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    रजवाड़े रामपुर के शूरमाओं के शौर्य की गवाह है चांदा की जंग

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 25 Jan 2018 11:40 PM (IST)

    विक्रम बृजेंद्र ¨सह, सुलतानपुर : सरहदों से ऊंचा उठकर है हमने आजादी पाई/एक-एक कतरा

    रजवाड़े रामपुर के शूरमाओं के शौर्य की गवाह है चांदा की जंग

    विक्रम बृजेंद्र ¨सह, सुलतानपुर :

    सरहदों से ऊंचा उठकर है हमने आजादी पाई/एक-एक कतरा लहू का न्योछावर देश के नाम कर डाला। शहीदों को अकीदत पेश करतीं जेबा अख्तर की ये पंक्तियां रजवाड़े रामपुर के शूरमाओं की शहादत को ताजा करती हैं।

    जंग-ए-आजादी में जनपद का खासा योगदान रहा है। यहां के लम्भुआ तहसील क्षेत्र की रजवाड़े रामपुर रियासत छोटी होने के बावजूद राष्ट्रभक्ति के रंग से सराबोर थी। तभी तो जब ब्रिटिश हुकूमत में तमाम देशी रियासतें फिरंगियों के सामने कोर्निश कर रहीं थी, उस दौर में इस रियासत के करीब दो सौ से अधिक शूरमाओं ने अपने प्राण चांदा की जंग में न्योछावर कर दिए थे।

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    जिला गजेटियर और पुराने दस्तावेज गवाह हैं। अवध में उस वक्त रजवाड़े रामपुर को एक छोटे तालुका के रूप में ही जाना जाता था। इस रियासत में सिर्फ 84 गांव थे। बाबू बाघ ¨सह ने इस रियासत की स्थापना की थी। ये वो सौभाग्यशाली राजपरिवार था, जिसने अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं किया। जब 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ मंगल पांडेय ने मेरठ में बगावत कर बिगुल फूंका तो देश की तमाम रियासतें इस विद्रोह को हवा देने में लग गईं। सुलतानपुर की हसनपुर, अमेठी व जौनपुर की ¨सगरामऊ, प्रतापगढ़ की कालाकाकर आदि रियासतों के हजारों सैनिक जमींदारों की अगुवाई में फिरंगियों को कड़ी चुनौती पेश करने में पीछे नहीं रहीं। लंबे समय तक जंग चली। काशी ¨हदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर इतिहासकार मो.आरिफ के मुताबिक, 22 नवंबर 1857 से चांदा की लड़ाई शुरू हुई। इसमें जौनपुर, फैजाबाद, सुलतानपुर व प्रतापगढ़ की छोटी-छोटी रियासतों ने संयुक्त रूप से फिरंगियों के खिलाफ मोर्चा संभाला। अंग्रेजों की कूटनीति एवं रणनीति के आगे हालांकि यहां के सूरमाओं को कामयाबी तो नहीं मिल पाई, लेकिन हजारों शहीद हो गए। इनमें रजवाड़े रामपुर रियासत की 200 से ज्यादा सूरमा भी शामिल थे। फिरंगियों को चुनौती देने का दंश लंबे समय तक रजवाड़े रामपुर को सालता रहा। कालांतर में रियासत तीन तालुकों में बंट गई। 1902 में इसके तालुकेदार हुए रुद्रप्रताप ¨सह, माता प्रसाद ¨सह व राजेश्वरी ¨सह। सन 1947 में जब देश आजाद हुआ तो बाबू जयगोपाल ¨सह, माता प्रसाद ¨सह व राजेश्वरी प्रसाद ¨सह गद्दी पर बैठे। आजादी के बाद भी खेल, राजनीति एवं सामाजिक कार्यों में ये रियासत सक्रिय रहीं। इसी रियासत के उदय प्रताप ¨सह सातवें दशक में दो बार भारतीय जनसंघ के चुनाव चिन्ह पर चांदा विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे। यहीं के रमेशचंद्र ¨सह राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी व निशानेबाजी में शोहरत हासिल करने में सफल रहे। इस वक्त रियासत के उत्तराधिकारियों में आनंद प्रताप ¨सह, जयेंद्र विक्रम व कुंवर रीतेश आदि अपनी सामाजिक सक्रियताओं के चलते परिचय के मोहताज नहीं हैं।