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    शकुंतला की औषधि से भरेंगे जिद्दी जख्म

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 22 Dec 2017 09:05 PM (IST)

    मुकेश चंद्र श्रीवास्तव, वाराणसी : अगर आपके जख्म बहुत जिद्दी हो गए हैं और वर्षो से ठीक नही ...और पढ़ें

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    शकुंतला की औषधि से भरेंगे जिद्दी जख्म

    मुकेश चंद्र श्रीवास्तव, वाराणसी : अगर आपके जख्म बहुत जिद्दी हो गए हैं और वर्षो से ठीक नहीं हो रहे हैं, यही नहीं जख्म भले ही अल्सर, शुगर या फाइलेरिया की चपेट में ही क्यों न हो, उसको अब ठीक होना ही पड़ेगा। ऐसे घावों को ठीक करने के लिए काशी ¨हदू विश्वविद्यालय स्थित आयुर्वेद संकाय के द्रव्यगुण विभाग में औषधि की खोज कर ली गई है। यह ऐसी औषधि है जिसका उपयोग प्राचीन काल यानी त्रेता युग में भी किया जा चुका है। इसका उल्लेख महाकवि कालीदास द्वारा रचित 'अभिज्ञान शाकुंतलम' में भी किया गया है। यह औषधि 'इंगुदी' पेड़ में लगने वाले फल के बीज से तैयार की गई है। इसके तेल से पुराने से पुराने जख्म को भी ठीक किया जा सकता है।

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    द्रव्यगुण विभाग के प्रो. केएन द्विवेदी के निर्देशन में डा. संजीव कुमार ने शोध किया। डा. संजीव ने एमडी में शोध पूरा कर लिया है। अब इसका ट्रायल शुरू किया गया है। इसके तहत 100 मरीजों को लिया जाना है, 55 का रजिस्ट्रेशन हो गया है। इसमें 10 लोगों के जिद्दी जख्म ठीक भी हो गए हैं। बताया कि रजिस्टर्ड मरीजों को 15-15 दिन पर फालोअप में बुलाया जा रहा है। जिन लोगों के पुराने घाव ठीक हो गए हैं, उनके घाव भरने में एक से दो माह का समय लगा। बड़ी बात यह है कि यह तेल फिलहाल मुफ्त दिया जा रहा है।

    पथरीले व कंकरीले क्षेत्र में इंगुदी का पेड़

    प्रो. केएन द्विवेदी बताते हैं कि इंगुदी को ¨हगोट के नाम से भी जाना जाता है, इसका वानस्पतिक नाम बैलेनाइट्स इजिप्टीयाका है। इसका पेड़ राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र सहित सभी पथरीले व कंकरीले क्षेत्र में पाया जाता है। यह एक कांटेदार वृक्ष है। इसके बीज में तेल की मात्रा अधिक होती है। सरसों में 30 प्रतिशत तो इंगुदी में 40 प्रतिशत तेल निकलता है।

    तिल के तेल में भी निकाल सकते हैं तेल

    प्रो. द्विवेदी बताते हैं कि इंगुदी के बीज को तोड़कर तील के तेल में पका लिया गया। इसमें एक भाग बीज था तो चार भाग में तिल का तेल। इसी का दोगुना दूध मिलाने से आसानी से तेल निकल आता है। इंगुदी के तेल को छानकर कांच के बोतल या शीशी में रख सकते हैं। इसी को पुराने घाव पर लगाया जाता है। बीज से सीधे तेल भी निकाला जा सकता है।

    अंदरुनी धमनियों का रोपण

    प्रो. द्विवेदी बताते हैं कि जब कोई पुराना घाव होता है तो उस पर दवाएं बेअसर हो जाती हैं। एंटी बायोटिक भी विफल हो जाते हैं। कारण कि छोटी धमनियों तक उनका असर पहुंच नहीं पाता है। यही वजह है कि शुगर, फाइलेरिया, अल्सर के घाव ठीक होने की बजाय सड़ने लगते हैं। शोध में पाया गया है कि इंगुदी के तेल का असर और पोषक तत्व छोटी अंदरुनी धमनियों में पहुंच कर रोपण हो जाता है।