Azad Birth Anniversary: पांच दशक से डबल लाक में बंद हैं आजाद की अस्थियां, काशी से जुड़ी एक अमर कहानी
महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद का अस्थि कलश जो पांच दशक से लखनऊ के राज्य संग्रहालय में बंद है आज भी उनकी शहादत की याद दिलाता है। आज़ाद ने अंग्रेजों के हाथों न पकड़े जाने की कसम खाई थी। उनके अंतिम संस्कार के बाद अस्थि कलश को काशी लाया गया था लेकिन आज तक उसे उचित सम्मान नहीं मिला है। काशी जो आज़ाद की कर्मभूमि थी से उनका गहरा नाता था।

महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के नाम से ब्रितानिया पुलिस तक खौफ खाती थी। आजाद ने कसम खाई थी कि उनके जिंदा शरीर को ब्रितानिया पुलिस छू तक नहीं सकती। मां भारती के उस अमर सपूत का अस्थिकलश लखनऊ के चिङियाघर स्थित राज्य संग्रहालय की तीसरी मंजिल पर पांच दशक से डबल लाक में बंद है।
वास्तव में आजाद की शहादत के बाद किसी की हिम्मत न हुई कि अंग्रेजों से उनका पार्थिव शरीर मांग सके। कमला नेहरु ने बनारस में पुरुषोत्तम दास टंडन से आजाद के सगे फूफा शिवविनायक मिश्र को संदेश भेजवा कर इलाहाबाद बुलवाया। वहां पहुंचने तक आजाद के शव दाह का उपक्रम शुरू था।
मिश्रा जी ने वहां मौजूद अधिकारियों से अपने व आजाद के बीच संबंध को बताया और हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार की इच्छा जताई। आग्रह स्वीकार हुआ और उन्होंने संगम तट पर आजाद के मृत शरीर का दाह संस्कार किया। साथ ही अस्थि कलश लेकर काशी आ गए।
देश की आजादी के इंतजार में उन्होंने अस्थि कलश विसर्जित नहीं किया। शिवविनायक के निधन के बाद आजाद के फुफेरे भाइयों राजीव लोचन मिश्र, फूलचंद मिश्र व श्यामसुंदर मिश्र ने 10 जुलाई 1976 को अस्थि कलश राज्य सरकार के प्रतिनिधि सरदार कुलतार सिंह को समर्पित कर दिया।
एक अगस्त 1976 को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से एक शोभायात्रा निकाली गई जो 10 अगस्त 1976 को उत्तर प्रदेश के राज्य संग्रहालय में आकर समाप्त हुई। वहां आज भी यह अस्थि कलश रखा हुआ है। चंद्रशेखर आजाद इस महत्वपूर्ण निशानी के साथ शिवविनायक मिश्र का हस्त लिखित पत्र भी है जो उन्होंने शहीदे आजम भगत सिंह के भाई कुलतार सिंह को सौंपा था।
अस्थिकलश के दर्शन के लिए पहले प्रार्थनापत्र देना होता है। इसके बाद टीम गठित होती है। उसकी मौजूदगी में ही दर्शन कराया जाता है। विशेष यह कि हिंदू धर्म में अस्थि कलश को गंगा या पवित्र नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। रखते भी हैं तो 24 घंटे उसका पूजन किया जाता है और अखंड ज्योति अस्थि कलश के सामने जलती रहती है, लेकिन आजाद के अस्थिकलश को आजादी के 78 साल बाद भी यथोचित सम्मान नहीं मिल सका है।
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ था। उनके पिता ने आजाद को किशोरावस्था में उनके फूफा के यहां बनारस पढ़ने भेजा था। उस वक्त आजाद के फूफा काशी में पियरी पर रहते थे। आजाद को आजाद नाम काशी ने ही दिया था। काशी आजाद की कर्मभूमि थी। आजाद का अस्थि कलश का कलश आज जिस हाल में रखा हुआ है, निश्चित ही उनकी आत्मा को शांति नहीं मिल रही होगी और कह सकते हैं कि आजाद की आत्मा आज भी भटक रही है।
प्रस्तुति:नित्यानंद राय एडवोकेट, पूर्व महामंत्री बनारस बार एसोसिएशन
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।