मुद्दा: अनदेखी से गुम हो गई बंधुआकला के बर्तनों की चमक
इसौली विधानसभा सीट प्रदेश और देश के विभिन्न नगरों तक थी पहुंच सरकारों और जनप्रतिनिधियों ने नहीं दिया ध्यान

हरीराम गुप्ता, सुलतानपुर: शहर से पश्चिम वाराणसी-लखनऊ राजमार्ग पर इसौली विधानसभा क्षेत्र का बंधुआकला गांव। यहां दो दशक पहले बर्तनों की खनक से सुबह होने का अहसास कर लोग बिस्तर छोड़ते थे। मगर अब यह आवाज कहीं गुम हो गई है। कारण सरकारें और जनप्रतिनिधि बदलते रहे, लेकिन किसी ने इस कुटीर उद्योग के विकास पर ध्यान नहीं दिया। यहां तकरीबन हर घर कारखाना था और हर हाथों में जादुई कला। यहां के बने, गढ़े व तरासे बर्तनों की पूरे भारत में धूम मचती थी। कारोबारियों के लिए यह बड़ा मुद्दा है, लेकिन माननीयों और राजनीतिक दलों पर हाशिए पर रखा। इसके चलते चमक फीकी पड़ गई। हालांकि, पुश्तैनी कारोबारियों को आस है कि शायद अगली सरकार कुछ करे।
करीब दो सौ घरों में बनते थे बर्तन:
यहां करीब 200 घरों में पीतल, तांबा, कांसा धातु के बटुआ, लोटा, हंडा, परात आदि से लेकर हर छोटे-मोटे सामान बनते थे। मुरादाबाद, समसाबाद, मिर्जापुर, लखनऊ, बाराबंकी, नेपाल से आए खरीदारों में होड़ लगी रहती थी। स्थानीय दुकानदार भी यहीं के बने बर्तन बेचते थे। चौपट हो रहे कुटीर उद्योग की वजह से करीब 100 से ज्यादा लोग मध्य प्रदेश, मिर्जापुर, लखनऊ, मुरादाबाद, अयोध्या समेत अन्य इलाकों में पलायन कर चुके हैं। जो बचे भी हैं, वे दूसरे कार्य कर परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं।
संघर्ष कर रहे बचे कारोबारी:
अजय कुमार, कुंवर सिंह, मंगल, ईश्वर प्रसाद, गुड्डू, मोनू ऐसे कई नाम हैं जो परंपरागत कारोबार को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। बृज किशोर समय और सरकार दोनों को दोषी मानते हैं। वे कहते हैं कि सरकार की तरफ से कभी इसे उद्योग का दर्जा दिलाने का प्रयास नहीं किया गया । इस समय प्लास्टिक व स्टील के बर्तनों की मांग ज्यादा है। सहालग में थोड़ा, बहुत काम चल जाता है। फिर महीनों बैठना पड़ता है।
आर्डर पर तैयार करते हैं माल:
अजीत कुमार कहते हैं कि पीतल के बर्तन बनाने के लिए पूंजी की जरूरत होती है। धन के अभाव में अब वे आर्डर पर सामान बनाते हैं। इसके तहत बाहर के कारोबारियों द्वारा उन्हें कच्चा माल उपलब्ध कराया जाता है। यदि पूंजी होती तो वे खुद के पैसे से कच्चा माल खरीदकर बर्तन तैयार करते और दोगुना फायदा भी कमाते हैं। अब तो इक्का-दुक्का लोग ही इस कारोबार से जुड़े हैं।

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