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    जब मुख्तार के इशारे पर गरजी थी AK-47, अपने खास को सौंपी थी रेशम-चांदी तस्करी व कोयला कारोबार की जिम्मेदारी

    Mukhtar Ansari बनारस और मऊ में बनने वाली साड़ियों के लिए प्राकृतिक रेशम कमी के चलते महंगा हुआ तो उसकी जगह सस्ते और मजबूत चाइना रेशम लेने लगा। नेपाल के रास्ते वाराणसी में इसकी बड़े पैमाने पर तस्करी होती थी। इस कारोबार में मुख्तार अंसारी ने मजबूत पकड़ बनाई थी। जिसने भी उसे चुनौती दी उसे मौत की नींद सुलाया।

    By devendra nath singh Edited By: Aysha Sheikh Updated: Sat, 30 Mar 2024 08:29 AM (IST)
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    जब मुख्तार के इशारे पर गरजी थी AK-47, अपने खास को सौंपी थी रेशम-चांदी तस्करी व कोयला कारोबार की जिम्मेदारी

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। बनारस और मऊ में बनने वाली साड़ियों के लिए प्राकृतिक रेशम कमी के चलते महंगा हुआ तो उसकी जगह सस्ते और मजबूत चाइना रेशम लेने लगा। नेपाल के रास्ते वाराणसी में इसकी बड़े पैमाने पर तस्करी होती थी। इस कारोबार में मुख्तार अंसारी ने मजबूत पकड़ बनाई थी। जिसने भी उसे चुनौती दी उसे मौत की नींद सुलाया।

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    इसके साथ मुगलसराय के चंधासी में कोयला और वाराणसी के सराफा कारोबार में चांदी की आवक पर भी नियंत्रण के लिए उसने बदमाशों की फौज तैयार की दी थी। अपराध की दुनिया में अपनी मजबूत पकड़ बना चुके मुख्तार ने बहुस्तरीय गिरोह तैयार किया था। पहले स्तर पर उसके सबसे भरोसेमंद शूटर थे, जिनमें प्रमुख नाम अताउर्रहमान उर्फ सिकंदर उर्फ बाबू, संजीव माहेश्वरी जीवा, मुन्ना बजरंगी, हनुमान पांडेय उर्फ राकेश, एजाजुल हक, रामू मल्लाह, विश्वास नेपाली आदि रहे।

    दूसरे स्तर पर इन शूटरों का अपना गिरोह था जिनमें हत्या करने, रंगदारी मांगने वाले बदमाश शामिल थे। इसके बाद स्तर पर गिरोह को असलहा उपलब्ध कराने वाले व रेकी करने वाले बदमाश थे। वाराणसी में मुख्तार रेशम व चांदी तस्करी व कोयले के कारोबार की जिम्मेदारी अपने खास मुजफ्फरनगर के रहने वाले संजीव माहेश्वरी जीवा व जौनपुर के मुन्ना बजरंगी को सौंपी थी। जीवा ने राजघाट भदऊं चुंगी पर अपना ठिकाना बनाया था।

    यहां से वह झारखंड से आने वाले कोयले के रैक, नेपाल के रास्ते आने वाले चाइना रेशम और कोलकाता से आने वाली चांदी पर नजर रखता था। मुन्ना बजरंगी के उसके सहयोग के साथ रंगदारी वसूली में लिप्त था। मुन्ना ने अपने गिरोह में बाबू यादव, अन्नू त्रिपाठी, कृपा चौधरी, विश्वास नेपाली, रिंकू तिवारी, रिंकू मद्रासी, मुन्नू तिवारी जैसे बदमाशों को शामिल किया था।

    उस वक्त शहर की सभी प्रमुख मंडियों, व्यापारियों से जबरदस्त रंगदारी वसूली जा रही थी, जिसने इसका विरोध किया मुख्तार की शह पर उसे एके-47 जैसे अत्याधुनिक असलहे से भून दिया गया। 90 के दशक में इस गिरोह का हौसला इतना रहा कि जहां से रुपये मिल सकते थे उस हर जगह पर अपने कब्जा जमा रखा था। इसके लिए कई लाशें भी गिराईं।

    1985 में कैंट थाना क्षेत्र के खजुरी में रात में घर लौट रहे सगे भाइयों कृष्ण कुमार सिंह उर्फ बड़े सिंह और राजेंद्र सिंह उर्फ छोटे सिंह की एके-47 से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर हत्या कर दी गई। वाराणसी में सबसे पहले एक-47 इसी घटना में चली थी। गिरोह ने नरिया में छह अप्रैल 1997 को एके-47 से अंधाधुंध गोलियां चलाकर कार में सवार महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष रामप्रकाश पांडेय, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष सुनील राय, मुन्ना राय, भोनू मल्लाह की हत्या कर दी। इस घटना में 150 राउंड गोली चली थी।

    वर्ष 2001 में सिगरा थाना क्षेत्र के मलदहिया के पास अनिल राय समेत पांच लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस हत्या में भी एके-47 का प्रयोग किया गया था। वहीं, 13 मार्च 2004 में जिला जेल में बंशी यादव की पिस्टल से हत्या कर दी गई।