बनारस में लगता है बाटी-चोखा का अनोखा पौराणिक मेला, त्रेतायुग से है आयोजन का संबंध
बनारस में कार्तिक पूर्णिमा पर बाटी-चोखा का अनोखा मेला लगता है, जिसका संबंध त्रेतायुग से माना जाता है। भगवान राम के वनवास काल से जुड़ी इस परंपरा में, गंगा किनारे लोग बाटी-चोखा बनाते और खाते हैं। यह मेला एकता और भाईचारे का प्रतीक है, जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं, जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

बाटी चोखा का भगवान भोले को भोग लगाने की युगों पुरानी परंपरा काशी में आज भी बनी हुई है।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। बनारस, काशी, वाराणसी जो भी कह लें मगर प्राचीनता का प्रमाण काशी में पग पग पर मौजूद है। पुराणों से भी पुरानी नगरी काशी में त्रेतायुग का प्रमाण न हो तो बात अनोखी होगी। भगवान राम के काशी आने और वरुणा की रेत से शिवलिंंग स्थापना से लेकर पूजन और बाटी चोखा का भगवान भोले को भोग लगाने की युगों पुरानी परंपरा काशी में आज भी बनी हुई है।
त्रेतायुगीन परंपराओं के क्रम में दूर दराज से स्वत: स्फूर्त ढंग से चले आते हैं भोले को बैंगन, टमाटर और आलू के साथ धनिया मिर्च लहसुन और सरसों के तेल से बने चोखे और आटे के भीतर सत्तू की फिलिंंग करके बाटी का भोग अपने औघड़दानी भगवान भोले को भोग लगाने और त्रेतायुगीन परंपराओं को जीवंत करने। इस आयोजन से दूर दराज से लोगों का जुड़ाव है। मार्गशीर्ष कृष्ण षष्ठी के दिन परंपराएं जीवंत होती हैं और भगवान भोले को वर्ष के इस दिन बाटी चोखा का भोग लगाते हैं।
रोशनी सिंह अपनी सास रीता सिंह निवासी भीषमपुर, मौसी ज्ञानती सिंह चाची अनीता सिंह, नीलम सिंह माता द्रौपदी सिंह गंगापुर, इसरावती सिंह कुण्डरीया कुल छह लोग दो साल से मेले में आ रही हैं। रामेश्वर महादेव के प्रति आस्था रहती है। इसी बहाने सभी से मेल मुलाकात और हालचाल हो जाती है।
अनन्ता सिंह व अपर्णा सिंह अपने मम्मी सन्ध्या राय व पापा राजेश सिंह निवासी थाने रामपुर पहली बार लोटा -भंटा मेले में आई हैं। बताती हैं कि वरूणा नदी में स्नान व भगवान भोले बाबा का प्रसाद पाकर परिवार सहित खुश हैं।
नीतू सिंह, जेठानी पुष्पा सिंह देवरानी प्रीति सिंह देवरानी सोनी सिंह पड़ोसी रेखा शर्मा व सुनीता पटेल सभी टोडरपुर राजातालाब से चौथी बार मेले में आई हैं। इनका कहना है कि हमारी सासू मां ने कहा कि रामेश्वर में भोले नाथ का दर्शन और प्रसाद चढ़कर खाना खिलाना पुण्य का कार्य होता है। इसलिए एक साथ आकर स्नान दर्शन व मेला देखने का आनन्द आया।
सीमा सिंह, बिंदु, अर्चना सिंह तीनों बहनें रामपुर, कैलहट, मीरजापुर व पड़ोसी साधना सिंह, पुष्पा, नीतू व शिल्पी सिंह सभी मीरजापुर के रिश्तेदार हैं। एक दूसरे से एक सप्ताह पहले से ही मोबाइल से बातचीत कर आने और मिलने की रणनीति बनाई थी। यहां रामेश्वर धाम में परिवार के लोग बहुत पहले से आते रहे हैं। यहां भगवान बाबा भोले का दर्शन, प्रसाद पाकर मन खुश हुआ। सभी बहने एक दूसरे व गाँव घर का सुख दुख लिया। भगवान से सभी परिवार रिश्तेदार के मंगल की कामना की और मेला घूमकर खरीददारी किया।
सुशीला उपाध्याय अपने पड़ोसी अनिता सिंह,अर्चना व सुषमा सिंह वभनियांव से घरवालों के साथ ऑटो से रामेश्वर धाम आई। धर्मशाला में लगभग आठ साल से वह नियमित आ रही हैं। यहाँ भगवान का पहले स्नान बाद दर्शन करते हैं और अपने परिजनों को आमंत्रित कर प्रसाद खाते खिलाते के दौरान सुख दुख की बातें कर हालचाल हो जाता है। सबसे बड़ी बात की आस्था के साथ साथ आने पर स्वास्थ्य लाभ भी होता है। बाबा का दर्शन प्रसाद पाकर सभी लोग धन्य हो गए।
पुष्पा देवी व सुषमा देवी निवासी रामेश्वर ने कहा कि हर साल बाटी -चोखा ,चावल ,दाल परिवार व मेहमानों के लिए बनाती हूँ। स्नान पर्व पर ससुराल से बेटियां व उनके परिजन आते है। लगभग 15 रिश्तेदारों को प्रसाद खिलाकर खुशी मिली वहीँ एक साथ मिल बैठकर हाल चाल हुआ। सबको साथ लेकर मन्दिर गई बाबा से मन्नत मांगी कि सभी को खुश रखें। एक साथ मेला देखने और जरूरत के गृहस्ती के सामानों की खरीदारी किया। साल में यह छठ मेला हम लोगों के लिए खुशी का दिन होता है।
शुभम कुमार रामेश्वर जो प्रताप नगर कालोनी महाबीर मन्दिर पर काम करते हैं अपने मालिक राजू केसरी ,शिवम केसरी सहित पूरे परिवार के लोगों को आमंत्रित किया। सभी आकर परिवार के लोगों से मिले और मन्दिर बाबा का दर्शन व प्रसाद पाकर धन्य हुए। बहन सन्ध्या शिवपुर,विजय लक्ष्मी टकटकपुर व माँ पुष्पा व चाची सुषमा ने मेहमानों को प्रसाद खिलाया। सन्ध्या व विजयलक्ष्मी ने कहा कि मायके आकर सबसे मिलकर काफी खुशी मिली। सपरिवार दर्शन व मेला भी देखने का आनन्द लिया।
मुन्ना लाल ,पत्नी प्रमिला देवी निवासी बसही, शम्भू निवासी खजूरी अपने पूरे परिवार संग 15 वर्षो से आ रहे हैं। स्न्नान ,दर्शन व रिश्तेदारों से भेंट मुलाकात हो जाती है। अब तक जो भी मनौती माना उसे बाबा ने पूरा किया। हम सब एक साथ मिलकर प्रसाद बनाते हैं अच्छा लगता है।
कुछ यही कामना से बिहार की सुनीता अपने स्थानीय करीबियों के साथ आकर बाबा का आशीर्वाद लेने पहुंचीं। बताती हैं कि बाटी चोखा का भोग तो हम अक्सर लगाते हैं मगर अपने ईष्ट को अपना भोजन कराने की यह परंपरा उनके कहीं अधिक करीब हो जाने का इस आयोजन के साथ माध्यम बनता है।

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