वाराणसी में 25 हजार कुंडों में डेढ़ लाख दंपतियों ने 200 टन वैदिक सामग्री से दी आहुति
वाराणसी में विहंगम योग संत समाज के 102वें वार्षिकोत्सव में स्वर्वेद तीर्थ हवन किया गया। देश-विदेश से आए डेढ़ लाख श्रद्धालुओं ने 25,000 कुंडीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ में 200 टन वैदिक सामग्री से आहुति दी। कार्यक्रम स्थल 200 एकड़ में फैला है, जहाँ 25,000 हवन कुंड बनाए गए हैं।

शाम को समर्पण दीप अध्यात्म महोत्सव मनाया जाएगा, जिसमें एक लाख दीप जलाए जाएंगे।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। विहंगम योग संत समाज के 102वें वार्षिकोत्सव के दूसरे दिन बुधवार को सदाफल देव रचित स्वर्वेद तीर्थ हवन धूम से सुवासित हो उठा। स्वर्वेद मंत्र गूंजे और देश-विदेश से आए डेढ़ लाख श्रद्धालुओं ने 25,000 कुंडीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ में 200 टन वैदिक सामग्री से सर्व मंगल कामना की आहुति दी।

इसमें गो धाम तीर्थ पथमेड़ा- राजस्थान से मंगाया गया भारतीय वेद लक्षणा गाय का शुद्ध बिलोना घी के साथ ही गो-पदार्थ, नैसर्गिक जड़ी-बूटियां, दुर्लभ रोगनाशक एवं आरोग्य वर्द्धक औषधियां, सुगंधित द्रव्य, मिष्ठान, पवित्र लकड़ियां व आहुतिद्रव्य समर्पित किए।

संपूर्ण कार्यक्रम स्थल लगभग 200 एकड़ भू-भाग में विस्तृत है। इसमें से 40 एकड़ भूमि पर 25,000 हवन कुंड बनाए गए हैं। यज्ञ परिसर को 108 ब्लाकों में विभाजित किया गया है जो प्राचीन ऋषि-महर्षियों के नाम पर समर्पित किए गए हैं। सायंकाल समर्पण दीप अध्यात्म महोत्सव मनाया जाएगा। इसमें संविधान दिवस के मौके पर स्वर्वेद महामंदिर धाम में एक लाख समर्पण दीप जलाए जाएंगे।

दो दिनी वार्षिकोत्सव अनुष्ठान का शुभारंभ मंगलवार को ‘अ’ अंकित ध्वजा फहरा कर किया गया। इसके साथ सद्गुरु सदाफल देव महाराज रचित स्वर्वेद महाग्रंथ का संगीतमय पाठ गूंज उठा। होगा। संत प्रवर विज्ञान देव महाराज की दिव्यवाणी की दिव्यधारा भी प्रवाहमान हो उठी।
स्वर्वेद महामंदिर धाम में 25,000 यज्ञ ज्वालाओं का सामूहिक प्रकाश, वैदिक मंत्रों की अनुगूंज और असंख्य श्रद्धा–कणों का स्पंदन आध्यात्मिक आभा बिखेर रहा था। इसमें डेढ़ लाख दंपतियों ने सर्व मंगल के साथ ही भौतिक एवं आध्यात्मिक उत्थान के निमित्त आहुतियां प्रदान कीं। यज्ञानुरागियों को संबोधित करते हुए संत प्रवर विज्ञान देव महाराज ने कहा कि यज्ञ सनातन संस्कृति की आत्मा है।
इसी में वैदिक धर्म की जड़ें और जीवन बसता है। यज्ञ श्रेष्ठतम शुभ कर्म है। यज्ञ का अर्थ है त्याग भाव। अग्नि की ज्वाला सदैव ऊपर की ओर उठती है। अग्नि को बुझा सकते हैं, पर झुका नहीं सकते। वैसे ही हमारा जीवन भी ऊर्ध्वगामी रहे, श्रेष्ठ, पवित्र और कल्याणकारी पथ पर निरंतर गतिशील रहे।
स्पष्ट किया कि हमारे अंतःकरण में ज्ञान की अग्नि, शरीर में कर्म की अग्नि, इंद्रियों में तप की अग्नि और विचारों में सद्भावना की अग्नि जलती रहे। यज्ञ की अग्नि हमें अशुभ का दहन और शुभ का पोषण सिखाती है। उन्होंने कहा कि यज्ञ केवल मनोकामनाओं की सिद्धि या पर्यावरण शुद्धि केवल नहीं है, बल्कि यह हमारे अंतर्मन में त्याग और विश्व मानव–भावना को विकसित करता है। ‘मैं और मेरा’ से ऊपर उठकर ‘विश्व–कल्याण’ की भावना जगाता है।
यज्ञ केवल अग्नि में आहुति नहीं, बल्कि अपने भीतर के अहंकार, लोभ और अशुद्धियों को समर्पित करने का पवित्र साधन है।
संत प्रवर ने आज के समय की गंभीर चुनौती ग्लोबल वार्मिंग का उल्लेख करते हुए कहा कि यज्ञ इसे रोकने का एक सशक्त वैदिक उपाय है। पर्यावरण चिंतकों को इस दिशा में गंभीरता से अध्ययन करना चाहिए। प्राचीन ऋषियों के आश्रमों में प्रतिदिन यज्ञ की परंपरा थी।
आज के समय में यह पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गया है। यज्ञ एवं योग के सामंजस्य से ही विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है।
यज्ञ का धुआं कोई प्रदूषित गैस नहीं, यह आयुर्वेदिक जड़ी–बूटियों से उत्पन्न दिव्य धूम है जो स्वास्थ्य लाभ एवं पर्यावरण शुद्धि दोनों प्रदान करता है।
संत प्रवर विज्ञान देव महाराज व आचार्य स्वतंत्र देव महाराज की उपस्थिति में संपन्न महायज्ञ ने वातावरण को केवल सुगंधित ही नहीं किया, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा यज्ञ को पुनः जन-जन के हृदय में प्रज्ज्वलित कर दिया। आचार्य स्वतंत्र देव महाराज ने कहा कि महायज्ञ की पवित्रता ऐसी थी कि इसका वातावरण केवल स्वर्वेद महामंदिर धाम तक सीमित नहीं रहा, बल्कि काशी के संपूर्ण परिवेश में आध्यात्मिक निर्मलता और दिव्यता का प्रसार करने लगा।

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