Move to Jagran APP

हिंदी के प्रताप ने संवारा एकता का सपना

By Edited By: Published: Mon, 23 Sep 2013 09:30 PM (IST)Updated: Tue, 24 Sep 2013 11:27 AM (IST)
हिंदी के प्रताप ने संवारा एकता का सपना

अचलगंज,अप्र: अंग्रेजों की दासता से जब हमारे संस्कार खतरे में थे, व हमारी संस्कृति कराह रही थी तो हमें हुंकार भरने के लिए उन्होंनें सशक्त व समृद्ध भाषा और आवाज दी। अपने लेखों से आंदोलन खड़ा किया। उनकी आवाज देश की आवाज बनी और भाषा लोगों की भावना। यहां बात हो रही है हिंदी, हिंदू, हिदुस्तान का नारा देकर भाषा की एकता से पूरे देश को अखंडता में बांधने वाले पंडित प्रताप नारायण मिश्र की। यह अलग बात है कि उन्नाव की वीरभूमि पर जन्मे इस क्रांतिवीर की जन्मस्थली उनकी यादों को संजो नहीं पा रही है। संस्कारों व भाषा से समृद्ध देश की कल्पना करने वाले प्रताप का आशियाना आज पूरी तरह से जमींदोज हो चुका है। देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए आंदोलन खड़ा करने वाले की जन्मस्थली आज अतिक्रमण का शिकार है। बस खुशी सिर्फ इस बात की है कि आजादी के 66 साल बाद उनपर डाक टिकट जारी कर सरकार ने उनके प्रति कृतज्ञता जरूर जताई है। काश उन्नाव के जनप्रतिनिधि अपने गौरवमयी इतिहास को संजोने के लिए प्रताप की जन्मस्थली को संजोए रखते तो शायद आज तस्वीर कुछ और ही होती।

loksabha election banner

वैष्णव साधु के आशीर्वाद से हुआ था जन्म

एक वैष्णव साधु के आशीष स्वरूप बैजेगांव (बेथर) निवासी ज्योतिष विद्वान पं. संकठा प्रसाद मिश्र के पुत्र रत्न के रूप में 24 सितंबर 1856 को प्रताप नारायण का जन्म हुआ था। पिता उन्हें भी ज्योतिष पढ़ाना चाहते थे लेकिन उनका स्वाभिमान मन मुहूर्त और चिंतामणि व शीघ्र बोध में नहीं रमा। उन्हें तो सिर्फ लगन हिंदी-हिंदू- हिंदुस्तान की थी। पूरा जीवन इसी की सेवा करते हुए गुजारा। वैसे तो उनका पूरा जीवन कष्टों में ही गुजरा, लेकिन जो ऊंचाइयां उन्होंने भाषा को दी उससे आज भी देश की एकता की डोर सधी हुई है। 38 साल की अवस्था में 6 जुलाई 1894 को कानपुर में उनका बीमारी के चलते निधन हो गया।

जब दिया एकता का मूलमंत्र

भारत के पूरे भूभाग को ऐक्य (एकता) की संजीवनी देने की साम‌र्थ्य यदि किसी में है तो वह है हमारी मातृ भाषा हिंदी। इसका उल्लेख प्रताप नारायण मिश्र ने अपने 'ब्राह्मण' पत्र के संपादकीय में किया। उनका सपना हिंदी को चरम तक पहुंचाने का रहा जो आज भी अधूरा है। हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान के लिए ही उनका 38 वर्ष का अल्प जीवन समर्पित रहा। उनकी पूजा तपस्या लगन सबकुछ हिंदी में समाहित रही। इसको लेकर 15 मार्च 1883 में उन्होंने 'ब्राह्मण' पत्र निकाला। इसमें उन्होंने अपने अखंड व संस्कृति से समृद्ध भारत की कल्पना के लिए आंदोलन खड़ा किया। उन्होंने एक विचार दिया कि चहहुं जो साचहु निज कल्यान, तो सब मिलि भारत संतान, जपौ निरंतर एक जबान, हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान।

