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बीएचयू के छात्र प्रोफेसर जयंत नार्लीकर ने दी ब्रह्मांड की आदि न अंत की थ्योरी को पहचान

प्रोफेसर जयंत नार्लीकर का जन्म 19 जुलाई 1938 कोल्हापुर महाराष्ट्र में हुआ था। उन्‍होंने बीएचयू में जीवन के 20 वर्ष गुजारे और उनको पद्मविभूषण वर्ष 2004 में मिला था। आज बिग-बैंग की घटना को ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति का एकमात्र कारण माना जाता है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 19 Jul 2021 08:48 AM (IST)Updated: Mon, 19 Jul 2021 08:48 AM (IST)
प्रोफेसर जयंत नार्लीकर का जन्म 19 जुलाई, 1938 कोल्हापुर, महाराष्ट्र में हुआ था।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। प्रोफेसर जयंत नार्लीकर का जन्म 19 जुलाई, 1938 कोल्हापुर, महाराष्ट्र में हुआ था। उन्‍होंने बीएचयू में जीवन के 20 वर्ष गुजारे और उनको पद्मविभूषण वर्ष 2004 में मिला था। आज बिग-बैंग की घटना को ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति का एकमात्र कारण माना जाता है। इसके अलावा भी कई और सिद्धांत आए। इनमें 1950 के दशक में आया ‘स्थिर अवस्था’ का सिद्धांत को आगे बढ़ाया था। भारत के प्रख्यात खगोलशास्त्री और बीएचयू में 20 वर्षाें तक छात्र जीवन के रूप में गुजारे प्रोफेसर जयंत विष्णु नार्लीकर ने। इस सिद्धांत के मुताबिक ब्रह्मांड का न तो आदि है और न ही अंत और ब्रह्मांड का विस्तार लगातार होता ही जा रहा है।

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सर हर्मन बांडी, थामस गोल्ड और सर फ्रेड होयल को 1945 में एक फिल्म डेड आफ नाइट सबसे पहले यह विचार आया था। बीएचयू के भौतिकशास्त्री प्रो. बी के सिंह बताते हैं कि नार्लीकर ने नब्बे के दशक में इस सिद्धांत के पक्ष में कुछ तर्क देकर उन्होंने दोबारा चर्चा में ला दिया। उन्होंने बिग-बैंग की प्रचलित थ्योरी को नकार होयल के साथ मिलकर क्वासी स्टेडी स्टेट कोस्मोलाजी सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जो कि होयल-नार्लीकर थ्योरी के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस सिद्धांत में नार्लीकर ने बताया कि ब्रह्मांड के अंदर निश्चित समयांतराल में निर्माण की प्रक्रियाएं चलती ही रहती हैं। इन्हें लघु विस्फोट या लघु सृजन कहा जाता है।

इसमें सतत निर्माण की प्रक्रिया भी अनवरत चल रही है और खाली हो रहे स्थानों पर नव पदार्थ बनते ही जा रहे हैं, इसलिए ब्रह्मांड का औसत घनत्व एकसमान सा बना रहता है। प्रो. सिंह बताते हैं कि मानक ब्रह्मांड संबंधी माडल के विपरीत, नार्लीकर जी द्वारा दिया गया सिद्धांत कहता है कि ब्रह्मांड शाश्वत है। प्रोफेसर नार्लीकर के अनुसार, बड़े आकाशीय पिंड में कई मिनी बैंग्स विस्फोट होते हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के निर्माण क्षेत्र (या सी-फील्ड) लगातार बनते रहते हैं। उन्‍होंने बच्‍चों में विज्ञान को लेकर जागरुकता फैलाने वाले कई कार्यक्रमों में हिस्‍सा लिया और विज्ञान के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए दूरदर्शन की कई सीरीज में काम किया। 

नार्लीकर के पिता विष्णु वासुदेव नार्लीकर बीएचयू में गणित के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष थे। स्कूली शिक्षा सेंट्रल हिंदू स्कूल से हुई। वर्ष 1957 में बीएचयू से ही बीएससी करने के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए कैंब्रिज यूनिवर्सटिी चले गए। बाद में खगोलविद होयल ने कैंब्रिज में सैद्धांतिक खगोल विज्ञान संस्थान की स्थापना की और नार्लीकर वहीं पर सदस्य बन गए। बीएचयू की पत्रिका प्रज्ञा के एक अंक ‘यादों की दूरबीन’ नामक लेख में वह लिखते हैं कि आचार्य नरेंद्र देव जब बीएचयू के कुलपति थे तो उनके हाथ से पुरस्कार लेते हुए तस्वीर लेने की बहुत इच्छा थी जो पूरी न हो सकी।


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