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    बनारस‍ियों सावधान हो जाओ, मुख कैंसर के बढ़े जोखिम पर टाटा मेमोरियल सेंटर की र‍िपोर्ट चौंकाने वाली

    By Abhishek sharmaEdited By: Abhishek sharma
    Updated: Sat, 29 Nov 2025 03:47 PM (IST)

    टाटा मेमोरियल सेंटर की एक हालिया रिपोर्ट में बनारस में मुख कैंसर के बढ़ते खतरे के बारे में चेतावनी दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, तंबाकू और सुपारी का सेवन इस क्षेत्र में मुख कैंसर के मामलों में वृद्धि का मुख्य कारण है। जागरूकता बढ़ाने और रोकथाम के उपायों को बढ़ावा देने की तत्काल आवश्यकता है।

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    वाराणसी में टाटा कैंसर सेंटर में बनारस‍ियों की भीड़ बढ़ रही है।

    जागरण संवाददाता, मुंबई/वाराणसी। बनारसी पान और जर्दा खाने के प्रचंड शौकीन हैं। यह शौक क‍ितना भारी पड़ रहा है इसपर शोध चौंकाने वाली है। वाराणसी में टाटा कैंसर सेंटर में बनारस‍ियों की बढ़ रही भीड़ इस बात की पुष्‍ट‍ि कर रही है क‍ि बनारसीपने में शुमार सुर्ती मसाला जर्दा क‍ितना घातक है। 

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    टाटा मेमोरियल सेंटर, मुंबई के ACTREC स्थित सेंटर फॉर कैंसर एपिडेमियोलॉजी द्वारा किए गए एक महत्वपूर्ण जीनोम-वाइड एसोसिएशन स्टडी (GWAS) ने यह स्पष्ट किया है कि भारत में कुछ तंबाकू चबाने वाले लोग अन्य उपभोक्ताओं की तुलना में लगभग एक दशक पहले मुख का कैंसर विकसित कर लेते हैं। यह अध्ययन प्रतिष्ठित जर्नल eBioMedicine में प्रकाशित हुआ है और इसमें उन प्रमुख आनुवंशिक कारकों की पहचान की गई है, जो बक्कल म्यूकोसा कैंसर की संवेदनशीलता को बढ़ाते हैं। यह कैंसर भारत में सबसे आम और रोके जा सकने वाले कैंसरों में से एक है।

    इस अध्ययन में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से 2,160 बक्कल म्यूकोसा कैंसर मरीज (केस) और 2,325 सामान्य व्यक्ति (कंट्रोल) शामिल किए गए। जीनोम-वाइड स्कैन के माध्यम से वैज्ञानिकों ने पाया कि क्रोमोसोम 5 और 6 के पास CLPTM1L, TERT, HLA-DRB1, HLA-DQB1 और CEP43 जैसे जीनों के पास महत्वपूर्ण जोखिम लोकेशन मौजूद हैं।

    इसके अलावा, यूरोप और ताइवान के डेटा को मिलाकर किए गए बहु-वंशीय विश्लेषण में NOTCH1 जीन के पास नए जोखिम लोकेशन पाए गए। अध्ययन में पॉलीजेनिक रिस्क स्कोर की गणना की गई, जिससे पता चला कि तंबाकू चबाने वाले जिन व्यक्तियों का यह स्कोर अधिक था, उनमें कम स्कोर वाले लोगों की तुलना में कैंसर लगभग दस वर्ष पहले विकसित होने की संभावना पाई गई।

    भारत में मुख कैंसर के 1,41,342 वार्षिक मामलों के साथ इसकी आयु-मानकीकृत दर प्रति एक लाख जनसंख्या पर 10.0 है, जबकि कुछ राज्यों में यह दर 25 से 33 के बीच पाई जाती है। जीवनशैली के समान कारक होने के बावजूद, बीमारी की शुरुआत और प्रगति में उल्लेखनीय भिन्नताएं देखने को मिलती हैं। इस अध्ययन ने पहली बार इन अंतर की स्पष्ट आनुवंशिक वजह उजागर की है और बताया है कि तंबाकू चबाने वाले कुछ व्यक्तियों में कैंसर का जोखिम उनकी आनुवंशिक संरचना के कारण काफी अधिक होता है।

    टाटा मेमोरियल सेंटर के निदेशक डॉ. सुदीप गुप्ता ने बताया कि भारत में आम कैंसरों के लिए जीन–पर्यावरण अंतःक्रिया की जांच और पॉलीजेनिक रिस्क स्कोर विकसित करना अत्यंत आवश्यक है, जिससे कैंसर संवेदनशीलता को बेहतर समझा जा सके। उन्होंने दोहराया कि तंबाकू चबाना इस कैंसर का सबसे बड़ा रोके जा सकने वाला कारण है और प्रभावी तंबाकू नियंत्रण नीतियों के माध्यम से 80% से अधिक मुख कैंसर को रोका जा सकता है।

    ACTREC के निदेशक डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि तंबाकू चबाना मुख कैंसर का सबसे प्रमुख जोखिम कारक है और तंबाकू चबाने वालों में इसके विकसित होने का जोखिम तंबाकू न चबाने वालों की तुलना में 26 गुना अधिक है। उन्होंने बताया कि यह जोखिम उन व्यक्तियों में दो गुना हो जाता है जिनमें आनुवंशिक संवेदनशीलता मार्कर मौजूद हैं।

    अंतरराष्ट्रीय एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC), लियोन की निदेशक डॉ. एलिसाबेटा वीडरपास ने इस अध्ययन को “महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर” बताते हुए कहा कि इससे न केवल इस कैंसर की जैविक समझ गहरी होती है बल्कि उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों के लिए विशेष रोकथाम और स्क्रीनिंग रणनीतियों का मार्ग भी प्रशस्त होता है।

    अध्ययन की प्रमुख लेखिका डॉ. शरयू म्हात्रे ने बताया कि तंबाकू का उपयोग इस कैंसर का मुख्य कारक है लेकिन इसके पीछे एक महत्वपूर्ण आनुवंशिक घटक भी मौजूद है। उन्होंने बताया कि भारतीय आबादी में जीनोमिक पैटर्न यूरोपीय आबादी से भिन्न पाए गए, जिससे भारतीय-विशिष्ट जीनोमिक डेटा की आवश्यकता स्पष्ट हुई। अन्य विशेषज्ञों ने भी जोर देकर कहा कि आनुवंशिक प्रवृत्ति और तंबाकू चबाने की आदत मिलकर इस कैंसर के जोखिम को बढ़ाती हैं और इस अध्ययन से लक्षित रोकथाम और शीघ्र पहचान के लिए नए रास्ते खुलते हैं।

    सेंटर फॉर कैंसर एपिडेमियोलॉजी (CCE) भारतीय जनसंख्या में अन्य आम कैंसरों पर भी GWAS कर रहा है, जिससे विभिन्न कैंसर स्थलों के लिए पॉलीजेनिक रिस्क स्कोर विकसित करने में मदद मिलेगी। यह संस्था कैंसर रोकथाम, शुरुआती पहचान, जनस्वास्थ्य अनुसंधान, जैविक नमूनों के संरक्षण और राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से कैंसर अनुसंधान और जनस्वास्थ्य में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।