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    रोहिंग्या के बांग्लादेश कनेक्शन को लेकर वाराणसी में अतिरिक्त सतर्कता, कई इलाकों में कराया गया सर्वे

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Wed, 03 Mar 2021 01:10 PM (IST)

    प्रदेश में पहचान बदलकर छिपे बांग्लादेशियों की फेहरिस्त में रोहिंग्या भी शामिल हो गए हैं। प्रदेश में अलीगढ़ व उन्नाव में उनकी मौजूदगी ने खुफिया जांच एजेंसियों के कान खड़े कर दिए हैं। काशी में भी इसे लेकर हलचल बढ़ गई है।

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    प्रदेश में पहचान बदलकर छिपे बांग्लादेशियों की फेहरिस्त में रोहिंग्या भी शामिल हो गए हैं।

    वाराणसी, जेएनएन। प्रदेश में पहचान बदलकर छिपे बांग्लादेशियों की फेहरिस्त में रोहिंग्या भी शामिल हो गए हैं। प्रदेश में अलीगढ़ व उन्नाव में उनकी मौजूदगी ने खुफिया जांच एजेंसियों के कान खड़े कर दिए हैं। काशी में भी इसे लेकर हलचल बढ़ गई है। एंटी टेररिस्ट स्क्वायड की स्थानीय इकाई भी अलर्ट मोड पर है। साथ ही पुलिस को भी चौकन्ना किया गया है। हालांकि, काशी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर वर्ष 2017 में कराए गए सर्वे में 15 हजार से अधिक बांग्लादेशियों के अवैध तरीके से बनारस  में रहने की आशंका के बावजूद पुलिस एक भी ऐसे व्यक्ति की तस्दीक नहीं कर सकी थी। सूत्रों का कहना है कि राजनीतिक समर्थन प्राप्त करने के लिए बांग्लादेशियों को भी वोटर बना दिया गया।
    इन इलाकों में कराया गया था सर्वे
    बांग्लादेशी होने की आशंका में खुद को पश्चिम बंगाल के वाशिंदे बताने वाले करीब 15 हजार लोगों का सत्यापन करने के लिए सीएम ने निर्देश दिए थे। इस आधार पर भेलूपुर के बजरडीहा, खोजवां, लंका के नगवां, दशाश्वमेध, कोतवाली, जैतपुरा, आदमपुर, रामनगर के सूजाबाद, नगर निगम पुलिस चौकी क्षेत्र के माधोपुर, कैंट रेलवे स्टेशन के आसपास, वरुणा पार की प्रेमचंद नगर कॉलोनी और आवास विकास कॉलोनी के साथ ही शहर के बाहरी इलाकों की झोपड़-पट्टियों में सर्वे कराया गया था।
    दस्तावेज देख मुश्किल था मूल नागरिकता तय कर पाना
    जिन चिह्नित इलाकों में सर्वे कराया गया, वहां के वाशिंदों के पास मतदाता परिचय- पत्र, राशन कार्ड और आधार कार्ड जैसे अहम दस्तावेज देख उनकी मूल नागरिकता तय कर पाना खुफिया इकाई के अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए मुश्किल हो गया था। उन्होंने न सिर्फ भारतीय नागरिकता के दावे किए बल्कि बोली-भाषा से जुड़े सवालों पर जवाब दिया कि वे बांग्लादेशी नहीं बल्कि बांग्लाभाषी हैं।
    कई बस्तियों का  पहले नामोनिशान नहीं था : शहर के माधोपुर में जहां पहले बस्तियों का नामोनिशान नहीं था, वहां अब झुग्गी- झोपडिय़ां आबाद हो गई हैं। इनमें रहने वालों में रिक्शा चलाने, मजदूरी करने, घरों-होटलों-ढाबों में नौकर का काम करने, ठेले-खोमचे लगाने और कूड़ा एकत्र करने वाले जैसे लोग शामिल हैं।
    स्थानीय नेताओं के लिए बने वोट बैंक : इन झुग्गी-झोपडिय़ों में रहने वालों को स्थानीय नेताओं ने अपना वोट बैंक बना लिया है। लोग बता रहे कि वोट के चक्कर में स्थानीय नेताओं ने ही बांग्लादेशी नागरिकों का पहले राशनकार्ड बनवाया और फिर राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल कर उनका मतदाता परिचय-पत्र और आधार-कार्ड भी बनवा दिया।
    खुद को बताया था पश्चिम बंगाल का : जिस पर भी बांग्लादेशी नागरिक होने का शक होता है, वह खुद को बांग्लादेश की सीमा से सटे पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद, मालदा, नादिया, उत्तरी 24 परगना, रायगंज और जलपाईगुड़ी जिले का मूल निवासी बता देता है। ऐसे लोगों का सत्यापन करना भी पुलिस के लिए टेढ़ी खीर साबित हुआ था।
    बांग्लादेशी या रोहिंग्या से जुड़े कोई इनपुट नहीं मिले
    यहां अब तक बांग्लादेशी या रोहिंग्या से जुड़े कोई इनपुट नहीं मिले हैं लेकिन सतर्कता बरती जा रही है।
    - अमित पाठक, एसएसपी, वाराणसी।

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