वाराणसी के बाबू शिव प्रसाद गुप्त ने देश को दी 'काशी विद्यापीठ' और 'भारत माता मंदिर' की सौगात
एक पत्रकार और राष्ट्रवादी चिंतक के तौर पर उन्होंने काशी में न सिर्फ महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ जैसे संस्थान की स्थापना की बल्कि वाराणसी में देश का पहला भारत माता मंदिर भी स्थापित कर काशी की विशिष्ट पहचान भी स्थापित की थी।

वाराणसी, इंटरनेट डेस्क। 28 जून 1883 को वाराणसी में बाबू शिव प्रसाद गुप्त का जन्म मानो काशी के परम वैभव को और भी समृद्ध करने के लिए ही हुआ था। एक पत्रकार और राष्ट्रवादी चिंतक के तौर पर उन्होंने काशी में न सिर्फ महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ जैसे संस्थान की स्थापना की बल्कि वाराणसी में देश का पहला भारत माता मंदिर भी स्थापित कर काशी की विशिष्ट पहचान भी स्थापित की थी।
उनका निधन भले ही 24 अप्रैल 1944 को हो गया हो लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राष्ट्रवादी कार्यकर्ता के साथ उनकी दूर द्रष्टा की छवि ने आज आधुनिकतम भारत की प्रेरणा को काशी में इस तरह समृद्ध किया कि आज भी उनकी विरासत फल फूल और समृद्ध हो रही है। बाबू शिव प्रसाद गुप्त का जन्म एक समृद्ध परिवार में हुआ था। अंग्रेजी, संस्कृत, फारसी और हिंदी का अध्ययन करने के बाद इलाहाबाद से स्नात्तक किया और महामना पण्डित मदन मोहन मालवीय के अलावा लाला लाजपत राय, महात्मा गांधी और आचार्य नरेन्द्र देव के साथ ही डॉ. भगवान दास से प्रभावित हुए और शिक्षा की अलख को जगाने के लिए ही काशी विद्यापीठ की स्थापना की जो आज महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के तौर पर देश में एक बड़े शिक्षण संस्थान के तौर पर पहचाना जाता है।
उनका जन्म भले ही एक धनी परिवार में हुआ लेकिन उन्होंने सारा जीवन स्वतंत्रता संग्राम के लिए ही समर्पित कर दिया। कई राष्ट्रीय आंदोलनाें में उन्होंने धन भी दिया था। माना जाता है कि काशी को आन्दोलनों का केंद्र बनाने के साथ ही क्रांतिकारियों काे भी सहयोग दिया था। देश के लिए संघर्ष के दौरान अनेक बार वह जेल भी गये। स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने की वजहों से बीच में अपनी पढ़ाई भी छोड़ दिया। मगर उन्होंने काशी में काशी विद्यापीठ की स्थापना कर लाखों छात्रों के लिए एक भव्य शैक्षणिक संस्थान देकर देश के उज्जवल भविष्य की बुनियाद रखी थी। वाराणसी में मौजूद भारत माता मंदिर में भारत का नक्शा संगमरमर पर नक्काशीदार तरीके से उकेरा। इस मंदिर को वर्ष 1936 में महात्मा गांधी ने स्वयं ही उद्घाटित किया था।
देश को आर्थिक तौर पर समृद्ध करने के लिए खादी के कपड़े के निर्माण और उत्पादन के साथ ही बिक्री को बढ़ावा देने के लिए देश में पहली बार गांधी आश्रम के लिए 150 एकड़ भूमि दान दी थी। शिव प्रसाद गुप्त भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ भी लंबे समय तक जुड़े रहे। 1928 में काशी में आयोजित होने वाली पहली राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए भी कुल व्यय किया था। वहीं बीएचयू की स्थापना में भी उनका आर्थिक योगदान रहा है। देश के लिए उनके योगदान को देखते हुए भारतीय डाक विभाग उनकी स्मृति में एक डाक टिकट भी जारी किया था।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।