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    Chakra Pushkarini in Varanasi : सजेगी मां मणिकर्णिका की झांकी, गंगा के अवतरण से पूर्व का है तीर्थ कुंड

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Mon, 14 Mar 2022 06:43 PM (IST)

    वाराणसी में मणिकर्णिका चक्रपुष्करिणी तीर्थ कुंड मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने के पहले का है। अनादिकाल में भगवान विष्णु ने अपने चक्र से खोदा था। श् ...और पढ़ें

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    वाराणसी में मणिकर्णिका चक्रपुष्करिणी तीर्थ कुंड मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने के पहले का है।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी : अनादि तीर्थ मणिकर्णिका चक्रपुष्करिणी तीर्थ (कुंड) का वार्षिक श्रृंगार परंपरानुसार 14 मार्च को रंगभरी एकादशी की रात होगा। इस संबंध में काशी तीर्थ पुरोहित सभा के अध्यक्ष व कुंड के प्रधान तीर्थ पुरोहित पं. मनीष नंदन मिश्र ने बताया कि रंगभरी एकादशी के दिन काशी तीर्थ पुरोहित सभा की ओर से मां मणिकर्णिका का षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाएगा। साथ ही गुलाल सहस्त्रार्चन व वृहद श्रृंगार के बाद महाआरती की जाएगी।

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    उन्होंने बताया कि इस अवसर पर उनके सान्निध्य में 21 वैदिक आचार्यों के आचार्यत्व में रुद्री पाठ का आयोजन भी होगा। महाश्रृंगार की झांकी रात आठ बजे से प्रारंभ होगी, जिसका दर्शन रात्रिपर्यंत तक चलता रहेगा। उन्होंने बताया कि इस अवसर पर कुंड में स्थित उत्तराभिमुख गोमुख का भी दर्शन होगा। ज्ञातव्य है कि गोमुख का दर्शन-पूजन वर्ष में महज दो बार रंगभरी एकादशी व अक्षय तृतीया के दिन ही सुलभ होता है। श्रद्धालुगण इस पुनीत गोमुख व कुण्ड के दर्शन कर पुण्य के भागी बने।

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    कुंड के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पं मिश्र ने बताया कि यह कुंड मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने के पहले का है। अनादिकाल में भगवान विष्णु ने अपने चक्र से खोदा था। उसके बाद भगवान विष्णु 60 हजार वर्षों तक तपस्यालीन हुए। इस दौरान उनके तन से निकले पसीने से कुंड का जल भरा। मान्यता है कि कुंड के जल का स्त्रोत हिमालय (बद्रिकाश्रम) से आता है।

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    श्रृंगार वाले दिन देखते ही देखते समुद्र में आए ज्वार-भाटे की तरह धवल जल से लबालब भर जाएगा। उसी कुंड में डुबकी लगाने और मणिकर्णिका माता के श्रृंगार पूजा करने के लिए लालायित रहते हैं। श्रद्धालु कुंड के जल को प्रसाद स्वरूप पात्र में भरकर घर ले जाते हैं और सबमें वितरित करते हैं।

    कुंड से प्रकट हुई थीं माई : मान्यता है कि मणिकर्णी माई की अष्टधातु की प्रतिमा प्राचीन समय में इसी कुंड से निकली थी। ढाई फीट ऊंची यह प्रतिमा वर्षभर ब्रह्मनाल स्थित मंदिर में विराजमान रहती है। सिर्फ अक्षय तृतीया को सवारी निकालकर पूजन-दर्शन के लिए प्रतिमा कुंड स्थित 10 फीट ऊंचे पीतल के आसन पर विराजमान कराई जाती है। माना जाता है कि मणिकर्णी माई के स्नान से तीर्थ कुंड का जल अगले एक वर्ष के लिए फिर सिद्ध हो जाता है और इसी जल में स्नान करने से श्रद्धालुओं के पाप-कष्ट दूर होते हैं।