Kartik मास में आकाशदीप : एक दीपक अनंत पथ का, दिग-दिगंत के अरुणिम रथ का
दिव्य कार्तिक मास में गंगा तट सरोवरों तालाबों व कूपों के साथ ही घर की छतों तक पर आकाशदीप जलाने की प्रथा काशी में सदियों पुरानी है। घाटों की छटा कार्तिक मास में निखर उठती है ज्योतिपुंज का एक अलौकिक आभा का सृजन करते प्रतीत होते हैं।
वाराणसी [ कुमार अजय ] । परालोकों के पुण्य पथ पर विचर रहे दिवंगत पुरखों का मार्ग सदा-सर्वदा आलोकित रहे, इस भाव प्रवण ध्येय के साथ दिव्य कार्तिक मास में गंगा तट सरोवरों, तालाबों व कूपों के साथ ही घर की छतों तक पर आकाशदीप जलाने की प्रथा काशी में सदियों पुरानी है। इसका प्रमाण है पंचनद तीर्थ के रूप में पूजित पंचगंगा घाट पर होल्कर घराने की महारानी अहिल्या बाई द्वारा गढ़वाया गया हजार दीपों से अलंकृत गुलाबी पत्थरों वाला वह विशाल दीप स्तंभ, जिसकी आयु अब तक 240 वर्ष (स्थापना वर्ष 1780) हो चुकी है।
वैसे तो लंबे-लंबे बांसों के शीर्ष पर टंगी पिटारियों में जलाए जाने वाले इन आकाशदीपों से काशी के लगभग सभी घाटों की छटा कार्तिक मास में निखर उठती है, किंतु पंचगंगा घाट, दशाश्वमेध घाट, गायघाट, केदार घाट व अस्सी घाट पर ज्योतिपुंज का एक झुरमुट-सा बनाते यह आकाशदीप अलौकिक आभा का सृजन करते प्रतीत होते हैं। मास पर्यंत निभाई जाने वाली इस रस्म का निर्वहन नगर के कई ऐसे नेमी परिवारों में घरेलू लोकाचार के रूप में भी होता है। लोग काष्ठ स्तंभों पर लाल बल्ब जलाकर हर शाम संध्योपासना के साथ अपने यशस्वी पूर्वजों की शेष स्मृतियों को नमन करते हैं। दिव्यता के महोत्सव के रूप में मनाए जाने वाले इस पर्व का समापन त्रिपुरोत्सव की महत्ता प्राप्त कार्तिक की ओस में भीगी पूर्णिमा की रात देवदीपावली पर्व की धूमधाम के बीच होता है।
एक दृष्टि यह भी : अध्यात्म के कुछ अध्येताओं का मत यह भी है कि कभी इस पर्व के अर्थ पुरातनकाल के सामाजिक संदर्भों से भी जुड़े रहे होंगे। प्रख्यात दर्शन शास्त्री प्रो. देवव्रत चौबे का मानना है कि चार मास के वर्षाकाल में मार्गों की दुर्गम्यता के चलते अंतरराज्यीय व्यापार में ठहराव आ जाना बेहद स्वाभाविक है। ऐसे में ऋतु परिवर्तन के बाद कार्तिक मास की अमावस्या को दीपमालिकाओं के उजास व उल्लास के बीच ऐश्वर्य लक्ष्मी का पूजन (दीपावली ) कर वणिक वर्ग व्यापार यात्राओं की तैयारी में जुट जाता था। पथ-प्रस्थान की इस बेला में उनकी राह आलोकित रहे, इस कामना का प्रतीक पर्व भी हो सकता है माह भर का यह आकाशीय प्रकाशोत्सव।
आकाशदीप का आध्यात्मिक दर्शन
पांच हाथ से लेकर बीस हाथ तक की लंबाई वाले बांसों की फुनगी पर लगी घिर्रियों के सहारे करंड की पिटारी में आलोकित किए जाने वाले इन आकाशदीपों की विद्वानों ने आधात्यमिक व्याख्या भी की है। इन आख्यानों के अनुसार आकाश सर्वव्यापी ब्रह्म का प्रतीक है। पिटारी की खपच्चियां जीवात्मा का बोध कराती हैं। मूल दर्शन यह कि जीव के मन में ज्ञानदीप प्रज्ज्वलित होने पर ही भौतिक सुखों की प्राप्ति के संग परम ब्रह्म का सानिध्य भी प्राप्त होता है।
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