मुंह टेढ़ा माने लकवा ही नहीं
वाराणसी : अक्सर लोग मुंह टेढ़ा होने पर लकवा या 'हवा लगने' की दवा करने लगते हैं। प्रीकासन इज बेटर दैन क्योर। ऐसा होने पर झाड़फूंक के चक्कर में पड़े बिना इलाज कराना चाहिए। लोगों को यह समझना होगा कि सिर्फ मुंह के टेढ़े होने को लकवा नहीं कहा जाता। इस टेढ़ेपन को फेशियल पाल्सी कहते हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में न्यूरोलाजी विभागाध्यक्ष प्रो. विजय नाथ मिश्र ने बताया कि यह टेढ़ापन सिर्फ नस में सूजन के कारण होता है। इसकी नियमित दवा होती है और मरीज बिल्कुल ठीक हो जाता है।
कान के पास होती नस : प्रो. मिश्र ने बताया कि दिमाग के निचले हिस्से में फेशियल नस होती है। यह दोनों कान के पीछे से होती हुई चेहरे तक पहुंचती है। बताया कि दोनों ओर 22-22 मांसों में फेशियल नस फैली रहती है। इसमें सूजन होने पर दूसरी ओर चेहरा भारी होने लगता है। साथ में टेढ़ापन होने लगता है।
लक्षण : उन्होंने बताया कि सूजन तो दिखती नहीं है। इसका पहला लक्षण यह है कि चेहरे के जिस ओर की नस में सूजन होगी उसके विपरीत चेहरा लटक जाता है। आंखें बंद नहीं होतीं। आधे ललाट पर रेखाएं मिट जाती हैं। यह होने पर झाड़-फूक या लकवे का इलाज नहीं कराना चाहिए। यह लक्षण नसों में सूजन का होता है। इसकी दवा आसान होती है। बताया कि लकवा में शरीर का आधा भाग काम करना बंद कर देता है।
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इनसेट
बची एक हजार की जान
बीएचयू अस्पताल के लकवा वार्ड में पिछले दो सालों में एक हजार से अधिक मरीजों की जान बचाई गई। दो सालों में कुल 12 सौ मरीज लकवा वार्ड में भर्ती हुए। मरने वाले 175 मरीजों में 108 पुरुष व 67 महिलाएं थीं। इनमें से आधे लोगों की औसतन आयु 45-65 वर्ष थी। लकवा लापरवाही से बढ़ता और जानलेवा हो जाता है।
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