राज्यसभा के उपसभापति व प्रखर कांग्रेसी श्यामलाल यादव की पुण्य तिथि पर अन्नपूर्णा सेवा का आयोजन
राज्यसभा के पूर्व उपसभापति व केंद्रीय मंत्री रहे श्यामलाल यादव की 15वीं पुण्यतिथि पर बुधवार को उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
वाराणसी, जेएनएन। राज्यसभा के पूर्व उपसभापति व केंद्रीय मंत्री रहे श्यामलाल यादव की 15वीं पुण्यतिथि पर बुधवार को उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। कोनिया, भदऊं व महमूरगंज में आयोजित सभा में उनके तैल चित्र पर माल्यार्पण और जरूरतमंदों में राशन किट बांटी गई। सपा नेता व स्व. श्यामलाल यादव की पुत्र वधू शालिनी यादव, सपा के पूर्व महानगर अध्यक्ष राजकुमार जायसवाल व पारसनाथ जायसवाल, अमरदेव यादव, अरुण यादव, रामचंद्र मौर्य, मेवा पहलवान, चंदन सोनकर आदि थे।
कांग्रेस ने वाराणसी संसदीय सीट पर अपना दबदबा बनाया था
राज्यसभा के दो बार उपसभापति रह चुके श्याम लाल यादव के सहारे भी कांग्रेस ने वाराणसी संसदीय सीट पर अपना दबदबा बनाया था। श्याम लाल यादव 1957 और 1967 में मुगलसराय से विधायक चुने गए थे, जबकि 1984 में लोकसभा चुनाव में उन्होंने वाराणसी से बाजी मारी थी। उन्हें राजीव गांधी का करीबी बताया जाता था। इसी के चलते उन्हें लोकसभा का टिकट दिया गया। उनका चुनाव प्रचार करने खुद राजीव गांधी वाराणसी आए थे। श्यामलाल यादव का जन्म चंदौली के सकलडीहा में 1927 मेें हुआ था, जबकि उनका देहांत छह मई, 2006 को हुआ। वह वाराणसी के चौकाघाट क्षेत्र में रहते थे।
पं. कमलापति त्रिपाठी का टिकट काटकर श्याम लाल यादव को दिया था
जब कांग्रेस ने श्याम लाल यादव को वाराणसी संसदीय सीट से मैदान में उतारा तो उस समय कहा गया कि पं. कमलापति त्रिपाठी का टिकट काटकर उन्हें दिया गया है, मगर श्यामलाल यादव ने अपने प्रचार की शुरुआत पं. कमलापति से ही आशीर्वाद लेकर की। यहां तक कि बड़ागांव में हुई पहली जनसभा में पंडित जी को ही मुख्य अतिथि बनाया गया था। श्यामलाल यादव ने कांग्रेस के टिकट पर 1957 और 1967में मुगलसराय से विधानसभा का चुनाव जीता था पर 1976 में ही वह चौधरी चरण सिंह के साथ कांग्रेस से अलग हो गए। इसी वर्ष जब चौधरी चरण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री बने तो श्यामलाल को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। इसके बाद वह 1970 से 1976 तक राज्यसभा के सदस्य रहे और फिर 1976 में वह कांग्रेस में पुन: शामिल हो गए। इस बार पार्टी ने उन्हें फिर से राज्यसभा का सदस्य बनाया। इसके बाद 1982 में वह तीसरी बार राज्यसभा के सदस्य बने। हालांकि 1984 में वाराणसी से लोकसभा का टिकट मिलने के बाद उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब 1984 का लोकसभा चुनाव हुआ तो श्यामलाल यादव को भी कांग्रेस की लहर का लाभ मिला। उनके पुत्र अरुण यादव बताते हैं कि 1984 में चर्चा थी कि पंडित जी का टिकट काटकर पिताजी को दिया गया है। हालांकि पंडित जी ने पिता जी के चुनाव प्रचार में सक्रिय रूप से भाग लिया था।
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