Akshaya Tritiya 2023: अक्षय तृतीया पर बन रहा है रोहिणी नक्षत्र का संयोग, इस तरह करें पूजा-पाठ
Akshaya Tritiya 2023 वैशाख शुक्ल तृतीया की मान्यता अक्षय तृतीया की है। तिथि विशेष पर स्नान-दान व व्रत का विशेष विधान है। अक्षय तृतीया इस बार 23 अप्रैल ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, वाराणसी : वैशाख शुक्ल तृतीया की मान्यता अक्षय तृतीया की है। तिथि विशेष पर स्नान-दान व व्रत का विशेष विधान है। अक्षय तृतीया इस बार 23 अप्रैल को मनाई जाएगी। इस वर्ष अक्षय तृतीया पर रोहिणी नक्षत्र का संयोग बन रहा है। इसे बहुत श्रेष्ठ माना जाता है।
श्रीकाशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री प्रो. विनय पांडेय भड्डरी की लोक प्रचलित कहावत का हवाला देते हुए कहते हैं कि वैशाख की अक्षय तृतीया को यदि रोहिणी न हो तो पृथ्वी पर दुष्टों का बल बढ़ेगा और उस साल धान की उपज न होगी। अत: इस वर्ष रोहिणी का योग होने से धान की फसल अच्छी होगी।
अक्षय तृतीया पर करें दान
धर्मशास्त्रों में अक्षय तृतीया सनातन धर्मावलंबियों का प्रधान पर्व बताया गया है। इस दिन दान, स्नान, होम-जप आदि समस्त कर्मो का फल अक्षय होता है। मान्यता है कि पर्व विशेष पर व्रत-पर्व-दान और पुण्य फलकारी होता है। इससे ही इस व्रत को अक्षय कहा गया। किसी भी क्षेत्र में सफलता की आशा से व्रत के अतिरिक्त दान में जलकुंभ, शर्करा समेत व्यंजनादि पुरोहित या पात्र जरूरतमंद को देना चाहिए।
सोना खरीदने का बढ़ा प्रचलन
लोक मान्यता अनुसार तिथि विशेष पर स्वर्णादि समेत स्थिर लक्ष्मी खरीदने का प्रचलन बढ़ा है। कहा जाता है कि इस दिन कोई शुभ कार्य, दान के साथ स्वर्णादि खरीदने पर वह भी अक्षय हो जाता है। अवतार दिवसः वैशाख शुक्ल तृतीया को नर नारायण परशुराम व हयग्रीव अवतरित हुए थे। ऐसे में इस तिथि को उनकी जयंती मनाई जाती है। इस दिन ही त्रेता युग भी आरंभ हुआ। वहीं उत्तराखंड के अधिष्ठाता बद्रीनाथ का ग्रीष्मकालीन पट इस दिन खुलता है। काशी में गंगा स्नान के साथ त्रिलोचन महादेव की यात्रा, पूजन-वंदन का महत्व है।
अपुच्छ मुहूर्त
अक्षय तृतीया तिथि विशेष पर किसी भी शुभ कार्य को किया जा सकता है। ज्योतिषी लोग आगामी वर्ष की तेजी मंदी जानने के लिए भी इस तिथि का उपयोग करते हैं। 23 अप्रैल को स्नान दान के विधान संग मनाया जाएगा पर्व lपूजन-अनुष्ठान आदि विधान व स्थिर लक्ष्मी क्रय का अक्षय फल
पूजन विधान तिथि विशेष पर व्रतियों को तीनों जयंतियों के निमित्त प्रात: स्नानादि कर हाथ में जल अक्षतादि लेकर श्रीहरि के पितृर्थ संकल्प लेना चाहिए। भगवान का यथा विधि पंचोपचार पूजन कर पंचामृत से स्नान, सुगंधित फूल-माला अर्पित करना चाहिए। नैवेद्य में नर नारायण के निमित्त सेंके हुए जौ व गेहूं का सत्तू, परशुराम के निमित्त कोमल ककड़ी व हयग्रीव के निमित्त भीगी चने की दाल अर्पित कर उपवास-व्रत आरंभ करना चाहिए।

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