भगवान नरसिंह व भैरव बाबा के विग्रह स्थापित हैैं।