मां तुलजा व दुर्गा भवानी पूरी करती हैं मुराद
वाराणसी : गंगा-वरुणा के अंचल में आबद्ध पंचक्रोशी मार्ग के तीसरे पड़ाव तीर्थ धाम रामेश्वर में मां तुलज
वाराणसी : गंगा-वरुणा के अंचल में आबद्ध पंचक्रोशी मार्ग के तीसरे पड़ाव तीर्थ धाम रामेश्वर में मां तुलजा-दुर्गा भवानी का प्रसिद्ध मंदिर है। ये दोनों देवियां भक्तों की समस्त मुरादें पूरी करती हैं। मान्यता है कि यहा जो भी याचक आकर अनुनय-विनय करता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है।
क्षेत्र के बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि मां तुलजा भवानी महाराष्ट्र के शोलापुर दक्षिण प्रांत के तुलजापुर गाव की देवी हैं। बाबा रामदास समर्थ ने भी उनकी पूजा की थी। बाबा समर्थ के शिष्य शिवाजी महाराज को भवानी ने रत्न जड़ित तलवार प्रदान किया था, जिससे उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब से लड़कर विजय हासिल की थी। भवानी महाराष्ट्र की राजदेवी व मराठियों की कुलदेवी हैं, जो सभी प्रकार की कामना से रामेश्वर में विराजमान हैं। देवी भगवती जगदंबा ने असुरों के साथ संघर्ष करते हुए हाहाकार किया तो उस समय उनके मुख से 32 देवियां शक्ति स्वरूप निकलीं, जिसमें से 12वीं देवी तुलजा भवानी हैं। ये सतयुग की देवी हैं। इन्हीं के दाहिने मां दुर्गा की मूर्ति है। इनकी स्थापना पंजाब की रानी ने तुलजा भवानी के दर्शन के पश्चात की थी। देवी भागवत में यह प्रमाण मिलता है कि मां जगदंबिका ने जब दुर्गम नामक असुर को मारा तो उसी समय से उनका नाम दुर्गा पड़ गया।
औरंगजेब जब रामेश्वर में ¨हदू मंदिरों को नष्ट कर रहा था, तो उसी समय भवानी ने काला भौरा बनकर उसे दौड़ा लिया। अंतत: वह अपने सैनिकों सहित भाग खड़ा हुआ। प्रमाणित रूप से आज भी रामेश्वर में चौरा माता की खंडित पत्थर की मूर्ति ग्रामीणों द्वारा पूजित है। मान्यता है कि मां की ही कृपा से आज तक सातो पट्टी करौना (पंचकोशी क्षेत्र) में किसी तरह का प्रकोप नहीं आया। मां स्वप्न में भक्तों को किसी तरह के अनिष्ट की जानकारी पहले ही दे देती हैं। मां तुलजा व दुर्गा दोनों देवियों की नवरात्र में विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्र में मां को चुनरी, नारियल, फल-फूल, धूप-दीप, नैवेद्य के साथ हवन-पूजन व कड़ाही चढ़ाकर कामना की जाती है। बाल ब्राह्मणों द्वारा मंदिर में प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। मंदिर के पुजारी अन्नू तिवारी ने बताया कि सच्चे मन से देवी की आराधना करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं मां पूरी करती हैं। उनके दरबार से कभी भी कोई भी निराश नहीं लौटता।
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