Varanasi News: BHU में चार वर्ष बाद बना कार्यकारी परिषद, पहली बार राजनीतिक शख्सियत की एंट्री
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में चार साल बाद कार्यकारी परिषद का गठन हुआ है। शिक्षा मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर राजनीतिक व्यक्तियों सहित कई सदस्यों को नियुक्त किया है। पूर्व में उच्च न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप किया था। यह पहली बार है कि स्थायी कुलपति की नियुक्ति से पहले ही ईसी का गठन किया गया है।कार्यवाहक कुलपति प्रो. संजय कुमार अध्यक्ष होंगे।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में करीब चार साल बाद कार्यकारी परिषद यानी ईसी गठित कर दी गई। तत्कालीन कुलपति प्रो. सुधीर कुमार जैन का तीन वर्षीय कार्यकाल बिना ईसी के बीत गया। लोक सभा और विधान सभा से लेकर कई सार्वजनिक मंचों पर जोरदार तरीके से सवाल उठे थे।
पिछले दिनों प्रकरण में हाई काेर्ट ने बीएचयू और शिक्षा मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों को तलब किया था। कार्रवाई की चेतावनी दी। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की अगुवाई वाली संसदीय स्थायी समिति ने भी शिक्षा मंत्रालय के अपर सचिव को फटकारा।
ऐसे में बुधवार को मंत्रालय के सचिव प्रवीण सक्सेना की तरफ से ईसी के गठन की अधिसूचना जारी की गई, लेकिन कई नामों ने चौंका दिया। जानकारों के अनुसार पहली बार राजनीतिक शख्सियत की एंट्री हुई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय, महापौर अशोक तिवारी और भाजपा काशी क्षेत्र के अध्यक्ष व आदर्श जनता महाविद्यालय चुनार मीरजापुर के चेयरमैन दिलीप पटेल को पदेन सदस्य नियुक्त किया गया है।
इनके अलावा पांच अन्य सदस्यों को परिषद में जगह मिली है, इनमेें दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. योगेश सिंह, बीएचयू के सोशियोलाजी विभाग के प्रो. ओमप्रकाश भारतीय और प्रो. श्वेता प्रसाद, बीएचयू के जंतु विज्ञान विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर बेचन लाल और रेडियोथेरेपी एवं रेडिएशन मेडिसिन विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर उदय प्रताप शाही को परिषद मेें सदस्य नियुक्त किया गया है। यह पहली बार है, जब स्थायी कुलपति
की नियुक्ति के पहले ही शिक्षा मंत्रालय ने ईसी गठन की प्रक्रिया पूर्ण की है। अभी तक सिर्फ विवि के स्थायी कुलपति ही ईसी के गठन के लिए पहल करते रहे हैं। वीसी की तरफ से दो नाम प्रस्तावित किए जाते रहे हैं, जिन पर राष्ट्रपति की अंतिम मुहर लगती रही है।
मौजूदा समय में करीब सात महीने से विवि मेें स्थायी कुलपति नहीं हैं। कुलसचिव और परीक्षा नियंता जैसे महत्वपूर्ण पदों पर जिम्मेदारी प्रोफेसर ही कार्यवाहक के तौर पर निभा रहे हैं। फिलहाल, परिषद को तत्काल प्रभाव से सक्रिय कर दिया गया है।
कार्यवाहक कुलपति व कुलगुुरु प्रो. संजय कुमार अध्यक्ष होंगे जबकि कार्यवाहक कुलसचिव प्रो. अरुण कुमार सिंह सचिव की भूमिका निभाएंगे। अजय कुमार सिंह डिप्टी रजिस्ट्रार के रूप में कामकाज देखेंगे, इनके अलावा राष्ट्रपति की तरफ से नियुक्त बाहरी और विवि के सदस्य कार्यकारी परिषद के कामकाज को आगे बढ़ाएंगे। विवि में अंतिम बार ईसी का गठन वर्ष 2018 में हुआ था, जो 2021 तक सक्रिय रहा।
