अपनी-अपनी किस्मत है, कोई हंसे कोई रोए..
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वाराणसी : होली हर साल आती है और सबको समान रूप से अपने रंगों से सराबोर कर जाती है लेकिन इस बार समां कुछ बदला-बदला था। इस पर्व के ठीक दो दिन पहले जय-पराजय का राजनीतिक खेल किसी के लिए होली के रंगों को चटक करने वाला साबित हुआ तो किसी पर रंगों ने ही चढ़ने से ही इन्कार कर दिया। ढोल-नगाड़ों ने भी सभी के मन में उल्लास जगाने की हर संभव कोशिशें की लेकिन उसकी गूंज किसी को भायी तो किसी ने इस बार अनसुनी कर दी। होली के हुड़दंग के बीच 'अपनी-अपनी किस्मत है ये, कोई हंसे कोई रोए..' जैसे अल्फाज कइयों के जेहन से निकल कर चट्टी-चौराहों पर पसरे नजर आए। होली के उल्लास में रंग भरने वाले बच्चों और महिलाओं के चेहरों पर भी पराजय की टीस साफ-साफ झलकी। खास तौर से चुनाव में पराजित उम्मीदवार के परिवारों के बच्चों ने रंगों के इस पर्व में हिस्सा तो लिया लेकिन उनकी पिछले साल वाली धूम-धड़ाके की झलक इस बार नहीं दिखी। कमोवेश इसी मनोदशा से प्रभावित परिवार की महिलाएं भी दिखी। वो लोगों से मिली, पकवान खाए और खिलाए भी लेकिन उनके चेहरों पर रंगों के इस पर्व की रंगत नहीं दिखी।
इसके ठीक विपरीत जहां 'जय' था वहां चहुंओर सतरंगों की चटक ही फैली-पसरी नजर आई। कैंट विधानसभा क्षेत्र से नव निर्वाचित विधायक डॉ. ज्योत्सना श्रीवास्तव सुबह नौ बजते-बजते घर से बाहर आईं और रंगों की टोली के बीच बैठ गई। उनके चेहरे पर होली के रंगों की चटक थी तो जीत का उल्लास भी साफ-साफ झलका। कुछ ऐसा ही माहौल शहर दक्षिणी के नव निर्वाचित विधायक श्यामदेव राय चौधरी व शहर उत्तरी के रविंद्र जायसवाल के घर का था। सपा विधायक सुरेंद्र पटेल कहते हैं पिछली बार की ही तरह इस बार भी मैं अपनों के बीच था और जम कर होली भी खेली। लोग मुझसे मिले और मैं सबसे मिला। अपनादल की अनुप्रिया पटेल ने बजरिए फोन बताया कि इस बार की होली में उन्होंने खूब धमाल मचाया। क्योंकि इस बार की होली ने उनके पापा के सपनों को साकार कर दिया था। पिण्डरा से जीते अजय राय के यहां सुबह से ही क्षेत्र के लोगों का तांता लगा रहा। वह भाई के निधन के चलते इस बार रंग तो नहीं खेले लेकिन जो आया वह मुंह मीठा करके ही गया। गम के इस दौर में भी विजय की खुशियां और होली की जन उमंग उनके घर के कोने-कोने में जरूर दिखी।
इधर, चुनाव में पराजित प्रत्याशियों के यहां होली की उमंग तो थी लेकिन कहीं न कहीं हार का गम भी दिखा। वैसे पराजित प्रत्याशियों में अधिकतर का यही कहना था कि वो रंग नहीं खेलते। हां, शाम को गुलाल का आनंद जरूर लेते हैं और इस बार भी हमारी होली वैसी ही बीती। वहीं उनके परिवार के लोगों का कहना था कि यदि जीत जाते तो शायद हम सब इस बार जम कर रंग खेलते। ईश्वर को यह मंजूर नहीं था, लिहाजा-जाही विधि राखे राम, ताही विधि रहियो। यह कह कर उन्होंने अपने मन को हल्का किया।
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