जौ की खेती, लागत कम मुनाफा अधिक
जागरण संवाददाता, वाराणसी : भारत में धार्मिक दृष्टि से जौ का विशेष महत्व है। फसलों में गेहूं क ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, वाराणसी : भारत में धार्मिक दृष्टि से जौ का विशेष महत्व है। फसलों में गेहूं के बाद दूसरा स्थान जौ का है। जौ का इस्तेमाल मनुष्य के भोजन के साथ ही जानवरों के चारे के लिए भी किया जाता है। हालांकि जौ का इस्तेमाल रोटी बनाने के लिए चने के साथ मिलाकर करते हैं। इतना ही नहीं जौ और चना पीसकर सत्तू के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। जौ का इस्तेमाल माल्ट बनाने में भी किया जाता है जिससे बीयर एवं व्हिस्की बनाई जाती है। किसान गेहूं की अपेक्षा जौ की खेती कर कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। किसान अभी 15 से 20 दिसंबर तक जौ की बोआई कर सकते हैं। किसानों के मन में उठ रहे सवालों का जवाब दिए जिला कृषि अधिकारी सुभाष मौर्य ने। बातचीत के कुछ अंश।
जौ में 11.12 फीसद प्रोटीन, 1.8 फीसद फॉस्फोरस, .08 फीसद कैल्शियम तथा पांच फीसद रेशा पाया जाता है जो बीटा ग्लूकॉन की अधिकता और ग्लूटेन की न्यूनता जहां एक ओर मानव रक्त में कोलेस्ट्रॉल स्तर को कम करता है वहीं दूसरी ओर सुपाच्यता व शीतलता प्रदान करता है। इसके सेवन से पेट सबंधी गड़बड़ी, वृक में पथरी बनना तथा आतों की गड़बड़िया दूर होती हैं। आज जौ का सबसे ज्यादा उपयोग पर्ल बारले, माल्ट, बीयर, हार्लिक्स, मालटोवा टानिक, दूध मिश्रित बेवरेज आदि बनाने में बखूबी किया जाता है। इस फसल की सबसे बड़ी विशेषता है की कम पानी, सीमित उर्वरक तथा सभी तरह की भूमि में उत्पादन होत है।
सवाल : जौ की खेती के लिए उपयुक्त समय, शीतला पाल, बड़ागांव
जवाब : जौ शीत जलवायु की फसल है लेकिन उष्ण जलवायु में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है। गेहूं की अपेक्षा जौ की फसल प्रतिकूल वातावरण अधिक सहन कर सकती है।
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सवाल : भूमि का कैसे करें चयन, राजेश यादव, मोहाव
जवाब : जौ की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन अच्छी जलनिकासी वाली मध्यम दोमट मिट्टी जिसकी मृदा अभिक्रिया 6.5 से 8.5 के मध्य हो, सर्वोत्तम मानी जाती है। भारत में जौ की खेती अधिकतर रेतीली भूमि में की जाती है।
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सवाल : कैसे करें भूमि की तैयारी, धनंजय पटेल अखरी।
जवाब : गेहूं की तरह जौ की खेती के लिए भी खेत की तैयारी की जरूरत नहीं पड़ती है। खरीफ की फसल कटने के साथ ही मिट्टी पलटने वाले हल से एक बार गहरी जोताई कर तीन-चार बार देशी हल से जोताई करनी चाहिए।
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सवाल: कैसे करें खेत की सिंचाई, श्रेयश कुमार गंगापुर
जवाब : गेहूं की अपेक्षा जौ में पानी की कम आवश्यकता पड़ती है लेकिन अच्छी उपज के लिए दो से तीन सिंचाई करनी जरूरी है। पहली सिंचाई 30 से 45 दिन के बीच, दूसरी 60 से 65 और तीसरी 80 से 85 दिन के बीच।
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सवाल: कितनी मात्रा में डाले उर्वरक, बलिराम मिश्र छितौनी
जवाब: जौ में हरी खाद, जैविक खाद एवं रासायनिक खाद का प्रयोग किया जाता है। खाद एवं उर्वरक की मात्रा जौ की किस्म, सिंचाई की सुविधा, बोने की विधि आदि पर निर्भर करती है। अच्छी उपज लेने के लिए भूमि में कम से कम प्रति हेक्टेयर 35 से 40 क्विंटल गोबर की खाद, 50 किलो ग्राम नीम की खली और 50 किलो अरंडी की खली आदि इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर खेत में बोआई से पहले डाल देना चाहिए। इसके बाद जोताई करें। खेत तैयार होने पर बोआई करें।

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