Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Death Anniversary of Dr. Lalji Singh : दुनिया में पहली बार विलुप्त हो रहे काले हिरण को विज्ञान से दिया था जन्म

    By saurabh chakravartiEdited By:
    Updated: Thu, 10 Dec 2020 06:30 AM (IST)

    वर्ष 2007 में हैदराबाद से डा. लालजी सिंह (जन्म - 5 जुलाई 1947 जौनपुर निधन- 10 दिसंबर 2017 वाराणसी) ने विलुप्त प्राय जानवरों की तस्करी व मौतों का कारण व निवारण करने के लिए (लेबोरेटरी फार कंजर्वेशन आफ एनडेंजर्ड स्पेसीज) और क्लिनिकल रिसर्च फैसिलिटी की शुरूआत की।

    Hero Image
    डा. लालजी सिंह (जन्म - 5 जुलाई 1947, जौनपुर, निधन- 10 दिसंबर 2017, वाराणसी)

    वाराणसी  [हिमांशु अस्थाना]। डा. लालजी सिंह (जन्म - 5 जुलाई 1947, जौनपुर, निधन- 10 दिसंबर 2017, वाराणसी) को भारत में डीएनए फिंगर प्रिंट के जन्मदाता और बीएचयू कुलपति के दौरान एक रुपया वेतन लेने की बात से तो सभी परिचित हैं, मगर उन्होंने ही दुनिया में सबसे पहले जंगली जीवों को बचाने की जैविक तकनीक यूनिवर्सल प्राइमर खोजी थी जिसकी चर्चा अब विरले सुनने को मिलती है। इस खोज के बाद दुनिया भर के वन्य जीव संरक्षण कानूनों को मजबूती व वन्य तस्करी की समस्या से निजात मिली। इससे किसी जानवर के खून, सीमेन, बाल, सींग, मांस या हड्डी के टुकड़े से ही उसकी पहचान कराने वाले डा. लालजी सिंह की यह तकनीक वन्य जीव फोरेंसिक के नाम से पूरी दुनिया में प्रचलित हुई।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    वर्ष 2007 में हैदराबाद से उन्होंने विलुप्त प्राय जानवरों की तस्करी व मौतों का कारण व निवारण करने के लिए (लेबोरेटरी फार कंजर्वेशन आफ एनडेंजर्ड स्पेसीज) और क्लिनिकल रिसर्च फैसिलिटी की शुरूआत की। आंध्रप्रदेश सरकार ने डा. सिंह को लैब स्थापित करने के लिए जमीन उपलब्ध कराई और यहीं पर उन्होंने विलुप्त हो रहे काले हिरण का कृत्रिम रूप से गर्भाधान कराकर ब्लैकी और एक चीतल स्पाटी को जन्म दिया था। इसके बाद से यही तकनीक निकोबार के विलुप्त हुए कबूतरों से लेकर उन्होंने शेरों और गिद्धों को भी बचाने में अपनाई। तात्कालिक राष्ट्रपति व भारत के मिसाइल मैन डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने खुद लैकूंस के उद्घाटन में कहा था कि यह विश्व की पहली ऐसी तकनीक व संस्था है जो विलुप्तप्राय जानवरों को इस स्तर पर बचाने के लिए काम कर रही है। इसके बाद से सारी दुनिया में विलुप्त प्राय प्राणियों को बचाने के लिए इसी जैविक तकनीक का उपयोग किया गया।

    कराया था वैज्ञानिक प्रजनन

    वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट, देहरादून के सीनियर साइंटिस्ट व डा. सिंह के शिष्य डा. संदीप गुप्ता ने बताया कि नर चीतल और काले हिरण के स्पर्म निकालकर मादा के गर्भाशय में प्रवेश कराते थे। छह माह के गर्भ के बाद नान सर्जिकल विधि से उन्होंने हिरण को जन्म दिया था। विश्व में इस तरह से कृत्रिम गर्भाधान प्रणाली का प्रयोग कभी किसी संकटग्रस्त जानवरों को संरक्षित करने के लिए नहीं हुआ था। उन्हीं की देन थी कि वाइल्ड लाइफ फोरेंसिक तकनीक पूरे दुनिया के टाइगर रिजर्व और राष्ट्रीय पार्क में विस्तारित हुई।

    न्यायालय में दिलाया विज्ञान को स्थान

    पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का क्षत-विक्षत शव हो या नैना साहनी का तंदूर में जला शरीर, प्रेमानंदा का पितृत्व साबित करना या फिर पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या रही हो, इन सब मसलों पर कई-कई दिन व रात जागकर न्यायाधीश, वकील, मीडिया व जनता के तीखे सवालों की अग्निपरीक्षा से डा. ङ्क्षसह को गुजरना पड़ा। इसका उन्होंने बड़े ही वैज्ञानिक तथ्यों से न्यायालय में पक्ष रखा और पीडि़तों को न्याय दिलाया।