ई हौ रजा बनारस : एक मिठाई छुई-मुई, खाएंगे तो चकराएंगे, ठोस-द्रव-गैस भूल जाएंगे
वाराणसी में एक खास व्यंजन है जो देखने में ठोस, द्रव, गैस तीनों का भरम जगाए और कंठ से नीचे उतरते ही कलेजा तर कर जाए इसे मलइयो कहते हैं।
वाराणसी, [कुमार अजय] । जो देखने में ठोस, द्रव, गैस तीनों का भरम जगाए और कंठ से नीचे उतरते ही 'करेजा' तर कर जाए, उस छुई-मुई जादुई मिठाई को मलइयो कहते हैं। चमत्कारी तो ऐसी कि कुल्हड़ के कुल्हड़ हलक से उतर जाने के बाद भी आप तय नहीं कर पाएंगे कि आपने मलइयो खाया है या पिया है। स्वाद का जादू ऐसा मानो जुबां से जिगरे तक खिल उठी, तरावट से भरपूर केसर की क्यारियां हों।
बाकी के अन्य आइटमों के लिए औरों के भी दावे हो सकते हैं मगर ओस से सींचे गए फेनिल मलइयो के नाम पर बनारस का अपना पक्का ठप्पा है। अब तो मलइयो के कड़ाहे शहर में हर जगह दिखने लगे हैं मगर एक समय था जब इस पर नगर के पक्के महाल का एकाधिकार हुआ करता था। पुराने लोगों को अब भी याद झागदार मलइयो से उफनता केदार सरदार का वह कड़ाहा और मलइयो का सोंधा स्वाद। केसरिया..तर, करेजवा ...तर, की हांक देते जब वे अलसुबह राजमंदिर की गलियों से निकलते थे तो क्या आला और क्या अदना बरबस ही मचल उठती थी सभी की रसना। अब तो मलइयो तंग गलियों से निकल कर सजीली दुकानों का खास आइटम बन चुका है मगर संकरी गलियों में बसे 'पक्के महाल' के यादव बंधुओं का मलइयो बनाने का फार्मूला अब भी वैद्यराज धन्वंतरी के आयुर्वेदिक सूत्रों से कम गोपन नहीं है।
ढेर सारी मनुहार के बाद भंडारी गली के मशहूर मलइयो विशेषज्ञ गंगा राम यादव मलइयो निर्माण के कुछ प्राथमिक तथ्यों से अवगत कराते हैं। सरदार के अनुसार केसर मिश्रित खालिस दूध की फेंटाई और मथाई का है यह सारा कमाल। बताते हैं स्वाद के उस्ताद कि बड़ा ही पित्तमार काम है और सबके बस का है भी नहीं। ओस की सिंचाई के लिए ठंड से कड़कड़ाती रातें आंखों ही आंख में गुजारनी पड़ती है। बड़ी-बड़ी मथनियों से पैदा फेन की परतों को थपकियों के साथ सहेजना भी मुट्ठी में पानी बांधने की कोशिश से कम दुरूह नहीं है।
नए लोगों ने मलइयो को 'क्रीम बेस' देने और ओस की तरावट की जगह बर्फ के प्रयोग भी आजमाए, मगर वह बात पैदा नहीं हुई। मौसमी आइटम है और मौसम में ही मजा देता है। तैयार होने के बाद ऊपर से पिस्ता और बादाम की कतरनों का तड़का इसके जायके को समृद्ध करता है। सरदार एक बात बताना नहीं भूलते कि 'भइया मलइयो खइले क जौन मजा पुरवा में हौ, चांदी के तश्तरी में नाहीं आई, सजावटी भलहूं बन जाय, मिट्टी क सोंधा स्वाद भला कहां से पाई।'