चंद्रशेखर देश के ऐसे नेता जो सीधे बने थे प्रधानमंत्री, बलिया से आठ बार रहे सांसद
युवा तुर्क के नाम से मशहूर रहे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की आठ जुलाई को पुण्यतिथि है। चंद्रशेखर से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं जिन्हें आज भी सुनाया जाता है। बलिया के इब्राहिमपट्टी में 17 अप्रैल 1927 को जन्म लिए चंद्रशेखर ने 2007 में आज के दिन अंतिम सांसें लीं थीं।

बलिया [लवकुश सिंह]। Chandrasekhar's death anniversary बात 10 अक्टूबर 2006 की है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर आखिरी बार बलिया आए थे। उन्हें बलिया की मिट्टी से कितना लगाव था इसका उदाहरण भी वह अंतिम यात्रा ही थी। अस्वस्थ हाल में ही उन्होंने दिल्ली से बलिया आने का मन बना लिया था। स्टेशन परिसर भीड़ से खचाखच भरा था। दो घंटे के इंतजार के बाद स्वतंत्रता सेनानी ट्रेन स्टेशन पहुंची। हजारों की भीड़ ट्रेन के उस डिब्बे की ओर बढ़ चली, जिसमें चंद्रशेखर सवार थे। चंद्रशेखर धीरे-धीरे गेट पर आए और भीड़ को देख ट्रेन के गेट पर ही फफक-फफक कर रो पड़े। कुछ देर के लिए वहां अजीब सा सन्नाटा पसर गया। सबकी आंखें द्रवित हो गईं थीं।
लोकतांत्रितक मूल्यों की राजनीति पर दिया जोर
सिताबदियारा के जयप्रकाशनगर में स्थित जेपी ट्रस्ट के व्यवस्थापक अशोक सिंह कहते हैं कि चंद्रशेखर ने हमेशा शक्ति व पैसे की राजनीति को दरकिनार किया। सामाजिक बदलाव व लाेकतांत्रिक मूल्यों की राजनीति पर जोर दिया। वह ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने कांग्रेस का अभिन्न अंग रहते हुए भी युवा साथियों के माध्यम से देश को समाजवादी दिशा में ले जाने का प्रयास किया। जब उन्हें लगा कि कांग्रेस को कुछ निरंकुश ताकतें अपने हिसाब से चलाना चाहती हैं तो वे बिना वक्त गंवाए देश को उबारने के लिहाज से जयप्रकाश नारायण के साथ आकर खड़े हो गए। इसकी कीमत उन्हें जेल में नजरबंदी के रूप में चुकानी पड़ी। इसके बावजूद भी वे झुके नहीं बल्कि समाजवाद के प्रति उनकी धारणा और बढ़ गई।
सिद्धांतों से कभी नहीं किया समझाैता
1977 से आठ बार बलिया के सांसद रहे चंद्रशेखर 1984 में पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद बलिया में लोकसभा का चुनाव हार गए थे। इसके बावजूद उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
उप सभापति ने लिखी है किताब
राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश ने चंद्रशेखर पर पुस्तक ‘चंद्रशेखर द लास्ट आइकन ऑफ आइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स’ लिखी है। चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने थे तो हरिवंश उनके अतिरिक्त सूचना सलाहकार भी थे। इस पुस्तक का विमोचन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। चंद्रशेखर की भारत यात्रा को याद करते हुए पीएम मोदी ने कहा था..आज छोटा-मोटा लीडर भी पदयात्रा करे तो 24 घंटे टीवी पर चलता है। चंद्रशेखर जी ने पूर्णतया गांव, गरीब, किसान को ध्यान में रखकर भारत यात्रा की। दरअसल, उन्हाेंने छह जनवरी 1983 को कन्याकुमारी के विवेकानंद स्मारक से भारत यात्रा शुरू की थी और करीब 4200 किमी की यह पदयात्रा 25 जून 1984 को दिल्ली के राजघाट पर समाप्त हुई थी। उसमें पांच बुनियादी मसले थे-सबको पीने का पानी, कुपोषण से मुक्ति, हर बच्चे को शिक्षा, स्वास्थ्य का अधिकार, सामाजिक समरसता लेकिन विडंबना देखिए इतनी महत्वपूर्ण यात्रा को सियासी पन्नों में दफना दिया गया।
पूरी तरह फियरलेस थे चंद्रशेखर
राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश कहते हैं कि चंद्रशेखर का जीवन दर्शन यह है कि वो पूरी तरह फियरलेस थे। चाहे अपनी बात को लेकर सत्ता के शिखर पर बैठे लोगों से टकराने का मामला हो या फिर अपनी दोस्ती को लेकर, वो अटलबिहारी वाजपेयी को सार्वजनिक तौर पर गुरु कहते थे, हालांकि राजनीतिक दर्शन भिन्न होने के कारण आलोचना से परहेज भी नहीं करते थे। वो खुद मानते थे कि सार्वजनिक जीवन में आलोचना होनी चाहिए, लेकिन राजनीति के मायने उनके लिए विशेष थे। चंद्रशेखर ने अपने विचारों से देश में क्रांति लाने का प्रयास किया।
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