Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    25 हजार साल पहले पूर्वी एशिया में कोरोना जैसा संक्रमण, कोविड महामारी मानव इतिहास में नई नहीं

    By Abhishek sharmaEdited By: Abhishek sharma
    Updated: Sun, 14 Dec 2025 03:31 PM (IST)

    वाराणसी में आईआईटी (बीएचयू) में, प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने कोविड महामारी पर अपने शोध के निष्कर्ष साझा किए। उन्होंने बताया कि 25 हजार वर्ष पूर्व पूर् ...और पढ़ें

    Hero Image

    अंडमान की जनजातियों पर किए गए अध्ययन में उनकी संवेदनशीलता और सरकार के त्वरित कदमों ने उन्हें सुरक्षित रखने में मदद की।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। आईआईटी (बीएचयू) में आयोजित 10वीं इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन बायोप्रोसेसिंग इंडिया (BPI-2025) में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के जीन वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने कोविड महामारी पर अपने शोध के निष्कर्ष साझा किए। उन्होंने स्पष्ट किया कि कोविड-19 जैसी महामारी मानव इतिहास में कोई नई घटना नहीं है। लगभग 25 हजार वर्ष पूर्व पूर्वी एशिया, विशेषकर चीन क्षेत्र में सार्स-कोव-2 जैसे कोरोना वायरस का संक्रमण फैला था। इस संक्रमण के कारण वहां के लोगों में वायरस के खिलाफ नेचुरल सिलेक्शन के जेनेटिक प्रमाण आज भी देखे जा सकते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    प्रो. चौबे ने वायरस के विभिन्न वैरिएंट्स के उदय को म्यूटेशनल डायनामिक्स से जोड़ते हुए बताया कि 5 लाख से अधिक वायरस जीनोम के विश्लेषण के आधार पर प्यूरिफाइंग सिलेक्शन ने वायरस को अधिक संक्रामक बना दिया है, जबकि इसकी गंभीरता कम हो गई है। उनके 2022 के अध्ययन के अनुसार, वायरस आगे भी सक्रिय रहेगा और संक्रमण होगा, लेकिन अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नगण्य हो जाएगी। वर्तमान में हम यही देख रहे हैं, जहां वायरस और उसके नए वैरिएंट्स मौजूद हैं, लेकिन गंभीर मामलों की संख्या बहुत कम है।

    प्रो. चौबे ने अंडमान के आदिवासियों का उदाहरण देते हुए कहा कि जारवा, ओंगे और ग्रेट अंडमानिज जैसी जनजातियों की ससेप्टिबिलिटी (संवेदनशीलता) सबसे अधिक थी। सीसीएमबी के साथ किए गए जेनेटिक्स एंड इम्यूनिटी अध्ययन में पाया गया कि इन जनजातियों के जीनोम में लंबे होमोजाइगस सेगमेंट्स के कारण कोविड-19 से गंभीर खतरा था। इनकी आबादी पहले से ही कम थी और बाहरी बीमारियों के प्रति इम्यूनिटी न के बराबर थी, जिससे वायरस इन जनजातियों के लिए विनाशकारी साबित हो सकता था।

    इस अध्ययन के परिणामों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने त्वरित और कड़े कदम उठाए। जनजातियों को अलग-थलग रखा गया, बाहरी लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित किया गया, और नियमित टेस्टिंग की गई। इसके परिणामस्वरूप, विश्व की सबसे अनोखी जनजाति पूरी तरह सुरक्षित रही। हालांकि ग्रेट अंडमानिज में कुछ मामले सामने आए, लेकिन सभी ठीक हो गए। सरकार की सतर्कता ने इन दुर्लभ जनजातियों की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    प्रो. चौबे ने कहा कि प्राकृतिक चयन ने वायरस को एंडेमिक (सामान्य मौसमी बीमारी) बना दिया है, जिसका अर्थ है अधिक फैलाव लेकिन कम घातकता। यह दर्शाता है कि वायरस अब सामान्य रूप से मौजूद रहेगा, लेकिन इसके प्रभाव कम हो गए हैं। इस प्रकार, कोविड-19 महामारी ने न केवल स्वास्थ्य के क्षेत्र में बल्कि मानव इतिहास में भी महत्वपूर्ण सबक दिए हैं।

    यह अध्ययन न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें यह भी समझाता है कि कैसे जनसंख्या की संवेदनशीलता और सरकार की नीतियों का प्रभाव महामारी के प्रबंधन में महत्वपूर्ण होता है। कोविड-19 महामारी के अध्ययन से हमें यह सीखने को मिलता है कि विज्ञान और अनुसंधान के माध्यम से हम भविष्य में आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। यह आवश्यक है कि हम अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रति जागरूक रहें और वैज्ञानिक अनुसंधान को प्राथमिकता दें।