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    मेघों का भी होता है ऋतुकाल, गर्भाधान

    By Edited By:
    Updated: Sat, 23 Nov 2013 01:05 AM (IST)

    हिमांशु उपाध्याय

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    वाराणसी : यह बात थोड़ी अजीब है पर कृषि को केन्द्र में रखकर रचे गए प्राचीन ग्रंथों की सूक्तियां इसे प्रमाणित करने में कोई संकोच नहीं करतीं। मौसम की भविष्यवाणी के साथ ही उत्तम खेती के लिए वर्षा कराए जाने का विधान भी उनमें निहित है। ऋग्वेद के परजन्य(बादल) सूत्र के मंत्रों से वांछित वर्षा कराई जा सकती है।

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    आज संसाधनों से भरे दौर में यह गुजरे जमाने की बात हो सकती है पर ज्योतिष के गणनाकार इसे अब भी प्रासंगिक मानते हैं।

    शुक्रवार को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में आरंभ हुए दो दिवसीय राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन में यह विषय भी मंथन का हिस्सा बना रहा। ज्योतिर्विदों का मानना है कि परजन्य सूत्र में बादलों के आमंत्रण के इतने व्यवस्थित मंत्र हैं कि यदि समुचित ढंग से उनका आवाहन कर दिया जाय तो वर्षा अवश्यमंभावी है। ऋग्वेद के परजन्य सूत्र के अलावा पाराशर के कृषि शास्त्र, कादम्बिनी, ज्योतिष रत्न सार, वृहद संहिता और अद्भुत सागर जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी खेती किसानी, मौसम का पूर्वानुमान और वर्षा के लक्षण आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।

    ज्योतिष विद्वान प्रो. नागेंद्र पांडेय सरकारी तौर पर बनाए गए मौसम पूर्वानुमान केन्द्रों को सिरे से खारिज करते हैं। कहते हैं प्राचीन ग्रंथ मेघमाला के सूत्रों के माध्यम से महीनों तक के मौसम के सटीक पूर्वानुमान की जानकारी सहजता से हासिल की जा सकती है। उन्होंने बताया कि पिछले साल नगर सहित चार अलग अलग क्षेत्रों(सारनाथ, राजघाट, लंका व रोहनियां) में मेघमाला के मुताबिक मौसम का ज्योतिषीय आकलन कराया गया। सरकारी मौसम पूर्वानुमान केन्द्रों को झुठलाते हुए पिछले साल उतनी ही वर्षा हुई जितना ज्योतिष शोधार्थियों ने आकलन किया। एक इंच इधर न एक इंच उधर। सच तो यह है कि ज्योतिष वृष्टि विज्ञान के सही प्रतिपादन से सिंचाई संकट से भी मिल सकती है मुक्ति। शास्त्रों में इस बात की व्यवस्था है कि सूर्योदय काल सूर्यास्त, वातावरण, वायु का स्वरूप(पुरुवा-पछिहा) व गति की सटीक गणना से मौसम का सही अनुमान लगाया जा सकता है।

    परजन्य सूत्र से चार बार वर्षा करा चुकने का रहस्योद्घाटन करते हुए प्रो. पांडेय ने जानकारी दी कि बादल भी धारण करते हैं गर्भ। अगहन के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होता है मेघों का ऋतुकाल। अगहन से फाल्गुन तक (चार मास) में गर्भाधान की प्रक्रिया पूर्ण होती है। रोहिणी, श्वाती का योग और चंद्रमा से परिपूर्ण, शीतल मंद समीर व स्वच्छंद मौसम होने को माना जाता है कि मेघों का गर्भाधान हो गया। गर्भाधान के 195 दिन बाद अर्थात ज्येष्ठ के अंत व आषाढ के प्रथम पक्ष में वृष्टि प्रसव (वर्षा) होती है।

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