रामनगर की रामलीला : कैकेयी की जिद ने छीन ली अयोध्या की खुशियां, राम को मिला वनवास
वचनों से बंधे महाराज दशरथ से कैकेयी ने श्रीराम का वन गमन और भरत को राजा बनाने का वरदान मांग खुशियों पर तुषारापात कर दिया। हर्ष के वातावरण को विषाद में बदल दिया।
वाराणसी (रामनगर) । अयोध्या समेत राजपरिवार चार बहुएं पाकर निहाल है तो प्रभु श्रीराम को युवराज बनाने की तैयारियों में पैर जमीन पर ही नहीं पड़ रहे। इस बीच वचनों से बंधे महाराज दशरथ से रानी कैकेयी ने श्रीराम का वन गमन और भरत को राजा बनाने का वरदान मांगकर खुशियों पर तुषारापात कर दिया। हर्ष के वातावरण को विषाद में बदल दिया।
रामनगर में विश्वप्रसिद्ध रामलीला के नौवें दिन सोमवार को आठवें दिन के लिए तय अयोध्याकांड के प्रसंगानुसार प्रभु श्रीराम राज्याभिषेक व कोप भवन लीला का मंचन किया गया। इसमें महर्षि नारद ब्रह्माजी के वचनों का हवाला देते हुए प्रभु श्रीराम की बड़ाई करते हैं, कहते हैं कि आपने जिस निमित्त पृथ्वी पर अवतार लिया है, उसे पूरा करने का समय आ गया है। रामसीता से देवताओं के भले के लिए वन जाने का उपाय करने की बात कहते हैं। दूसरी ओर महाराज दशरथ श्रीराम को युवराज बनाने का निर्णय लेते हैं और गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से तैयारियां शुरू हो गईं। वहीं, प्रभु श्रीराम चारों भाइयों के एक समान होने का हवाला देते हुए गुरु वशिष्ठ से सिर्फ अपने राज्याभिषेक को अनुचित बताते हैं। देव लोक में चिंतित इंद्रदेव ऋषियों के कल्याणार्थ राम वन गमन के लिए देवी सरस्वती से कुछ प्रयोजन करने की विनती करते हैैं।
देवी सरस्वती महारानी कैकेयी की दासी मंथरा को तरह-तरह से समझाती हैैं। मंथरा की सलाह पर कैकेयी महाराज दशरथ से पूर्व में दिए गए वचनानुसार भरत का राजतिलक व श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास की सूचना देकर कोपभवन में सो जाती हैं। कैकेयी के कोपभवन में जाने की जानकारी होने पर राजा दशरथ उन्हें मनाने जाते हैं। कैकेयी के मुख से श्रीराम के लिए वनवास सुनते ही दशरथ शोक में डूब जाते हैं। महाराज दशरथ दुख व्यक्त करते हुए सूर्यवंश के वटवृक्ष में कुल्हाड़ी न मारने का आग्रह करते हैं और हे राम, कहते हुएभूमि पर गिर पड़ते हैं। श्रीराम के पूछने पर कैकेयी महाराज दशरथ के दुख का कारण बताती है। श्रीराम पितृ वचन के लएि वन गमन को अपना भाग्य बताते हैं और दशरथ से वन जाने की आज्ञा मांगते हैं। प्रभु के वन जाने की खबर सुन अयोध्या में दुख का वातावरण छा गया। राम, माता कौशल्या से वन जाने की आज्ञा मांगते हैं। सभी कैकेयी की हठधर्मिता को कोसती है। सीता अपनी सास कौशल्या को समझाती हैैं। इसी प्रसंग के साथ लीला को विश्राम दिया गया।
प्रसंगानुसार बदलते रहे भक्तों के भाव
विश्वप्रसिद्ध रामलीला के नियमी रामचरित मानस के प्रसंगानुसार लीला के एक-एक भावों से जुड़़ते जाते हैैं। प्रभु श्रीराम के युवराज बनने के प्रसंग पर लीलाप्रेमी जहां आनंदानुभूति करते हैं तो प्रभु के वन गमन की बात सुन शोक में डूब जाते हैं। महाराज अनंत नारायण सिंह हाथी के हौदे में बैठे मानस की एक-एक पंक्तियों के भावों को निहारते हैं। लीला प्रेमी रामचरित मानस का गुटका लेकर रामायणी समूह के साथ टार्च की रोशनी में एक-एक पंक्तियों को गुनगुनाते हैं। अयोध्या कांड के मार्मिक प्रसंगों, दशरथ के विलाप भरे संवादों से श्रद्धालुओं के पलकों की कोरें गीली हो जाती हैं। यही भाव श्रद्धा-भक्ति का दुर्लभ वातावरण बनाते हुए रामनगर की लीला को अन्य स्थानों पर होने वाली लीला से अलग करते हैं।