बीएचयू में कैंसर के मरीजों के लिए वरदान बनी ब्रैकीथेरेपी, कोरोना काल में भी थेरेपी से चलता रहा इजाज
चिकित्सा विज्ञान संस्थान बीएचयू के रेडियोथेरेपी एवं रेडिएशन विभाग की ओर से संचालित ब्रैकीथेरेपी मशीन मरीजों के लिए वरदान साबित हो रही है। कोरोना काल में जहां तमाम अस्पतालों में ओपीडी व अन्य सेवाएं बंद थी वहीं इस विभाग में रेडियोथेरेपी व ब्रैकीथेरेपी लगातार जारी रही।

वाराणसी, मुकेश चंद्र श्रीवास्तव। चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू के रेडियोथेरेपी एवं रेडिएशन विभाग की ओर से संचालित ब्रैकीथेरेपी मशीन मरीजों के लिए वरदान साबित हो रही है। कोरोना काल में जहां तमाम अस्पतालों में ओपीडी व अन्य सेवाएं बंद थी वहीं इस विभाग में रेडियोथेरेपी व ब्रैकीथेरेपी लगातार जारी रही। 2017 में स्थापित की गई इस अत्याधुनिक मशीन से अभी तक तीन हजार से अधिक ब्रैकीथेरेपी की जा चुकी है।
दो प्रकार की होती है ब्रैकीथेरेपी
विभाग के अध्यक्ष प्रो. सुनील चौधरी व प्रो. ललित मोहन अग्रवाल बताते हैं कि इस विधि से रेडियोएक्टिव सोर्स को शरीर के किसी भी अंग के संपर्क में अथवा गुहा में रखकर उपचार किया जाता है। ब्रैकीथेरेपी दो प्रकार से होती है। पहला इंटरस्ट्रीस्यिल (इसमें नीडल टिश्यू के अंदर डालते हैं जहां पर ट्यूमर है), है। इसमें रेडियोएक्टिव सोर्स को ठोस अंग के सीधे संपर्क में रखते हैं। दूसरा तरीका एण्ट्रालुमिनल (इसमें शरीर के अंदर पहले से मौजूद छेद जैसे खाने की नली आदि में सीधे पाइप डालते हैं है। इसमें विकिरण सोर्स को शारीरिक गुहा ( कैविटी) के अंदर रखा जाता है। कंप्यूटर से संचालित इस थेरेपी के माध्यम से ट्यूमर या उसके आसपास में रेडिएशन डाला जाता है, जो जरूरत के अनुसार वहां पर रेडिएशन डोज प्रदान करती है। ओटी के माध्यम से विकिरण सोर्स का एप्लीकेटर ट्यूमर के अंदर डाला जाता है।
एक दिन में दो बार करना पड़ता है उपचार
एक दिन में मरीज का इस प्रकार एक बार या जयादा बार उपचार किया जाता है। इस विधि से मुंह, जीभ, स्तन, बच्चेदानी, त्वचा आदि के कैंसर का इलाज़ किया जाता है। प्रदेश के बहुत ही कम संस्थानों में इंटरस्ट्रीस्यिल तकनीक से मरीजों का उपचार किया जाता है। यद्यपि अन्य थेरेपियों से यह काफी सस्ती व गुणवत्ता वाली मानी जाती है।
रोजाना 3-4 मरीजों को ब्रैकीथेरेपी
बताया गया कि वैसे यह थेरेपी पहले से ही चल रही थी, लेकिन चार साल पहले विभाग में नई मशीन एचडीआर (हाई डोज रेट) मशीन मंगाई गई । इससे रोजाना 3-4 मरीजों का उपचार किया जाता है। बताया गया कि जब कोरोना के समय तमाम विभागों में इमरजेंसी को छोड़कर अन्य सेवाएं बद थी तब भी यहां पर परामर्श एवं ब्रैकीथेरेपी निरंतर चलती रही है। वार्ड में भी भर्ती मरीजों का इलाज सुचारू रूप से होता रहा।

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