आयुर्वेद की दवाओं का साइड इफेक्ट होता है? आयुर्वेद विशेषज्ञ ने बताई जानकारी वाली बात, आप भी नोट कर लें
क्या आयुर्वेदिक दवाओं के साइड इफेक्ट होते हैं? आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार, सही तरीके से और विशेषज्ञ की सलाह पर सेवन करने से आमतौर पर आयुर्वेदिक दवाएं सुरक्षित होती हैं। गलत तरीके से या गलत समय पर सेवन करने से कुछ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। इसलिए, दवाओं का सेवन हमेशा विशेषज्ञ की सलाह पर ही करें और अपनी मर्जी से किसी भी दवा का सेवन न करें।

आयुर्वेद विषेषज्ञ डा. अजय गुप्ता ने इस जानकारी को आम लोगों से साझा किया है।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। आयुर्वेदिक दवाओं के साइड इफ़ेक्ट होते है या नही! इस सवाल को लेकर आम जनता, एलोपैथी चिकित्सक और आयुर्वेदिक चिकित्सकों के मन मे हमेशा संदेह रहता है। एक वर्ग मानता है कि कोई साइड इफ़ेक्ट नही होता है जबकि दूसरा वर्ग मानता है कि साइड इफ़ेक्ट होता है। आयुर्वेद विषेषज्ञ डा. अजय गुप्ता ने इस जानकारी को आम लोगों से साझा किया है।
बताया कि इस सवाल का जवाब उतना आसान भी नही है क्योंकि हर चीज के साथ कुछ शर्तें लागू होती है। एलोपैथिक दवाओं में निरंतर शोध होते रहते है जिससे उनके होने वाले साइड इफेक्ट का पता सबको रहता है हालांकि फेज-4 वाली स्टडी के दौरान यदि फीडबैक सिस्टम बेहतर नहीं हो तो कुछ चीजें छूट भी सकती है।

