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    क्या इस मौसम में आपको बुखार और सीने में अधिक जलन महसूस हो रही है?

    By Abhishek SharmaEdited By:
    Updated: Fri, 19 Oct 2018 12:05 PM (IST)

    इस बदलते हुए मौसम में हर दूसरा व्यक्ति सीने में जलन से परेशान है। अधिकांश को महसूस हो रहा है कि बुखार है लेकिन थरमामीटर में टेम्प्रेचर नार्मल आ रहा है ...और पढ़ें

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    क्या इस मौसम में आपको बुखार और सीने में अधिक जलन महसूस हो रही है?

    वाराणसी [वंदना सिंह] : इस मौसम में हर दूसरा व्यक्ति सीने में जलन से परेशान है। अधिकांश को ऐसा महसूस हो रहा है कि बुखार है लेकिन थरमामीटर में टेम्प्रेचर नार्मल आ रहा है। ऐसी स्थिति में क्या करेंगे। अधिकांश चिकित्सक जांच करा कराकर परेशान हो जाते हैं क्योंकि जांच में कुछ आ नहीं रहा है। आखिर ये समस्या है क्या और कै से होगा निवारण। 

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    चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डा. अजय कुमार के अनुसार इस मौसम में ये सभी परेशानियां होने का मुख्य कारण है ऋ तु में बदलाव। इस समय वर्षा ऋतु के समाप्ति और शरद ऋ तु का प्रारंभ काल है। वर्षा में संचित पित्त शरद ऋ तु में सूर्य की तीखी किरणों से पिघलने लगता है और इस कारण प्रकुपित हो जाता है। यही प्रकुपित पित्त, शरीर में गर्मी, बुखार जैसा महसूस होना, अत्यधिक दुर्बलता, खट्टी डकार और सीने में जलन जैसी बीमारियो का कारण होता है। आयुर्वेद में समस्त ऋतुओं में शरद ऋतु को रोगों की माता कहा गया है ।

    क्या करना चाहिए इस ऋतु में 

    1. पित्त दोष के विरोधी होता है मधुर, तिक्त और कषाय रस। यानी इसकी शांति के लिए मधुर तिक्त और कषाय द्रव्यों का सेवन अधिक करना चाहिए। पित्त दोष की वृद्धि करने वाले खट्टी, खारी एवं तीखी वस्तुओं का त्याग करना चाहिए ।

    2. गाय का घृत और दूध, पित्त -दोष का नाशक है इसलिए इनका सेवन अधिक करना चाहिए। घी व दूध उत्तम पित्तशामक है, अत: इनका उपयोग विशेष रूप से करना चाहिए।

    3. इस ऋ तु में अनाज में गेहूं, जौ, ज्वार, धान, सामा आदि मधुर रस वाले द्रव्यों को लेना चाहिए।

    4. फलो में अंजीर, पके केले, जामुन, तरबूज, अनार, अंगूर, नारियल, पका पपीता, मौसमी, नींबू, गन्ना आदि लिया जा सकता है ।

    5. शरद ऋ तु में खीर, रबड़ी आदि खाना लाभप्रद है।

    किन चीजो का त्याग करना चाहिए

    1. इस ऋ तु में क्षार, दही, खट्टी छाछ, तेल, चर्बी, गरम-तीक्षण वस्तुएं, खारे -खट्टे रस वाली की चीजें नही लेनी चाहिए।

    2. कुल्थी, प्याज, लहसुन, इमली, हींग, पुदीना, तिल, मूंगफली, सरसों आदि पित्तकारक होने से इनका त्याग करना चाहिए।

    3. इस ऋ तु में शरीर पर कपूर एवं चंदन का उबटन लगाना, खुली चांदनी रात में बैठना एवं घूमना लाभप्रद है।

    4. दिन में सोना, धूप का सेवन, अति परिश्रम, अधिक कसरत एवं पूर्व दिशा से आनेवाली वायु इस ऋ तु में हानिकारक है। इसलिए इन सभी कामो से बचना चाहिए।

    आयुर्वेद एवं घरेलू उपाय 

    इन ऋ तुजन्य विकारों से बचने के लिए अन्य दवाइयों पर पैसा खर्च करने के बजाय कुछ आसान से उपायों और आयुर्वेद की औषधियों के प्रयोग से आप इससे मुक्ति पा सकते हैं-

    1. द्राक्षा यानी मुन्नका, सौंफ एवं धनिया मिलाकर बनाया गया शर्बत पित्त विकारों का शमन करता है।

    2. पित्त के शमनार्थ आंवला चूर्ण, अविपत्तिकरचूर्ण या त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए। 

    3. आंवला चूर्ण शरद ऋतु में अत्यन्त लाभदायी है। इससे पित्त दोष का शमन होता है और यह उत्तम रसायन गुण वाला होता है।

    4. आंवले को शक्कर के साथ खाना चाहिए। आंवला और शक्कर दोनों उत्तम पित्त शामक होते हैं।

    5. प्रवाल पंचामृत, उशीरासव, सरिवरिष्ट जैसी औषधियां भी पित्त को शांत करती है लेकिन इनका प्रयोग वैद्य की सलाह से ही करे।