किस-किस का बोझ पीठ भर ढोएं दारोगा जी? बोले- 'हाईकोर्ट में जेब तो मेरी ढीली होगी'
वाराणसी में पुलिस पर काम का बोझ और वरिष्ठ अधिकारियों की अपेक्षाओं का दबाव है। एक घटना में, एक महिला चौकी प्रभारी को एक माननीय के हस्तक्षेप के कारण कुर ...और पढ़ें

पढ़ें राकेश श्रीवास्तव का इस सप्ताह का वर्दी वाला कालम।
जागरण, राकेश श्रीवास्तव, वाराणसी। वर्दी वाले पर काम का बोझा अधिक है और वरिष्ठों की अपेक्षाओं का बोझ तो कहना ही क्या। इस बार वर्दी वाला दुखी भी है और अपने दुखों की सीमा बताते हुए अघा भी नहीं रहा। पढ़िए इस सप्ताह का वर्दी वाला कालम -
पल-पल रंग बदलते माननीय
एक माननीय इन दिनाें पल-पल रंग बदलने लगे हैं। उनके व्यवहार से पुलिस अधिकारी भी परेशान हैं। हाल के दिनों ऐसा ही एक वाकया हुआ। पुलिस चौकी क्षेत्र में एक विवाद की खबर पर महिला चौकी प्रभारी मौके पर पहुंची। वहां ऐसी परिस्थिति बनी कि विवाद माननीय तक जा पहुंचा क्योंकि विवाद में एक पक्ष माननीय का देवतुल्य कार्यकर्ता निकला। फिर क्या था। माननीय ने पावर दिखाया और मैडम की कुर्सी छिन गई।
यह स्थिति इसलिए भी बनी, क्योंकि मैडम विवाद की वजह जानने और उसका तापमान समझते हुए निबटाने की दिशा में कदम न बढ़ाने की गलती कर बैठीं। लेकिन जब तब उन्हें गलती का एहसास होता, देर हो चुकी थी। कार्रवाई की असलियत पता चली तो भागकर माननीय की शरण में पहुंचीं। वहां खुद को पाक-साफ बताते हुए कुर्सी दिलाने की गुहार लगाई तो माननीय ने रंग बदला और कुर्सी वापस दिलाने में जुट गए। हालांकि वे सफल तो नहीं हो पाए, लेकिन मैडम की उम्मीद जरूर जग उठी कि आज नहीं कल...।
किस-किस का बोझ पीठ भर ढोएं दारोगा जी
‘दारोगा’ शब्द सुनने में दमदार प्रतीत होता है। सभी का ऐसा मानना है क्योंकि दारोगा और सिपाही ही महकमे की रीढ़ होते हैं। अभी हाल में बस से प्रयागराज जाने के दौरान मुझे पता चला कि दारोगा अपनी पीठ पर कई लोगों का बोझ लिए घूमते हैं। दरअसल, बस में बगल की सीट पर वर्दी में दारोगा जी आ बैठे। बातचीत में दम दिखाने के बजाय मुरझाए नजर आए।
मेरी बेचैनी बढ़ी तो कुरेदा, कहा कि दम तो दारोगाओं में ही होता है। जवाब मिला, काहे का दम, एसीपी साहब के काम से जा रहा हूं हाईकोर्ट। फिर तो और अच्छा घूम-फिर लेंगे। दारोगा जी का दर्द छलका, बोले-हाईकोर्ट में जेब तो मेरी ढीली होगी। ऐसा क्यों, के जवाब में बोले कि साहब एससी-एसटी, दहेज हत्या आदि की जांच करते हैं। इसमें एक पक्ष हाईकोर्ट भागता है, जिसमें अधिकांश साहबों के जवाब के खर्च का बोझ दारोगा ही तो उठाते हैं। यह तो बड़ी ज्यादती है, हुक्मरानों को सोचना चाहिए।
नए गिरोह का राजफाश,ना बाबा...
कफ सीरप तस्करी की गुत्थी उलझती ही जा रही है। इसलिए कि सौ करोड़ की तस्करी कथित रूप से दो हजार करोड़ तक जा पहुंची। पुलिस कमिश्नरेट वाराणसी के कोतवाली, राेहनिया और रामनगर थानों में मुकदमे दर्ज हैं। कोतवाली में दर्ज केस ने तो पुलिस अधिकारियों तक को ऐसा उलझाया कि कई को खांसी आने लगी है।
वाराणसी को कौन कहे, लखनऊ तक के साहब दुबई में बैठे सरगना से कोर्ट में दो-दो हाथ करने के लिए मैराथन मीटिंग कर रहे। धड़कनें सबकी ऐसी बढ़ी हैं कि एक अधिकारी ने यहां तक कह दिया कि नए गिरोह का राजफाश, ना बाबा...। अफसरों के इस मोड ने नीचे वाले भी हैरत में हैं। खुले रूप से तो नहीं, लेकिन शुभम को दुबई में कुछ दिन और सुरक्षित बने रहने को शुभकामनाएं जरूर दे रहे क्योंकि सरगना की गिरफ्तारी के साथ ही फिर से मचेगा गुडवर्क का शोर।
मूड खराब कर देती है साहब की उल्टी बात
सरकार का जोर इन दिनों सोशल पुलिसिंग पर है। मसलन, ऐसा जतन करने का कि पुलिस केवल कानून लागू करने की बजाय जनता से मिलकर काम करे। यूं कहें कि जनता पुलिस को मित्र समझे और अपराधियों में उसका खौफ हो। लेकिन जब थानेदार ही इस बात से अनभिज्ञ होंगे, तो फिर सरकार की सोच का भगवान ही मालिक होंगे। वरुणा जोन के एक ऐसे ही थानेदार अपनी उल्टी बात को लेकर सिपाही-दारोगा के बीच सुर्खियों में हैं।
हुआ यूं कि थानेदार ने कुछ दिन पूर्व फोर्स को थाने पर डंडे लेकर बुला लिया और खुद निर्धारित समय पर नहीं पहुंचे। इंतजार के बाद फोर्स में कौतूहल हुई कि कोई साहब से पूछे क्यों नहीं आए? एक दीवानजी ने कहा, इंतजार करें तो बेहतर होगा। फोन करेंगे तो साहब की उल्टी बात आपका बना-बनाया मूड खराब कर देगी। ये वही साहब हैं, जिन्हें कोतवाली से साइडलाइन किया गया था। अब कुर्सी मिल गई तो टीमवर्क की बाट लगा रहे।

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