कल्पवृक्ष पारिजात को मिली विरासत, होगा संरक्षण
पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के 14 रत्नों में कल्पवृक्ष भी शामिल है। देवताओं ने इसे देवराज इंद्र को सौंपा और उन्होंने इसे सुरकानन में स्थापित कर दिया। पद्मपुराण में कल्पवृक्ष को ही पारिजात कहा गया है। महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान माता कुंती की पूजा में फूल उपलब्ध कराने के लिए इसे धरती पर लाया गया।

सुलतानपुर : अदि गंगा गोमती के निकट जिले का गौरव माना जाने वाला कल्पवृक्ष पारिजात को अखिरकार विरासत मिल गई। राज्य सरकार द्वारा जारी विरासत वृक्षों की सूची में जिले से यह इकलौता वृक्ष चयनित हुआ है। इसके महत्व को मान्यता मिलने से लोगों में उम्मीद जगी है कि अब इसका संरक्षण होगा और पर्यटक स्थल के रूप में विकास हो सकेगा।
वृक्ष से जुड़ी पौराणिक मान्यता : पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के 14 रत्नों में कल्पवृक्ष भी शामिल है। देवताओं ने इसे देवराज इंद्र को सौंपा और उन्होंने इसे सुरकानन में स्थापित कर दिया। पद्मपुराण में कल्पवृक्ष को ही पारिजात कहा गया है। महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान माता कुंती की पूजा में फूल उपलब्ध कराने के लिए इसे धरती पर लाया गया।
केएनआई के वनस्पतिविज्ञान विभाग के प्राध्यापक डॉ. एके सिंह ने बताया कि ओलिएसी कुल के इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है। यह फ्रांस, इटली, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है। इसको फ्रांसीसी वैज्ञानिक माइकल अडनसन ने 1775 में अफ्रीका में सेनेगल में सर्वप्रथम देखा था। धरती पर सर्वाधिक दीर्घजीवी वृक्षों में इसकी गणना होती है।
रोचक हैं खोज व पहचान : वर्ष 1994 में तत्कालीन डीएफओ ने इस वृक्ष का परीक्षण कराया। उन्होंने इसे अद्भुद पाकर पुरा वनस्पति व पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों को यहां बुलाया। इन लोगों द्वारा परीक्षण के बाद कल्पवृक्ष पारिजात घोषित किया। वर्ष 1999 में उपेक्षा के चलते सौरमऊ के शिवकरन मिश्र ने 45 दिनों तक अनशन किया तब प्रशासन जागा और वृक्ष के चारों ओर से चतुबरे का निर्माण कराकर घेराबंदी कराई।
प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी आनंदेश्वर प्रसाद ने बताया कि सूची में शामिल पारिजात के संरक्षण के लिए सभी जरूरी उपाय किए जाएंगे। इसके साथ जिले में अन्य पुराने वृक्षों को संरक्षित किया जाएगा।

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