सबसे पहले जानते है कि एलोपैथी दवाओं के ट्रायल का 4th फेज क्या है?
फेज-4 ट्रायल (Post-Marketing Surveillance) का असली उद्देश्य ही दवा के साइड इफेक्ट, एडवर्स रिएक्शन, दुर्लभ और लंबे समय बाद होने वाले नुकसान का पता लगाना है। यह जानकारी रियल-वर्ल्ड डेटा, लाखों मरीजों, और लगातार निगरानी से मिलती है।
फेज-4 में साइड इफेक्ट कैसे पकड़े जाते हैं?
1. बहुत बड़े पैमाने पर दवा का उपयोग
फ़ेज-1, 2, 3 ट्रायल में मरीजों की संख्या सीमित होती है। लेकिन मार्केट में आने के बाद लाखों लोग दवा लेते हैं। इससे दुर्लभ और नए साइड इफेक्ट सामने आते हैं, जो छोटे ट्रायल में दिखते नहीं थे।
2. Adverse Drug Reaction (ADR) Reporting System
डॉक्टर, मरीज, और फ़ार्मासिस्ट किसी भी साइड इफेक्ट की रिपोर्ट करते हैं। उदाहरण:
भारत में PvPI (Pharmacovigilance Programme of India)
WHO का VigiBase
USA का FDA MedWatch
रिपोर्ट में शामिल होता है:
कौन सी दवा
क्या साइड इफेक्ट
कब शुरू हुआ
मरीज की उम्र, बीमारी
दवा बंद करने पर क्या हुआ
3. Signal Detection
जब एक ही तरह का साइड इफेक्ट कई देशों या सेंटर से रिपोर्ट होने लगता है, तो इसे "Signal" कहा जाता है।
उदाहरण: अगर 500 रिपोर्ट्स आए कि एक दवा से Liver enzymes बढ़ रहे हैं → यह एक Signal है। फिर इसकी वैज्ञानिक जांच शुरू होती है।
4. Electronic Health Records (EHR) & Big Data Analysis
अस्पतालों के डिजिटल रिकॉर्ड, लैब रिपोर्ट, EMR सिस्टम के डेटा का विश्लेषण किया जाता है।
AI और सांख्यिकी (Statistical models) से:
किन मरीजों में
कितने समय बाद
किस मात्रा में
कौन-से साइड इफेक्ट होते हैं, यह पता चलता है।
5. Black Box Warning / Drug Recall
अगर कोई गंभीर साइड इफेक्ट पक्का साबित हो जाए:
FDA या CDSCO दवा पर ब्लैक बॉक्स वार्निंग जोड़ देते हैं
या दवा बाजार से बैन/रिकॉल हो जाती है
अबतक हमने संक्षिप्त रूप से एलोपैथिक दवाइयों की रिपोर्टिंग के बारे में समझा। अब आयुर्वेदिक दवाओं के बारे में देखते है। आयुर्वेदिक शास्त्रों में लाखों की संख्या में अलग-अलग रोगों की अलग-अलग दवाएं बताई गई है। जब ये शास्त्र लिखे गए, उस समय इतने सारे लैब या स्टेटिस्टिक्स का प्रयोग नही किया जाता था। दोषों का सिद्धांत या कार्य-कारण-प्रभाव देखते हुए इनकी योजना की जाती थी। उदाहरण के तौर पर गोदुग्ध को शीत वीर्य माना जाता है जो कि पित्त दोष का विरोधी होता है यानी कि जितने भी पित्त विकार होते है उनको ठीक करने के लिए दूध या अन्य पित्त नाशक/शीत वीर्य औषधियों का प्रयोग किया जा सकता है।
कार्य-कारण-प्रभाव की बात करे तो मान लीजिये किसी व्यक्ति को कब्ज की बीमारी है उनको जयपाल खिलाया गया जिसके प्रभाव से विरेचन होने लगा तो उसको कब्ज के इलाज के लिये प्रयोग किया जाने लगा। ऐसे ही बहुत से सिद्धांत है जिसको अलग अलग आचार्यो ने अपनाया और आयुर्वेदिक दवाइयों के गुण धर्म की विवेचना की और विभिन्न रोगों में इनके प्रयोग का दिशा निर्देश किया।
इन सभी का प्रत्यक्ष अवलोकन करने से यह ज्ञात था कि किस दवा के प्रयोग से क्या फायदा होता है और क्या नुकसान होता है इसलिये पहले ही कई जगहों पर स्पष्ट लिख दिया गया है कि इस बीमारी में इस औषधियों का प्रयोग नही करें। जैसे दस्त के रोगियों में विरेचक औषधियों का प्रयोग। चूंकि पहले से ही उनके गुण धर्मो का पता है इसलिए साइड इफ़ेक्ट की गुंजाइश नही रहती है।
इसे इस तरह से भी समझ सकते है कि जैसे एलोपैथी में Phase-4 के दौरान जो आंकड़े इक्कठे किये जाते है, वैसे ही आचार्यो ने हजारों-लाखों मरीजो पर देने के बाद जो परिणाम आये, जो साइड इफ़ेक्ट आये और जो अनुभव प्राप्त हुआ , उन सभी को शास्त्र के रूप में लिपिबद्ध कर दिया। इसलिए ये तो बिल्कुल नही कहा जा सकता कि आयुर्वेद में शोध नही हुए या नही होते है। जितने भी प्राचीन शास्त्र है उनमें हजारो वर्षों का शोध और अनुभव समाहित है।
शास्त्रों में इतना स्पष्ट लिखे होने के बावजूद भी कई बार आयुर्वेदिक दवाओं के साइड इफ़ेक्ट देखने को मिलते है। ऐसा क्यों होता है ? इसको भी समझना जरूरी है।
आचार्य चरक ने कहा है कि-
"कुवैद्य नृप दोषत:"
यानी खराब नीतियों और प्रशासन के कारण गलत चिकित्सक उत्पन्न होते है। इसको सिर्फ वैद्य के संदर्भ में ना देखकर, वैद्य के साथ साथ औषधि निमार्ताओं के संदर्भ में भी देखना चाहिए। अयोग्य चिकित्सक और गुणवत्ताहीन औषधि ही इन साइड इफेक्ट्स के लिये जिम्मेदार है।
- अधिकांश आयुर्वेद कॉलेज से निकलने वाले छात्र MBBS ना निकाल पाने के कारण आयुर्वेद में एडमिशन लेते है। ऐसे में आयुर्वेद शिक्षा को ग्रहण करने में हमेशा उदासीन रहते है।
- केवल कुछ प्रतिशत औषधि निर्माताओ द्वारा ही गुणवत्तापूर्ण दवाएं तैयार की जाती है। आजकल रोज खबरों में आप सब देखते होंगे कि बड़ी बड़ी कंपनियों की दवाई जांच में फेल हो जा रही है।
- बहुत ही उत्तम गुणवत्ता वाली औषधियों का विलुप्त हो जाना और उनकी जगह दूसरी औषधियों का प्रयोग करने से भी नुकसान होता है। उदाहरण के तौर पर covid के समय मे सबको गुडूची (Tinospora Cardifolia) लेने की सलाह दी गयी लेकिन कुछ लोगों ने इसकी दूसरी प्रजाति का सेवन किया जिससे उनमें इसके दुष्प्रभाव मिले।
- बहुत से लोग बिना चिकित्सक की सलाह से दवा लेने लगते है जिससे दवा की उचित मात्रा का निर्धारण नही हो पाता है। जब भी दवा की गलत मात्रा लेंगे तो साइड इफ़ेक्ट की संभावना बनी रहेगी।
- अभी भी बहुत से लोग मानते है कि आयुर्वेदिक दवा जितनी पुरानी होगी उतना ज्यादा फायदा करेगी। ये भी एक अर्द्धसत्य है। इस वजह से भी कई बार नुकसान हो जाता है।
- एक महत्वपूर्ण तथ्य और है कि आप दवा किस समय, किस चीज के साथ ले रहे है। इस पर भी बहुत सी दवाओं के प्रभाव निर्भर करते है।
- दवाओं के फॉर्मूलों में बदलाव से भी इनके प्रभाव में अंतर देखने को मिलता है। जिसकी चर्चा हमने अपने पिछली पोस्ट में च्यवनप्राश के संदर्भ में की है।
अतः कहा जा सकता है कि आयुर्वेदिक दवाओं के साइड इफेक्ट होते भी हैं और नहीं भी - यह पूरी तरह दवा के प्रकार, उसकी गुणवत्ता, मात्रा, रोगी की प्रकृति और चिकित्सक की निगरानी पर निर्भर करता है। सच यह है कि सही तरीके से दी गई आयुर्वेदिक दवाएं आमतौर पर सुरक्षित होती हैं, लेकिन गलत उपयोग से नुकसान भी हो सकता है।

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