वाराणसी में लोलार्क षष्ठी पर स्नान को लेकर असमंजस, 12 सितम्बर को है संतति कामना का पर्व
Lolark Sashthi In Varanasi भाद्रपद शुक्ल षष्ठी को काशी में संतति कामना का पर्व सूर्य षष्ठी मनाया जाता है। तिथि विशेष पर भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में स्नान-दान यहां विराजमान लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन-पूजन व अनुष्ठान के विधान के कारण इसे लोलार्क षष्ठी भी कहा जाता है।

वाराणसी, जेएनएन। भाद्रपद शुक्ल षष्ठी को काशी में संतति कामना का पर्व सूर्य षष्ठी मनाया जाता है। तिथि विशेष पर भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में स्नान-दान, यहां विराजमान लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन-पूजन व अनुष्ठान के विधान के कारण इसे लोलार्क षष्ठी भी कहा जाता है। षष्ठी तिथि इस बार 12 सितंबर को मिल रही है। इस तिथि पर स्नान के लिए रेला उमड़ता है। पूर्व रात्रि से ही कतार लगती है और शाम तक विधान पूरे किए जाते हैं। भदैनी व असि क्षेत्र के चहुंओर मेला लगता है। भदैनी से लेकर असि चौमुहानी तल लंबी कतार लगी रहती है। कामना पूर्ति पर भी कुंड में स्नान व बच्चे का मुंडन के साथ ही लोलार्केश्वर महादेव को कड़ाही भी चढ़ाते हैं। हालांकि कोरोना बंदिशों के कारण इस बार दूसरे साल भी स्नान पर्व को लेकर असमंजस की स्थिति है। इसकी प्रशासन स्तर पर अब तक अनुमति नहीं मिल सकी है।
कारण यह कि लोलार्केश्वर महादेव मंदिर प्रबंधन ने अब तक इसकी अनुमति के लिए आवेदन तक नहीं किया है और न ही प्रशासन का इस ओर ध्यान है। महंत अवशेष पांडेय बताते हैं कि यदि मैं अनुमति मांगता हूं तो प्रशासन की ओर से सारी जिम्मेदारी मुझ पर डाल दी जाएगी। यदि प्रशासन अनुमति देगा तो कोविड गाइड लाइन के अनुसार मेले का आयोजन किया जाएगा। दूसरी तरफ स्थानीय थाना प्रभारी भेलूपुर रमाकांत दुबे के अनुसार अभी स्नान के बाबत जिला प्रशासन की ओर से अनुमति नहीं दी गई है। एेसे में कुछ कहा नहीं जा सकता।
ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी बताते हैं कि लोलार्क कुंड में व्रत पूर्वक सविधि स्नान-दान, फल का त्याग और लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन से भगवान सूर्य की कृपा से गोद अवश्य भरती है। स्कंद पुराण के काशी खंड के 32वें अध्याय में उल्लेखित है कि इस कुंड परिसर में स्थित मंदिर में माता पार्वती ने स्वयं शिवलिंग पूजन किया था। यह भी माना जाता है कि धरा पर ऊर्जा के स्रोत भगवान भाष्कर की पहली किरण लालिमा इस स्थान पर ही पड़ी थी, अतः इसे सूर्य लोल कहा गया। यही नहीं भगवान सूर्य का चक्र भी इसी कुंड में गिरा था और इसे लोलार्क कुंड कहा गया।
शास्त्रीय कथा यह भी है कि विद्युन्माली दैत्य शिव भक्त था। इस दैत्य को भगवान सूर्य ने हरा दिया। इससे क्रोधित हो कर भगवान शिव हाथ में त्रिशूल लेकर सूर्य की ओर दौड़ पड़े। सूर्य भागते-भागते पृथ्वी पर इसी स्थान पर आ गिरे थे। इससे इस स्थान का नाम लोलार्क पड़ा। सप्तमी से युक्त भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी की तिथि थी वह। तिथि विशेष पर व्रत पूर्वक स्नान-दान, जप से अक्षय फल प्राप्त होती है। खास यह कि तिथि विशेष पर यदि सूर्य पूजन, गंगा दर्शन और पंचगव्यप्राशन किया जाए तो अश्वमेध यज्ञ के समान फल मिलता है। साधु-संन्यासी भी यहां मोक्ष प्राप्ति के लिए स्नान करते हैं। यहां एक फल त्याग का भी विधान है।
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