आसान नहीं थी हिंदी की राह

पं. मिश्र के समय देश विदेशी दासता की जंजीरों से जकड़ा था। हमारी भाषा पर उर्दू, फारसी, अरबी का प्रभाव था। हिंदी खड़ी बोली शैशव अवस्था में घुटरुअन पर भी नहीं चल पा रही थी। आचार्य द्विवेदी, बालकृष्ण भट्ट, भारतेंदु हरिश्चंद्र के प्रयासों से वह क्रांति की भाषा बन गई। भारतेंदु द्वारा संभाली गई पद दलित हिंदी का श्रृृंगार प्रताप ने हर कीमत चुका कर किया। हठी हमीर, कलिकौतुक, भारत दुर्दशा जैसे नाटक और दांत, बाल, भौं, मुच्छ, रिश्वत, धोखा जैसे निबंध उनकी पहचान हैं। उनके लिखे 50 से अधिक ग्रंथ हैं जिनका नव जागरण में आज तक मूल्यांकन नहीं हो सका है।

जनजागरण के जनक थे प्रताप

उन्होंने अपनी रचनाओं से देशवासियों में जन जागरण और गुलामी से मातृभूमि को मुक्त कराने का आश्वासन दिया। 'सर्वसु लेहे जात अंग्रेज, हम बस लेक्चर को तेज' अपनी बात को अक्खड़ स्वभाव में कहने से वह कभी नहीं चूके। आजादी के लिए कांग्रेस में शामिल हुए। कलकत्ता अधिवेशन में भी भाग लिया। स्कूलों में गाई जाने वाली प्रार्थना 'पितु मातु सहायक स्वामी सखा तुम ही एक साथ हमारे हो' पं मिश्र द्वारा ही रचित है।

जन्मस्थली अतिक्रमण की भेंट चढ़ी

बैजे गांव (बेथर) जहां प्रताप नारायण जन्मे थे आज उसकी पहचान ही मिट गई है। मलबे के ढेर में समाया घर अब घूरा व कूड़ाघर के रूप में तब्दील हो गया है। वहां अब जंगली बबूल का जंगल है। अगल-बगल के बाशिंदों ने खाली पड़ी जमीन को धीरे-धीरे कब्जा कर लिया है। जन्मस्थली की पहचान ही मिट गई है।

पार्क तक ही पहचान

उनकी पहचान गांव में उनके नाम पर बने प्रताप उपवन पार्क तक ही सीमित होकर रह गई है। जहां उनकी प्रतिमा स्थापित है। जन्मस्थली को पर्यटन स्थल, हिंदी भवन के रूप में विकसित करने की घोषणा तो कई बार हुई लेकिन पूरी नहीं हो सकी।

आज से डाक टिकट पर प्रताप

बैजे गांव (बेथर) में मंगलवार 24 सितंबर को 158वें जन्मदिन को भव्य समारोह के रूप में मनाया जा रहा है। केंद्रीय संचार राज्यमंत्री क्रुपा रानी किल्ली उनकी जन्मस्थली से ही उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी करेगी। सांसद अन्नू टंडन की अध्यक्षता में समारोह का आयोजन किया जा रहा है। विभाग स्टाल लगाकर डाक टिकट की बिक्री भी करेगा। पांच रुपए कीमत का यह डाक टिकट मुद्रित हुआ है। समारोह में विभिन्न दलों के राजनीतिक, साहित्यकार, कवि आमंत्रित है। मंगलवार रात में विशाल कवि सम्मेलन का आयोजन है। जन्म दिवस समारोह का आयोजन पं. प्रताप नारायण मिश्र स्मारक बेथर के तत्वावधान में हरिसहॉय मिश्र 'मदन' के संयोजन में हो रहा है।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.