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    Varanasi News: नए स्थान पर मिलेगी चाची की कचौड़ी और पहलवान की लस्सी, नई दुकान पर टंगा बोर्ड

    Updated: Fri, 20 Jun 2025 09:52 AM (IST)

    काशी की पहचान में शुमार हो चली 110 वर्ष पुरानी चाची की दुकान व 75 साल पुरानी पहलवान लस्सी की दुकान ढहाए जाने के बाद इंटरनेट मीडिया पर उससे जुड़ी अनगिनत स्मृतियों की कहानियां दौड़ने लगीं, इसके साथ ही इसे लेकर राजनीति भी गर्म हो गई।

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    चाची की नई दुकान पर टंगा बोर्ड। जागरण 

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। जगह जरूर बदल गई है मगर काशी का स्वाद नहीं बदलेगा। सड़क को फोरलेन बनाने के लिए लंका रविदास गेट के सामने से ढहाई गई चाची की दुकान गुरुवार को ठीक सामने कटरे में खुल गई और उसका बोर्ड भी टंग गया। पहलवान लस्सी की दुकान भी वहां से थोड़ी ही दूरी पर ओ बार्बा के बगल में अंदर खुल गई है। हालांकि काशी के स्वाद की पहचानों में शामिल हो चुकी इन दुकानों के ढहाए जाने के दूसरे दिन से ही राजनीति भी शुरू हो गई।

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    काशी की पहचान में शुमार हो चली 110 वर्ष पुरानी चाची की दुकान व 75 साल पुरानी पहलवान लस्सी की दुकान ढहाए जाने के बाद इंटरनेट मीडिया पर उससे जुड़ी अनगिनत स्मृतियों की कहानियां दौड़ने लगीं, इसके साथ ही इसे लेकर राजनीति भी गर्म हो गई।

    सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने फेसबुक अकाउंट पर दुकानों के मलबे व पहलवान लस्सी के दुकानदार का उस स्थल को प्रणाम करते भावुक वीडियो साझा किया तो गुरुवार शाम चंदौली सांसद वीरेंद्र सिंह भी ढहाई गई दुकानों के मलबे पर पहुंचे।

    इसे काशी की पहचान मिटाए जाने की कार्रवाई बताते हुए प्रधानमंत्री के काशी से जुड़ाव पर सवाल खड़े किए। हालांकि दोनों दुकानदारों ने इस संबंध में कोई बयान नहीं दिया और अपनी दुकानों को अन्यत्र शिफ्ट करने की तैयारी में जुटे रहे।

    चंदौली सांसद वीरेंद्र सिंह ने पहलवान लस्सी की दुकान के मलबे पर खड़े होकर कहा कि "काशी की आत्मा गलियों में बसती है, और प्रशासन विकास के नाम पर उस आत्मा को कुचल रहा है। बनारस कभी क्योटो नहीं हो सकता।"

    उन्होंने बताया कि वे स्वयं काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं और चाची की कचौड़ी तथा पहलवान लस्सी उनके छात्र जीवन की यादें हैं। बनारस की आत्मा उसके घाटों, गलियों, पान की दुकानों और छोटे दुकानदारों में बसती है। जब कभी मेस बंद हो जाता था, हम यहीं बैठकर कचौड़ी खाते थे, लस्सी पीते थे और बातें करते थे। ऐसे स्थान केवल दुकान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक केंद्र होते हैं।