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    बीएचयू के विज्ञानियों ने पालीसिस्टिक किडनी रोग के 35 प्रतिशत नए जीनोम वैरिएंट्स की पहचान की

    By shashwat mishraEdited By: Jagran News Network
    Updated: Sat, 20 Dec 2025 12:45 AM (IST)

    संग्राम सिंह जागरण ...और पढ़ें

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    बीएचयू के विज्ञानियों ने पालीसिस्टिक किडनी रोग के 35 प्रतिशत नए जीनोम वैरिएंट्स की पहचान की

    संग्राम सिंह, जागरण : वाराणसी : पालीसिस्टिक किडनी रोग (पीकेडी) लाइलाज और आनुवंशिक है। इसमें किडनी में तरल पदार्थ से भरे कई सिस्ट (गांठें) विकसित हो जाते हैं। इतना ही नहीं किडनी का आकार बढ़ जाता है, उसकी कार्यक्षमता घट जाती है और अंतत: वह फेल हो जाती है। बीएचयू के आनुवंशिक विकार केंद्र के प्रो. परिमल दास, शोधार्थी डा. सोनम राज, डा. चंद्रा देवी और जितेंद्र कुमार मिश्रा ने पालीसिस्टिक किडनी रोग के 35 प्रतिशत नए जीनोम वैरिएंट्स की पहचान की है। यह रोग के उपचार में बड़ी कामयाबी है और इससे इस बीमारी के आनुवंशिक आधार को समझने में मदद मिलेगी।

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    पीकेडी के लिए जिम्मेदार मुख्य जीनों पीकेडी-एक और पीकेडी-दो में कुल 95 डीएनए वैरिएंट्स (उत्परिवर्तन) की पहचान की गई है। इनमें पीकेडी-एक जीन में 67 वैरिएंट्स और पीकेडी-2 जीन में 28 वैरिएंट्स शामिल हैं। इनमें 64 प्रतिशत वैरिएंट्स की पहले रिपोर्ट की जा चुकी है। डा. परिमल ने बताया कि नए डीएनए वैरिएंट्स से रोग के आनुवांशिक पूर्वाग्रहों को परिभाषित किया जा सकता है। आनुवंशिक रूप से संगत किडनी दाता खोजने में मदद मिलेगी। किडनी प्रत्यारोपण के लिए बेहतर मिलान होने से सफल सर्जरी की संभावना बढ़ेगी, किडनी की अस्वीकृति का जोखिम कम होगा। जिन परिवारों में पीकेडी का इतिहास है, वहां बच्चों या युवा वयस्कों में रोग की शुरुआत होने से पहले ही जोखिम का आकलन किया जा सकेगा। समय से उपचार शुरू किया जा सकेगा। इसके अलावा अन्य संभावित जीनों का भी पता लगाया जा रहा है, जो रोग की शुरुआत और प्रगति के लिए जिम्मेदार हैं। यह शोध भविष्य में इस लाइलाज बीमारी के लिए सटीक और व्यक्तिगत उपचार विकसित करने का मार्ग प्रशस्त करेगा। शोध को विश्व के दो ख्यात जर्नल एल्सेवियर और टर्किश जर्नल आफ नेफ्रोलाजी ने प्रकाशित किया है।

    किडनी फेल होने के पांच प्रतिशत मामले पीकेडी की वजह से : डा. परिमल ने बताया कि विश्व में किडनी फेल होने के पांच प्रतिशत मामले पीकेडी के कारण होते हैं। यह रोग पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करता है। अधिकांश पीड़ितों में 30 से 40 वर्ष की आयु तक लक्षण पूरी तरह स्पष्ट नहीं होते। हाई ब्लड प्रेशर के साथ मूत्र में रक्त आना, बार-बार मूत्राशय या किडनी में संक्रमण इसके लक्षण है।

    पीकेडी से हों प्रभावित तो करें जीवनशैली में बदलाव :

    - दिनभर में कम से कम पानी तीन से चार लीटर पानी पिएं, कैफीन युक्त पेय पदार्थों से बचें

    - हाई ब्लड प्रेशर नियंत्रित करें, संक्रमणों का तुरंत इलाज कराएं

    - धूमपान छोड़ें, नियमित व्यायाम करें। वजन नियंत्रण और नमक का सेवन कम करें

    - पीड़ित शारीरिक व्यायाम करें लेकिन किडनी को नुकसान पहुंचाने वाले खेलों से बचें