दीया दीया-बाती बाती, भर आकाश प्रकाश
ज्योति पर्व
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-दीपावली पर हुई मानों रोशनियों की बरसात, आस्था और श्रद्धा के साथ
-आतिशबाजी कर मनाया जश्न, देवालयों में हुई पूजा-अर्चना
वाराणसी, जागरण टीम : ज्योतिपर्व श्रृंखला के मुख्य उत्सव दीपावली पर देवाधिदेव महादेव की काशी का कण-कण दीपों-झालरों की रोशनी से नहा उठा। रोशनी का उफान मारता समंदर और जगमग लहरें घर डगर के अंधेरे कोने से लगायत मन के कोटरों को भी उजास से लबालब करती रहीं। प्रकाश की बरसात ऐसी कि कार्तिक कृष्ण अमावस की काली रात भी सकुचा जाए। मौका था अंधेरे पर उजाले की विजय के प्रतीक पर्व दीपावली का। मंगलवार की शाम चहुंओर बिखरा दिन सा उजाला और इसमें झूमता अब की काशी ही नहीं तब का काशीक्षेत्र (पूर्वाचल) तक का हर अदना और आला।
दोनों हाथों से लगायत अंतर्मन तक फूटते आस्था और विश्वास के लड्डू। जगर मगर हर कोना, हर ओर उल्लास ऐसा मानों वैभव लक्ष्मी इसी राह से गुजर जाएंगी, विघ्नहर्ता- शुभकर्ता गणपति को भी साथ ले आएंगी। धरती को शुभमय आशीषों से सिंचित कर खुशहाली की सौगात दे जाएंगी। सूर्य की किरणों के ओझल होते ही अमावस की काली रात को उजाले ने औकात बताने की जंग शुरू कर दी। रोशनियों की बरसात से कण-कण नहा उठा। मानों वैभव लक्ष्मी की आराधना को नन्हें बल्ब-दीपों के रूप में तारे जमीं पर उतर आए हों और उनसे रिक्त हो आए स्थान को भर लेने को रंग-बिरंगी आतिशबाजी आतुर हो उठी हो। जमीन पर चरखी तो हवा में फुलझड़ी और राकेट तो आसमान का सीना चीरने पर आमादा। इसमें बच्चे हों या बड़े, उम्र की सीमाओं से परे आनंद की बरखा में भींगते रहे।
यह तो रही बाहर की बात जिसे रंगीन नजारे के लिए शाम तक का इंतजार करना पड़ा लेकिन मन में उल्लास तो प्रभात के साथ ही भर चुका था। हनुमत जयंती के मौके पर संकट मोचन समेत हनुमान मंदिरों में लोगों ने मत्था टेका। पूरे दिन खील- बताशे, मिष्ठान्न पटाखे खरीदे। शाम को वैभव लक्ष्मी की आराधना-अभ्यर्थना की। रात में महाकाली को पुष्पांजलि देकर निष्कंटक जीवन की कामना की और जुट गए अन्नकूट व भैया दूज की तैयारी में।
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