BHU की 'मीठी क्रांति'! भारतीय शहद की मिठास पहुंचेगी अमेरिका-यूरोप... बनेगा अंतरराष्ट्रीय ब्रांड
वाराणसी में शहद उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बीएचयू और एनबीआरआइ मिलकर काम कर रहे हैं। शहद की गुणवत्ता बढ़ाकर इसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पहुंचाया जाएगा। इसके लिए एफएसएसएआइ के साथ मिलकर सौ करोड़ का प्रस्ताव भेजा गया है। साथी लैब में आधुनिक मशीनों से शहद की जांच होगी और मधुमक्खी पालकों को मुफ्त जांच की सुविधा मिलेगी। सरकार का लक्ष्य शहद निर्यात को बढ़ाना है।

संग्राम सिंह, वाराणसी। सरकार की ''मीठी क्रांति'' की परिकल्पना के अनुरूप शहद उत्पादन एवं निर्यात को प्रोत्साहित करने की तैयारी है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय और नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआइ) लखनऊ के शोधकर्ता गुणवत्ता बढ़ाकर अमेरिका और यूरोप समेत 80 देशों के अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत के शहद से मिठास घोल सकेंगे।
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) के साथ मिलकर बीएचयू के सेंट्रल डिस्कवरी सेंटर ने सौ करोड़ का प्रस्ताव भेजा है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, आयुष और ग्रामीण विकास मंत्रालय को एकमंच पर लाकर शहद की गुणवत्ता की जांच और निर्यात प्रोत्साहन की दिशा में आगे बढ़ने की योजना बनाई है।
सेंटर के परिष्कृत विश्लेषणात्मक एवं तकनीकी सहायता संस्थान (साथी) लैब में तीन आधुनिक मशीनें स्थापित की गई हैं, अभी तक यह मशीनें फूड और फार्मा कंपनियों के सेंपल की जांच कर रहीं थी, लेकिन अब देश में पहली बार इनका इस्तेमाल मधु की जांच में किया जाएगा।
पहले चरण के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के मधुमक्खी पालकों की सूची तैयार हो रही है। एक सप्ताह पहले प्रथम बैठक हो चुकी है, 150 बड़े मधुमक्खी पालकों ने योजना पर काम करने की सहमति जताई है। वह जो मधु उत्पादन करते हैं, अभी उनके उत्पादित शहद की शुद्धता, मीठापन और औषधीय गुणों की जांच की कोई व्यवस्था नहीं है।
यही वजह है कि वह निर्यात काउंसिल की कसौटी पर उनका शहद फेल हो जा रहा है। प्रदेश के हर जिले से सौ से दो सौ मधुमक्खी पालकों से संपर्क किया जा रहा है। उनके मधु की यहां निश्शुल्क जांच की जाएगी ताकि गुणवत्ता में वृद्धि हो सके।
बता दें कि वर्तमान समय में देश में शहद निर्यात 74 मीट्रिक टन है, इससे करीब 1200 करोड़ का व्यवसाय होता है। केंद्र सरकार की मंशा है कि एक लाख मीट्रिक टन निर्यात हो। ''साथी'' के चीफ आपरेटिंग आफिसर सैकत सेन ने बताया कि जो सेंपल जांचेें जाएंगे, वह सुरक्षित रखे भी जाएंगे।
मधुपालक द्वारा शहद एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल भेजा जाएगा तो काउंसिल स्तर से निर्यात किए जा रहे शहद का सेंपल लैब में आएगा। दोनों सेंपलों की रिपोर्ट के आधार पर ही शहद निर्यात की एनओसी मिलेगी। मधु पालकों का डाटाबेस बनेगा।
गुणवत्ता कमजोर होने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में खा रहे मात
वनस्पति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. जेपी सिन्हा ने बताया कि गुणवत्ता मेें कमी होने की वजह से ही भारतीय शहद अंतरराष्ट्रीय बाजार में मात खा रहे हैं। न्यूक्लियर मैगनेटिक रेजोनेंस (एनएमआर), आइसोटोप रेशियो मास स्पेक्ट्रोमेट्री (आइआरएमएस) और डीसीएमएस मशीन का उपयोग किया जाएगा। यह मशीनें तीन साल पहले ही संस्थान में स्थापित की गई हैं।
फूड और फार्मा उत्पादों की जांच के लिए ही इनका उपयोग हो रहा है। ऐसी मशीनों का उपयोग देश के कई शोध संस्थान अध्ययन में करते हैं लेकिन पहली बार यह शहद की गुणवत्ता परखने में इस्तेमाल की जाएंगी।
पैकेट बंद मधु बिक्री के लिए एफएसएसएआइ की सहमति जरूरी
वर्तमान समय में मधुपालकों का शहद 300 से 400 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रहा है। जांच होगी तो शहद की कीमत बढ़ेेगी। देश में सुंदरवन और कश्मीर में उत्पादित शहीद का मूल्य अच्छा मिलता है। विशेषताएं पता होंगी तो पालकों को अच्छी कीमत मिलेगी।
यह जांच से पता चलेगा कि शहद किस परागकण से बना है। एफएसएसएआइ का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए नए मधुपालकों को अधिक जतन करने होते हैं क्योंकि प्रमाण पत्र मिलने के बाद ही पैकेट बंद मधु को बतौर ब्रांड बाजार में बेच सकते हैं।
एफएसएसएआइ सर्टिफिकेट तभी मिलता है, जब मधु की गुणवत्ता को कोई एनएबीएल मान्यता प्राप्त लैब स्वीकृति प्रदान करती है। वर्तमान समय में मधु की जांच बेंगलुरू मेें होती है। प्राथमिक रिपोर्ट के बाद एफएसएसएआइ अपनी जांच कराता है और पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही निर्यात की अनुमति प्रदान करता है।
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