अल्जाइमर डिमेंशिया के मरीजों के लिए आशा की किरण बना ब्राह्मी घृत, बीएचयू के चिकित्सकों के उपचार से 47 रोगियों में दिखा सुधार
दुनिया भर में असाध्य माने जाने वाले अल्जाइमर डिमेंशिया के मरीजों के लिए आशा की किरण दिखने लगी है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय के मानस रोग विभाग के चिकित्सकों ने ब्राह्मी घृत और बस्ति के लगातार तीन माह के प्रयोग से मरीजों में सुधार पाया।

जागरण संवाददाता, वाराणसी : दुनिया भर में असाध्य माने जाने वाले अल्जाइमर डिमेंशिया के मरीजों के लिए आशा की किरण दिखने लगी है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदर लाल चिकित्सालय में आयुर्वेद संकाय के मानस रोग विभाग के चिकित्सकों ने ब्राह्मी घृत और बस्ति के लगातार तीन माह के प्रयोग से मरीजों में सुधार पाया। द्वितीयक स्तर (सेकंड स्टेज) के 47 मरीजों की याददाश्त में सुधार हुआ और वे अब सामान्य जीवन जीने लगे हैं। यह शोध किया है मानस रोग विभाग के प्रो. जेएस त्रिपाठी व उनकी शोध छात्रा रहीं डा. ऋचा त्रिपाठी ने। अगले चरण के मरीजों के उपचार के लिए उनका शोध जारी है।
पांच वर्ष लगे शोध में
डा. ऋचा त्रिपाठी बताती हैं कि इस शोध में पांच वर्ष लगे। पहले दो वर्ष चूहों पर विभिन्न प्रकार से प्रयोग कर दवा का प्रभाव देखा गया। चूहों के पांच समूहों में पहले डिमेंशिया रोग उत्पन्न किया गया। इसके बाद एक समूह को सामान्य तौर पर इस बीमारी में दी जाने वाली दवाएं दी गईं, दूसरे समूह को ब्राह्मी घृत दिया गया।
ब्राह्मी घृत पाने वाले चूहे जल्द ठीक होते दिखे। उनके मस्तिष्क का परीक्षण करने पर पता चला कि ब्राह्मी घृत के प्रभाव से चूहों के मस्तिष्क की कोशिकाओं का क्षय न सिर्फ रुक गया, बल्कि मृत कोशिकाओं के स्थान पर नई कोशिकाएं भी बनने लगीं। इससे इन चूहों में सामान्य व्यवहार शीघ्र वापस आ गया। चूहों पर सफलता के बाद इसका प्रयोग इसी तरह 40 से 86 वर्ष आयु के दो समूहों के मरीजों पर किया गया। ब्राह्मी घृत से उपचारित मरीजों में सामान्य प्रचलित एलोपैथ दवाओं वाले मरीजों की अपेक्षा बिना किसी साइड इफेक्ट के सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिला।
शीघ्र लाभ के लिए दी गई हपुषादि बस्ति
डा. त्रिपाठी बताती हैं कि जिन मरीजों के एक समूह को पंचकर्म में वर्णित हपुषादि बस्ति भी दी गई, इससे दवा का प्रभाव तेज हो गया।
क्या है ब्राह्मी घृत
प्रो. जेएस त्रिपाठी बताते हैं कि ब्राह्मी घृत एक शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि है। प्राचीन काल से इसका प्रयोग मस्तिष्क की क्षमता बढ़ाने, याददाश्त तेज करने में होता रहा है। इसके कई प्रकार हैं, अल्जाइमर डिमेंशिया के माइल्ड काग्निटिव इम्पेयर्मेंट वाले मरीजों पर अष्टांग हृदय ग्रंथ में वर्णित प्रकार का घृत प्रयोग किया गया।
अल्जाइमर डिमेंशिया
अल्जाइमर डिमेंशिया सामान्य तौर पर भूलने की एक बीमारी है। इसमें व्यक्ति को पूर्व की बातें तो याद रहती हैं, तत्काल की भूल जाती हैं। बटन बंद करने का क्रम, रास्ते, लोगों के नाम, इत्यादि के बारे में याददाश्त मंद पड़ जाती है। पहले यह वृद्धावस्था की बीमारी मानी जाती थी लेकिन अब 40 वर्ष की आयु तक के लोग भी इसकी चपेट में आने लगे हैं। प्रो. त्रिपाठी बताते हैं कि पहले यह पश्चिमी देशों में ज्यादा थी, अब भारत में भी इसके मरीज तेजी से बढ़ने लगे हैं। इसका मुख्य कारण अनियमित दिनचर्या, खान-पान आदि है।
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