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बनारस के 'बुनकर 'को मिला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, तय किया बलिया से मुंबई तक का सफर

डॉक्यूमेंटरी फिल्म बुनकर को 66 वें नेशनल अवॉर्ड 2018 में नान फीचर फिल्म कटेगरी के बेस्ट आर्ट एंड कल्चर में पुरस्कृत किया गया है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sat, 10 Aug 2019 04:01 PM (IST)Updated: Sat, 10 Aug 2019 10:00 PM (IST)
बनारस के 'बुनकर 'को मिला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, तय किया बलिया से मुंबई तक का सफर
बनारस के 'बुनकर 'को मिला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, तय किया बलिया से मुंबई तक का सफर

वाराणसी [वंदना सिंह]। बनारस के बुनकरों के जीवन कार्यशैली, उनकी कला पर आधारित डॉक्यूमेंटरी फिल्म 'बुनकर ' को 66 वें नेशनल अवॉर्ड 2018 में नान फीचर फिल्म कटेगरी के बेस्ट आर्ट एंड कल्चर में पुरस्कृत किया गया है। इस फिल्म के  माध्यम से बुनकरों के जीवन की कठिनाइयों, बुनकारी कला की पृष्ठभूमि और बुनकरों की समस्याओं के समाधान को अलग अलग क्षेत्रों से जुड़े हुए लोगों की बातचीत के आधार पर दिखाया गया है। फिल्म के डायरेक्टर बलिया निवासी सत्य प्रकाश उपाध्याय हैं जो बलिया के एक गांव चांदपुर के रहने वाले हैं। सत्य प्रकाश करीब 10 वर्षों से मुंबई में फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं और लगातार कई फिल्में बनाते आए हैं । बुनकर उनकी फिल्म पहली डेबयू फीचर फिल्म  है जिसको राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है ।

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 इस पुरस्कार की घोषणा से सत्य प्रकाश और उनकी टीम काफी खुश है। सत्य प्रकाश ने बताया बचपन से ही बनारस से नाता है। मैंने और मेरे फिल्म  की प्रोड्यूसर सपना शर्मा ने बनारसी साड़ियों को लेकर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की सोची थी। इसके लिए हम बनारस आए। इसके बाद बुनकरों और सोशल वर्कर से भी हम मिले। धीरे-धीरे हम इस क्षेत्र की कठिनाइयों, कला, इतिहास सभी की गहराई में चलते चले गए। इस कला की बारीकियों को देखा ऐसे परिवारों से भी मिले जहां बुनकारी कई पीढ़ियों से की जा रही है मगर समस्याओं को देखते हुए आगे की पीढ़ी इसमें आना नहीं चाहती।

 जानकार  ताज्जुब हुआ कि यहां पर बुनकारी में समस्या को देखते हुए काफी बुनकरों ने यह काम छोड़कर दूसरा कोई व्यवसाय कर लिया। जैसे-जैसे फिल्म को लेकर हम लोगों से मिलते चले गए हमें एक एक कर अलग अलग बहुत सारी समस्याएं दिखाई दी। इस क्षेत्र की चुनौतियां, इसके साथ ही अलग-अलग समाधान भी मिले। जब इन सब को एक साथ जोड़ा तो एक बड़ी समस्या बनकर समझ में आई जिसके कई सारे समाधान भी निकले। फिल्म के डीओपी विजय मिश्रा ने काफी खूबसूरती से फिल्माया। इस फिल्म की दो बार स्क्रीनिंग बनारस में हो चुकी है। फिल्म की शुरुआत हमने एनिमेशन से की है जिसमें बुनाई का इतिहास इससे जुड़े घरानों को दिखाया गया है । बुनकरों की बातचीत है उसके बाद पूरी फिल्म को एक धागे में पिरो कर रख दिया गया है जो केवल जागरूकता ही न फैलाएं बल्कि लोगों के दिलों दिमाग पर अपनी छाप छोड़ जाए।

इस फिल्म को देखने के बाद बुनकरों की समस्या का समाधान भी हो। 68 मिनट की फिल्म में हमने अपनी पूरी ताकत झोंक दी ताकि इसका हर पक्ष निखर कर आए। फिल्म के बाद मैंने सिद्धार्थ काक के प्रोडक्शन में 'मेड इन बनारस' फिल्म भी डायरेक्ट की है। अभी फिलहाल एक बड़ी फिल्म की तैयारी कर रहा हूं जिसका नाम कूपमंडूक है। इसकी शुरुआत दी बनारस से करने की कोशिश है। कह सकता हूं बनारस मेरे लिए बहुत ही लकी साबित होता है । सत्य प्रकाश के परदादाजी ने संपूर्णानंद विश्वविद्यालय से ज्योतिष की पढ़ाई की थी। सत्य पकाश के पिता इस वक्त मुंबई में  सरकारी स्कूल में टीचर हैं।

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