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    ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य मामले में विवाद, पट्टाभिषेक पर काशी विद्वत परिषद ने की यह अपील

    By Abhishek SharmaEdited By:
    Updated: Mon, 17 Oct 2022 12:46 PM (IST)

    देश में इन दिनों शंकराचार्य पद को लेकर विवाद की स्थिति बन गई है। दरअसल ज्‍योतिष्‍पीठ में नए शंकराचार्य के रूप में स्‍वामी अविमुक्‍तेश्‍वरानंद सरस्‍वती का पट्टाभिषेक का कार्यक्रम होने जा रहा था लेकिन उससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने इस आयोजन पर रोक लगा दी है।

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    ज्‍योतिष्‍पीठ में शंकराचार्य के रूप में स्‍वामी अविमुक्‍तेश्‍वरानंद सरस्‍वती के पट्टाभिषेक कार्यक्रम पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है।

    वाराणसी/ चमोली/अयोध्‍या, जागरण संवाददाता। New Shankaracharya Controversy For Swami Avimukteshwaranand Saraswati : शंकराचार्य की नियुक्ति को लेकर काशी से लेकर उत्‍तराखंड तक विवादों का साया घिरता नजर आ रहा है। दरअसल पट्टाभिषेक का काशी विद्वत परिषद ने समर्थन करने से इंकार कर दिया है। वहीं ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सभी को मानने की अपील परिषद की ओर से की गई है। 

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     ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद जबलपुर स्थित परमहंसी आश्रम में उनकी वसीयत के आधार पर शंकराचार्य पद पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की नियुक्ति हुई थी। लेकिन पट्टाभिषेक पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई है। काशी विद्वत परिषद भी इस पट्टाभिषेक का समर्थन नहीं करती। साथ ही इस पट्टाभिषेक में शामिल होने के लिए परिषद ने किसी भी पदाधिकारी या सदस्य को अनुमति नहीं दी थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को परिषद मानती है साथ ही अपील भी करता है कि लोग कोर्ट के फैसले को मानें।

    इस बारे में काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी ने कहा कि ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य पद पर विवाद से परिषद का कोई संबंध नहीं है। काशी विद्वत परिषद के सामने भविष्य में कोई प्रस्ताव या जिज्ञासा आती है तो मठाम्नाय महानुशासनम् ग्रंथ (आदि शंकराचार्य द्वारा शंकराचार्य के पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया संबंधी ग्रंथ) को आधार मानकर ही परिषद अपने विचार स्थापित करेगी।

    सर्वविदित है कि शंकराचार्य के पट्टाभिषेक में काशी विद्वत परिषद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शंकराचार्य भारतीय सनातन संस्कृति के मूल आधार होते हैं इसलिए इनकी चयन प्रक्रिया परदर्शी ढंग से चतुष्पीठ के शंकराचार्य और परिषद के विद्वानों की उपस्थित में शास्त्रार्थ के बाद होनी चाहिए।

    शीर्ष धार्मिक पदों को राजनीतिक द्वेष और उठापटक से दूर रखें- महंत जन्मेजयशरण

    अयोध्या : ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य के रूप में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के पट्टाभिषेक पर रोक से अयोध्या के रसिक पीठाधीश्वर एवं जानकी घाट बड़ा स्थान के महंत जन्मेजयशरण आहत हैं। उन्होंने कहा कि न्यायालय का निर्णय सिर माथे पर है और यह निर्णय तो सर्वोच्च न्यायालय का है। उस पर कुछ कहने का सवाल ही नहीं उठता, ¨कतु न्यायालय में ऐसे मामलों को लेकर जाना मर्यादित नहीं है। शंकराचार्य का पद सनातन सांस्कृतिक परंपरा का बेहद सम्मानित पद है और उस पद को लेकर खींचतान और निजी स्वार्थ के लिए उसकी मर्यादा से खिलवाड़ उचित नहीं है। उन्होंने शासन- प्रशासन और संत समाज से अपेक्षा जताई कि शीर्ष धार्मिक पदों को राजनीतिक द्वेष और उठापटक से दूर रखें।

    उत्‍तराखंड में भी विवाद

    सोमवार को ज्योतिर्मठ के रविग्राम स्थित जेपी मैदान में संत महासम्मेलन का आयोजन हो रहा है। जिसको लेकर स्वामी श्री 1008 अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज के निवेदन पर दक्षिणाम्नाय श्रृंगेरी शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी विधुशेखर भारती जी महाराज, स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जोशीमठ पहुंचे हैं। ज्योतिष्पीठ (जोशीमठ) के नए शंकराचार्य को लेकर विवाद गरमाया हुआ है। वहीं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद वर्तमान में उत्‍तराखंड के चमोली जिले में हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने लगाई है पट्टाभिषेक पर रोक

    उत्‍तराखंड में ज्‍योतिष्‍पीठ में नए शंकराचार्य के रूप में स्‍वामी अविमुक्‍तेश्‍वरानंद सरस्‍वती का पट्टाभिषेक का कार्यक्रम होने जा रहा था, लेकिन उससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने इस आयोजन पर रोक लगा दी है। जिसके बाद से यह विवाद गरमाया हुआ है। वहीं सोमवार को स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती अन्‍नपूर्णा मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचे, लेकिन उन्‍हें मंदिर में दर्शन नहीं करने दिया गया। इस दौरान मंदिर का दरवाजा बंद रहा और पुजारी ऋषि प्रसाद सती ने मंदिर का दरवाजा नहीं खोला। इसके बाद स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती बाहर से ही हाथ जोड़कर वापस लौट आए।