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    बिना हथियार के रैबीज से जंग

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    Updated: Sat, 23 Apr 2016 06:57 PM (IST)

    उन्नाव, जागरण संवाददाता : आम इंसानों के बीच खुलेआम घूमते आवारा कुत्ते राह चलते लोगों को काटकर रैबीज

    उन्नाव, जागरण संवाददाता : आम इंसानों के बीच खुलेआम घूमते आवारा कुत्ते राह चलते लोगों को काटकर रैबीज की सौगात दे रहे हैं। बंदर से तो घरों की छत पर भी सुरक्षा नहीं हैं। गली मोहल्लों से लेकर सार्वजनिक स्थानों पर तक आवारा कुत्तों ने अपना गढ़ बना रखा है। आए दिन वह तमाम लोगों को घायल कर अस्पताल पहुंचा रहे हैं। सरकार हर वर्ष लोगों को रैबीज से बचाने के लिए वैक्सीन पर ही 50-60 लाख रुपया खर्च कर रही है लेकिन नगर पालिका या प्रशासन कोई स्थाई हल नहीं खोज पा रहा है। उनके पास इनको पकड़ने के लिए संसाधन ही नहीं हैं।

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    रैबीज वायरस से होने वाली बीमारी है मुख्यत: आवारा कुत्तों और बंदरों और सियार जैसे जंगली जानवरों में इसके वायरस होते हैं। जानवरों काटने पर लार से वायरस लोगों की त्वचा में प्रवेश कर जाता है। इससे कोशिकाएं संक्रमित हो जाती हैं। दिमाग में संक्रमण पहुंचने पर पीड़ित का व्यवहार बदलने लगता है। बेचैनी बढ़ जाती है। खाने-पीने में उसे तकलीफ होने लगती है। अंतिम चरण में रैबीज पीड़ित रोगी भौंकने लगता है और काटने को दौड़ता है फिर उसकी मौत हो जाती है। रैबीज का वायरस मनुष्य तक पहुंचाने का सबसे अधिक काम आवारा कुत्ता और बंदर ही करते हैं। शहर से गांव तक आवारा कुत्तों व बंदरों का आतंक कायम है। अस्पतालों में रैबीज वैक्सीन की जो खपत है वह इस बात की गवाह है वर्ष दर वर्ष आवारा कुत्तों और बंदरों का आतंक बढ़ रहा है। पांच वर्ष पूर्व 2500 वायल वैक्सीन जिला अस्पताल आती थी अब 400 वायल वैक्सीन आ रही है। एक वायल में पांच रोगियों को वैक्सीन लगती है। जबकि सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर पांच वर्ष पूर्व 4000 वायल की खपत होती थी जो बढ़कर 6500 वायल पहुंच गयी है। इससे साफ है कि हर वर्ष रैबीज काटने की घटनाओं और रोगियों में बढ़ोत्तरी हो रही है लेकिन रैबीज का दांत मारने वाले जानवरों के आतंक से लोगों को बचाने की दिशा में शासन प्रशासन कोई सार्थक कदम नहीं उठा रहा है।

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    जानवरों में रैबीज के लक्षण

    -मुंह से लार टपकती रहती है।

    -जानवर एक जगह नहीं बैठता इधर उधर बेचैन होकर भागता है।

    -आंखे लाल रहती हैं।

    -जानवर को सांस लेने में दिक्कत होती है इससे वह भागता रहता है।

    -ऐसे जानवरों की दस दिन के अंदर मौत हो जाती है।

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    ऐसे करें रैबीज से बचाव

    फिजीशियन डा. आलोक पांडेय के मुताबिक रेबीज जानलेवा रोग है। अगर कोई बंदर, कुत्ता या सियार काट ले तो घाव को साफ पानी से खूब धोएं। घाव पर पट्टी न बांधे। घाव को खुला रखें ताकि कुत्ता और बंदर की लार अंदर न जा पाए। मरीज को अस्पताल ले जाकर ड्रे¨सग कराएं और एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाएं।

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    अस्पतालों में वैक्सीन की खपत

    वर्ष सीएचसी जिला अस्पताल

    2011 4000-4500 वायल 2500-300 वायल

    2012 5000-5500 वायल 3000-3500 वायल

    2013 5500-5700 वायल 3500-3600 वायल

    2014 5800-6200 वायल 3600-3800 वायल

    2015 6200-6500 वायल 4000-4500 वायल

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    आवारा कुत्तों व बंदरों को पकड़वाने को लेकर पालिका प्रशासन ने हाथ खड़े कर रखे हैं। उसका कहना है कि बंदरों और कुत्तों को पकड़ने के लिए पिंजड़े या अन्य साधन नहीं है। बंदरों को पकड़वाने के लिए ट्रेंड कर्मचारी चाहिए वह भी नहीं हैं। कुत्ता पकड़वाने का अभियान चलवाऊंगा। जब तक बंदरों को पकड़ने में वन विभाग सहयोग नहीं करेगा इसकी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है।

    उमेश मिश्र, अधिशासी अधिकारी नगरपालिका

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    बंदर पकड़ने को फंड ही नहीं

    बंदरों का आतंक पूरे जनपद में है लेकिन वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हम बंदरों को पकड़ने की अनुमति देते हैं। बंदर पकड़वाना, नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों तथा ग्राम पंचायतों का दायित्व है। वन विभाग पकड़े गए बंदरों को दूर जंगल में छोड़ने की मदद दे सकता है। बंदरों को पकड़ने के लिए मदारी किराए पर बुलाए जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि एक बंदर पकड़ने का 500 से 700 रुपया लेते हैं। नगर निकायों और पंचायतों के पास कोई फंड नहीं है जिससे वह भुगतान कर सकें। प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी वीके मिश्र ने कहा कि बंदर पकड़वाने के लिए विभाग को शासन से कोई फंड नहीं मिलता है। इसलिए मदारी हम लोग नहीं ला सकते हैं। उधर नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी उमेश मिश्र ने कहा कि वन विभाग का सहयोग मिले तभी बंदर पकड़ना संभव है। इन हालातों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि न फंड होगा न बंदर पकड़े जाएंगे। आम लोगों को बंदरों के हमलों का सामना करना होगा और रेबीज के खतरे से दहशत में जीना होगा।

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    इनका है अपना दर्द

    आवारा कुत्तों और बंदरों ने चैन हराम कर रखा है। घरों से निकलते ही कहां कौन कुत्ता रेबीज के दांत गड़ा दे इसका कोई भरोसा नहीं रहता। अगर कुत्तों को पकड़वाने या उनके बधियाकरण का अभियान न चलाया गया तो समस्या और बढ़ेगी।

    - प्रवीन शर्मा

    आवारा कुत्तों के हमले का खतरा तो घर की दहलीज से पांव निकालते ही शुरु हो जाता है। शहर की गलियों से लेकर मुख्य मार्गों तक आवारा कुत्तों की धमाचौकड़ी कभी भी देखी जा सकती है। इस लिए आवारा कुत्तों को पकड़वाना अब जरूरी हो गया है।

    - राहुल द्विवेदी