2018 में गठित ईसी के सदस्य
प्रो. आद्या प्रसाद पांडेय, प्रो. आनंद मोहन, प्रो. बच्चा सिंह, डा. एके सिंह, प्रो. एचसी नैनवाल, डा. एके त्रिपाठी, प्रो. रामनरेश मिश्र और प्रो. आशिम कुमार मुखर्जी।
ईसी की यह प्रमुख जिम्मेदारी
कार्यकारी परिषद विश्वविद्यालय का कार्यकारी निकाय होगी। विवि के राजस्व और संपत्ति के प्रबंधन और प्रशासन का प्रभार संभालेगी। विश्वविद्यालय के सभी प्रशासनिक मामलों का संचालन करेगी। परिषद विवि की नीतियों का निर्धारण करती है। वित्तीय मामलों का प्रबंधन और शैक्षिक कार्यक्रमों का अनुमोदन करती है।
अधिनियम के प्रविधानों के अधीन, कार्यकारी परिषद ऐसी शक्तियों का प्रयोग करती है और ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करेगी जो उसे परिनियमों या अध्यादेशों द्वारा अधिरोपित किए जा सकते हैं।
कार्यकारी परिषद विवि के महत्वपूर्ण निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विवि में कार्यकारी परिषद में अभी तक कुलपति अध्यक्ष होते रहे हैं, जबकि बीएचयू के ख्यात प्रोफेसर और विश्वविद्यालय के बाहर के सदस्य विशेषज्ञों को सदस्य मनोनीत हो चुके हैं।
ईसी के बिना प्रमोशन और नियुक्तियों पर उठे सवाल
विश्वविद्यालय के संचालन के लिए काउंसिल का होना अनिवार्य है। एक अप्रैल 1916 से 2025 तक विवि में करीब 28 कुलपति नियुक्त हुए हैं, इनमें सिर्फ प्रो. सुधीर कुमार जैन के ही कार्यकाल में ईसी का गठन नहीं हुआ। उन्होंने इमरजेंसी शक्तियों के दम पर सारे फैसले लिए। अधिकांश निर्णयों पर गंभीर सवाल उठे।
प्रमोशन और नियुक्तियों के प्रकरण में विवि की किरकिरी हुई। जमकर विरोध हुआ और राष्ट्रीय स्तर पर साख पर आंच आई।कुलपति को अपने द्वारा की गई कार्रवाई पर कार्यकारी परिषद की बैठक में स्वीकृति लेनी होती है। यदि कार्यकारी परिषद कार्रवाई से सहमत नहीं है, तो वह मामले को कुलाध्यक्ष या राष्ट्रपति के पास भेज सकता है। यदि कोई व्यक्ति कुलपति की कार्रवाई संतुष्ट नहीं होता है तो 30 दिनों के भीतर कार्यकारी परिषद में अपील कर सकता है।
जब लटक गई थी नियुक्ति प्रक्रिया
कार्यकारी परिषद में कुलपति और कुलाध्यक्ष द्वारा नामित आठ अन्य सदस्य शामिल होते हैं। शिक्षा मंत्रालय तीन वर्षों के लिए कार्यकारी परिषद में नामांकन के लिए उम्मीदवारों के नाम कुलाध्यक्ष को भेजता है। कार्यकारी परिषद के सदस्यों की नियुक्ति संबंधी फाइल शिक्षा मंत्री के कार्यालय भेजी गई थी लेकिन उसे वापस नहीं किया गया।
कार्यकारी परिषद का प्रमुख कार्य संकाय सदस्यों के चयन को स्वीकृति देना भी है। पूर्व कुलपति प्रो. राकेश भटनागर के कार्यकाल में कई चयन समितियों ने संकाय सदस्यों के रूप में नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों का चयन किया था। कार्यकारी परिषद के नहीं होने से उनकी नियुक्ति नहीं हो सकी थी।
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